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काला नमक चावल का विदेशों में भी व्यापार,तीन साल में तीन गुना से अधिक बढ़ा निर्यात

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लखनऊ । काला नमक धान का चावल भारत देश ही नहीं दुनिया का एकमात्र प्राकृतिक चावल है। जिसमे वीटा कैरोटिन के रूप में विटामिन ए उपलब्ध है। इसमें प्रोटीन और जिंक की मात्रा अन्य चावलों की तुलना में अधिक होती है। जिंक दिमाग के लिए और प्रोटीन हर उम्र में शरीर के विकास के लिए जरूरी होता है।

काला नमक का ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम 49% से 52% होता है। काला नमक चावल मधुमेह के मरीजों के लिए भी बाकी चावलों की अपेक्षा बेहतर है। स्वाद,सुगंध और पोषण से भरपूर काला नमक चावल की विदेशों में भी बहुत मांग है। इस चावल की गुणवत्ता की जबर्दस्त ब्रांडिंग के नाते तीन साल में तीन गुना विदेशों में निर्यात हुआ है। काला नमक धान के चावल को भगवान बुद्ध का प्रसाद माना जाता है।

इतनी सारी खूबियों और खासियतों की वजह से आज काला नमक चावल का निर्यात सिंगापुर और नेपाल में लगातार बढ़ रहा है। दुबई और जर्मनी में भी काला नमक का निर्यात हो रहा है। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने काला नमक को सिद्धार्थनगर का एक जिला एक उत्पाद (ओडीओपी) घोषित किया है।

तीन साल में विदेशों में इसके निर्यात में तीन गुने से अधिक की वृद्धि हुई है। राज्यसभा में 17 दिसंबर 2021 को दिए गए आंकड़ों के अनुसार 2019/2020 में काला नमक चावल का निर्यात 2 फीसद था। अगले साल यह बढ़कर 4 फीसद हो गया। 2021/2022 में इसका निर्यात बढ़कर 7 फीसद हो गया।

काला नमक धान को केंद्र में रखकर बीते दो दशक से काम कर रही गोरखपुर की संस्था पीआरडीएफ (पार्टिसिपेटरी रूरल डेवलपमेंट फाउंडेशन) के चेयरमैन डा आरसी चौधरी के अनुसार पिछले दो वर्षो के दौरान उनकी संस्था ने सिंगापुर को 55 टन और नेपाल को 10 टन काला नमक चावल का निर्यात किया था। सिंगापुर और नेपाल इन दोनों देशों से अब भी काला नमक चावल की लगातार मांग आ रही है। इसके अलावा कुछ मात्रा में दुबई और जर्मनी को भी काला नमक का निर्यात हुआ है।

पीआरडीएफ के अलावा भी कई संस्थाएं काला नमक चावल के निर्यात में लगी हैं। स्वाद, खुश्बू और पोषण से भरपूर काला नमक धान को भगवान बुद्ध का प्रसाद माना जाता है। सिद्धार्थनगर जिले का ओडीओपी होने के साथ इसे जीआई टैग भी मिला है। इस सबके नाते यह भविष्य में निर्यात के मामले में बासमती चावल को टक्कर दे सकता है।

चीनी भिक्षु फैक्सियन ने लिखा है काला नमक चावल का इतिहास

काला नमक चावल की खेती बौद्ध काल (600 ईसा पूर्व) से की जाती रही है। काला नमक अनाज कपिलवस्तु की खुदाई से प्राप्त हुए हैं। गौतम बुद्ध के पिता, राजा शुद्धोधन के राज्य का हिस्सा कपिलवस्तु नेपाल के तराई में स्थित है। अलीगढ़वा की खुदाई के दौरान काला नमक से मिलते-जुलते कार्बनयुक्त चावल के दाने बरामद हुए।

चीनी भिक्षु फैक्सियन ने लिखा है कि जब बुद्ध ‘ज्ञानोदय’ प्राप्त करने के बाद पहली बार कपिलवस्तु आए, तो उन्हें मथला गांव में लोगों द्वारा रोका गया। ग्रामीणों ने सिद्धार्थ से उन्हें प्रसाद देने के लिए कहा।सिद्धार्थ ने भिक्षा में लिए गए चावल को मुट्ठी में लिया और लोगों को यह कहते हुए दिया कि वे इसे दलदली जगह पर बो दें।

इस प्रकार उत्पादित चावल में “विशिष्ट सुगंध होगी जो हमेशा लोगों को मेरी याद दिलाएगी,”। उल्लेखनीय है कि बाद में बाझा जंगल गायब हो गया और उसकी जगह कपिलवस्तु के पास बाझा गांव ने ले ली। काला नमक चावल की किस्म, अगर कहीं और बोई जाती है, तो इसकी सुगंध और गुणवत्ता खो जाती है।

काला नमक चावल (The Buddha rice) के संरक्षण का पहला प्रयास ब्रिटिश राज के दौरान अंग्रेज़ विलियम पेपे, जे एच हेमप्रे और एडकन वॉकर (अलिदापुर, बर्डपुर और मोहना के जमींदार) द्वारा किया गया था। उन्होंने काला नमक के उत्पादन के लिए बाझा, मरथी, मोती और मझौली में जलाशयों का निर्माण किया।

उन्होंने अपने स्वयं के उपभोग के लिए काला नमक इस किस्म का उत्पादन किया और इसे ढाका और इंग्लैंड तक पहुँचाया।
काला नमक की बढ़ती माँग के कारण, अंग्रेजों ने कपिलवस्तु के आसपास की भूमि पर कब्जा कर लिया और बर्डपुर और अलीदापुर राज्यों की स्थापना की। वे बंधुआ मजदूरी के माध्यम से कालानमक धान का उत्पादन करते थे और ब्रिटेन को निर्यात करते थे।

जब गुजराती व्यवसायियों को इस व्यवसायिक क्षमता के बारे में पता चला, तो उन्होंने काला नमक चावल निर्यात करने के लिए एक मंडी बनाई। उनका मुकाबला करने के लिए ब्रिटिश “दुकानदारों” ने रेलवे के माध्यम से काला नमक चावल ले जाने के लिए एक रेल मार्ग बनाया।

आजादी के बाद लापरवाही के कारण उसका बाजार मंडी बंद हो गई और जलाशयों में गाद जमा हो गई। जिससे काला नमक धान के उत्पादन में गिरावट आई थी।

कपिलदेव सिंह 

(यूपी हेड)

 

 

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