जिन्दगी का सफ़र______
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मानव के जन्मरूपी प्रथम स्टेशन से लेकर मृत्यु रूपी अन्तिम स्टेशन के बीच न जाने ज़िन्दगीरूपी सफ़र में अनेक मुसाफ़िर मिलते हैं । हरमुसाफ़िर एक दूसरे में हमसफ़र तलाश रहा हैं । सब बाहर में भौतिक सुख- सुविधा कीं ललक से भटक रहे हैं ।
इसके विपरीत आत्मा के दर्शन द्वारा यदि अपने भीतर हम झाँके तब झूमने- नाचने लगेगा हमारा साथ में रहने वाला असली हमसफ़र । जन्म और मरण के बीच की कला है जीवन , जो सार्थक जीने पर निर्भर हैं। मानव अपने जन्म के साथ ही जीवन मरण, यश अपयश, लाभ हानि, स्वास्थ बीमारी, देहरंग, परिवार समाज, देश स्थान आदि सब पहले से ही निर्धारित कर के आता है।
साथ ही साथ अपने विशेष गुण धर्म, स्वभाव, और संस्कार सब पूर्व से लेकर आता है। अपने पुरुषार्थ से अपने सत्तकर्म से जीवन गाथा लिखनी हैं तो कहते हैं कि सुख वैभव भावी पीढ़ी कोकालक़ुट तुम स्वयं पी गये ।मृत्यु भला क्या तुम्हें मारती मरकर भी तुम पुनः जी गये । जिस इंसान के कर्म अच्छे होते है उस के जीवन में कभी अँधेरा नहीं होता हैं ।
इसलिए सदैव अच्छे कर्म करते रहे वही आपके जीवन सफर में सही से परिचय देंगे । यही जीवन के सफर मेंसहीं से आनन्द हैं । इस तरह एक वाक्य में जन्म से मृत्यु तक का जिन्दगी का सफ़र समेटा जा सकता है ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ राजस्थान)