आध्यात्मिक बातें ______
1 min readविषय आमंत्रित रचना – जिन्दगी
जिन्दगी मे धूप है,तो घनी छांव भी तो है। गति के साथ -साथ मे ठहराव भी तो है। पर जो जानते है हर पल समभाव मे जीना उनके लिएजिन्दगी केवल वरदान ही तो है। रहेगा मन सदा प्रसन्न क्या- सब दुःख दूर होने के बाद मन प्रसन्न होगा । नही पता पर यदि मन प्रसन्नरखे तो सब दुःख दूर हो जायेंगे | यह बात हो सकती हैं ।
अपने स्वास्थ्य की पूर्ण सुख-साता में,स्नेह-विश्वास में हर अपेक्षा पर खरे उतरने के जज़्बे में, जब मन से ख़ुशी का दीप जलाता है तो वह सदा प्रसन्न रहता हैं। विषय दाता के भावों को समाहित करते हुए एक मंतव्य यह है की किसी ने कहा की तुम सिर्फ अपने लिये जीओ । सिर्फ और सिर्फ अपना देखो । अपना देखोगे तो अच्छा रहेगा । ऐसी जिन्दगी जीना अच्छा रहेगा ।
दूसरा मंतव्य यह है की तुम सबका देखो व भला करते जाओ इससे जिन्दगी अच्छी होगी । इस तरह अलग – अलग कितने – कितने मंतव्य हो सकते है । विषय दाता व अन्य के चिन्तन से यह प्रश्न उभर सकता है की दो विपरीत बातें जिन्दगी पर किसको सही माने ? प्रश्न जटिल जरुर है सुनकर लेकिन उतर इसका जिन्दगी पर मेरे दृष्ठिकोण से बहुत ही सरस है । पहले मंतव्य से की सिर्फ अपना देखो इसमें मेरा चिन्तन यह है की आप अपना देखोगे प्रगति करोगे तो आप प्रगति कर अपना स्वयं का काम करोगे ।
आपके स्वयं का मकान होगा । आपके स्वयं का व्यापार होगा । आप कितनो को अपने यहाँ काम पर रखोगे । सरकार को उपार्जन से टैक्स दोगे ।इस तरह आपकी प्रगति व अपना सिर्फ देखोगे तो इससे जिन्दगी आपकी व साथ में राष्ट्र विकसित होगा । दूसरा मंतव्य से की तुम सबका भला करते जाओ जिससे आप अपना व सबका विकास करते रहोगे । राष्ट्र प्रगति करेगा । जिन्दगी कदम कदम पर नसीहतों का पिटारा है । कोई उसको लेने वाला चाहिए।
पूरी जिन्दगी में तो वह पिटारा न जाने कितना सारा है। हर समय हमारे मन-भावों मे, तरंगों के ज्वार-भाटे आते है। अब प्रश्न यह है की किस रूप मे,वो हमे प्रभावित कर पाते हैं? सोच सकारात्मक है तो ,जिन्दगी की हर सुबह सुहानी होगी अन्यथा ये अनमोल क्षण विषाद के अंधेरो की भेंट चढ़ जाते है। चाहे किसी की खुशी का कारण न बन सको पर किसी के दर्द का मरहम जरूर बनकर देखना शायद उनकी दुआओं से आपके अपने घाव ही भर जाएँ ।
अतः ज़िन्दगी को हमेशा एक फूल की तरह जीना चाहिए । जो खुशबू भी दूसरों को देता है और , और टूटता भी दूसरों के लिए ही है। ऐसा कोई जीव नहीं जिसके जीवन में समस्यान आएं।ऐसी कोई समस्या नहीं जिसका हल न हो चिंता स्वयमेव एक महत्वपूर्ण समस्या है जिसका कोई हल नहीं |चिंतन समस्या का हल है। गुरुदेव महाप्रज्ञ की वाणी कि हम समस्याओं के साथ समझौता कर लें | चिंता नही हमें समस्याओं के साथ जीना होता है |
समस्याएं हमारे जीवन का अभिन्न अंग है।हम उससे घबराएं नहीं विरोध को विनोद में बदलने में हम सक्षम होकर हर समस्या से मुक्त रहसकते हैं सकारात्मक चिंतन से। एक पीढी से दूसरी पीढी में बदल जाते विचार। विचार जो होते कभी नये वे ही बन जाते पुराने समय केअनुसार । जो रखना जानता पुराने और नये विचारों में तालमेल एकसार । हम पुराने विचारो मे भी खोज लेता जिन्दगी का सार ।
नये विचारों मे उनका मिश्रण कर बना लेता शानदार । विचार तो होते ही है मात्र विचार ।नये, पुराने न हो तो क्या होगा हेर-फेर ।समय कीअपनी चाल व रफ्तार ।जो विचार बनते सुख व शान्ति के आधार । नये हो या पुराने, वही आखिर कहलाते सर्वोतम विचार । अंगार बनके जीना था पर जिन्दगी राख बन कर रह गई। बिना नींव की यह दिवारें ताश के पत्तो के माफिक ढह गई। भागमभाग की कहानी मेपात्रों के नाम तक याद नही रहे कुल मिलाकर ज्यादातर व्यक्तियो की व्यथा भी तो है यही।
ये तो सब कहते ही हैं और अनुभव सिद्ध भी हैकि हम जिन्दगी जियें शालीन तरीके से। पर साथ ही साथ सरल भावों से, तनाव रहित व रहें सबके साथ मिलजुल कर, प्रेम भाव सहित।समझदारी जरूरी है पग-पग पर किन्तु जिन्दा रखें हम हमेशा अपना बचपन अपने अंदर। क्योंकि ज्यादा समझदारी बना देती है जिन्दगी को बोझिल और बन जाती है बाधा जीने में सबके साथ हिल मिल। याद रखें हम जीवन का अर्थ तो मिल सकता है जीकर ही। और रिश्तोंका अर्थ निभाकर ही। एक बात है बहुत जरूरी रहना चाहिए जिन्दगी में थोड़ा खालीपन भी।
क्योंकि यही तो है वह समय जब होती है हमसेहमारी अंतरंग मुलाकात। यही तो है वह मुलाकात जब होती है हमसे हमारी खुलकर बात। इन सबके अलावा कभी न भूलें हम उन अनुभवों को जो होते जाते हैं हमें हमारी जिन्दगी से प्रतिदिन उसे जीते जाने से। नहीं मापी जा सकती उनकी उपयोगिता किसी भी पाठ्यपुस्तक के पैमाने से।और अंत में जिन्दगी जियें तो ऐसी कि एक पहचान बन जाए।हर कदम चलें तो ऐसा कि निशान बन जाए।वैसेजिन्दगी काटने को तो हर कोई काट लेता है पर हम जिन्दगी जियें तो इस कदर कि एक मिसाल बन जाए।
जिन्दगी खिलते हुए गुलाब की तरह मुस्कराते हुए जीओ। बंशी की मधुर तान की तरह मंद-मंद गुनगुनाते हुए जीओ ।अंधेरों के साये मे भी रात किसी तरह खामोशीमे गुजर जायेगी पर जिन्दादिल जीना है तो दीपक की तरह टिमटिमाते हुए जीओ।
चरण-आचरण
कहते है कि जिसका जीवन आचरण अच्छा होता है उसके जीवन में धर्म का वास होता हैं । हर इंसान की दुनिया शुरू होती हैं और ख़त्मभी अगर कोई एक चीज़ की कमी रह जाए तो वह अधूरा कहलाता हैं । आँख इंसान की माँ तो पाँव पिता हैं । इंसान माँ द्वारा दुनिया देखता हैं और पिता द्वारा चलना । उसी प्रकार ज्ञान और क्रिया दोनों का होना आवश्यक होता है। ज्ञान के बिना क्रिया का कोई विशेष महत्त्व नहीं होता हैं । और सम्यक् ज्ञान के बिना भला अच्छी क्रिया की कामना की कैसे की जा सकती है।
क्योंकि ज्ञान विहीन क्रिया का मूल्य कम हो सकता है ।इसलिए
ज्ञान हो और फिर उसका आचरण अच्छा हो तो उसका विशेष महत्त्व होता है। ज्ञानपूर्वक क्रिया का पालन सचमुच विद्युत संचार हैं।कषायों का है जंगल, प्रपंच का है दंगल। ज्ञान प्रवर्धमान से चहुँ ओर होता मंगल ही मंगल। हम दूसरों से तो परिवर्तन चाहते हैं पर खुद मेंबदलाव नहीं चाहते है । रोज प्रवचन सुनते हैं पर गुस्सा , लालसाएं आदि अपरम्पार हैं।
हम माला रोज फैरते हैं पर ध्यान और कहीं हैं।परिवर्तन हमे खुद में लाना होगा । ज्ञान का दीपक खुद में जगाना होगा।सद्वविचारों को मनन कर के जीवन में उतारना होगा । तब ही चारोंऔर मंगल ही मंगल होगा। तभी हो सकता है हमारा आचरण पावन व भग्वद् राह का वरण।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़,राजस्थान )