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हमारे ज़माने का नेटवर्क….. Light Humour

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मेरे बचपन के समय में और अभी के समय में दिन – रात का फर्क आ गया है । समय की माँग के हिसाब से परिवर्तन अवश्यंभावी है । प्रगति तो हर तरीके से हो रही है लेकिन दर्द अपनापन आदि
खत्म होते जा रहे है । परिवार रिश्तों में रिश्ते नाते तो दूर बायें हाथ को दाये हाथ से कोई मतलब नहीं है । आदि – आदि अनेकों उदाहरण हम देख सकते है । और कारणों के साथ-साथ आज के चलन में मुझे सभी का मुख्य कारण विशेष रूप से मोबाइल फोन पर लगे रहना लगता है ।

मोबाइल का इस तरह सम्बन्धों पर इतना घातक उपयोग हो रहा है कि घंटों एक सोफे पर बैठ कर भी एक-दूसरे से बात करने की हमारी मानसिकता नहीं होती है परन्तु मोबाइल में व्यस्तता रहती है। माना कि मोबाईल निःसंदेह बहुत उपयोगी उपकरण है। पर इसे उपयोगिता तक ही हमारा सीमित रखना जरुरी है। इसको एक नशे या लत के रूप में उपयोग करना हमारा दोष है ना कि मोबाईल का दोष है । इसके दुरुपयोग से बहुत तरीको से भिन्न – भिन्न तरह की जीवन में सामंजस्यता समाप्त हो रही है ।

यह चिन्तन ही नहीं बहुत गहरी चिंता का विषय है। इस प्रवृत्ति पर अगर हमारे द्वारा ब्रेक लगाने की ओर ठोस चिन्तन नहीं किया जाएगा तो वह दिन दूर नहीं जब हमारा आपसी वार्तालाप पर ही एकदम विराम लग जाएगा। यह स्थिति हम सबका गहन चिन्तन माँगती है नहीं तो परिवार-संस्था आदि का अस्तित्व ही समाप्ति की ओर जा रहा हैं । हम सबका यह कर्तव्य हैं की हम गंभीरता से इस ओर ध्यान दे और सँभालें सही से सभी व्यवस्था की डोर।

इसी मकसद से भिन्न – भिन्न अपने हिसाब से चिन्तन कर कभी-कभी मूड को हमको हल्का भी कर लेना चाहिए । मन को Light Humour से भर लेना चाहिए। इससे हमारे तनाव तो कम होते ही है और हम साथ में सारे गम भूल जाते हैं ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़़, राजस्थान)

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