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अवधी भाषा से आज भी बरसता है अमृत

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देश में अवधी भाषा जगह- जगह बोली जाती है। भगवान राम की अवध धरती , अवध संस्कृति और अवधी भाषा जग जाहिर है,जिसको आगे बढ़ाने के लिए अब पुन:प्रयास शुरू है। अवधी भाषा को प्रदेश तक सीमित करने की बात प्रकाश में आयी है लेकिन अवधी साहित्य संस्थान अमेठी के अध्यक्ष डाॅ अर्जुन पाण्डेय की अगुवाई में देश के अलग अलग प्रदेश में शैक्षिक आदान-प्रदान किया तो केरल, तमिलनाडु,छत्तीसगढ और मध्य प्रदेश में अवधी साहित्य का गड़ा खजाना मिला। अवध और अवधी भाषा को लेकर असीम प्यार और स्नेह दिखा। अवध से ज्यादा शुद्ध अवधी भाषा सुनने को मिली। आम बोली बोलते लोग देखे भी गये। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त डॉ रामबहादुर मिश्र अवधी को देश से परदेश तक प्रचार प्रसार की वकालत करने मे लगे है। परदेश में भी अवधी भाषा बोली जाती है। लोग अवध और अवधी भाषा के मिठास को भुला नही पाते हैं। अवध की अवधी भाषा में अमृत की बरसात होती है। अवधी भाषा से भारत ही नही,दुनिया को एकता के सूत्र मे पिरोया जा सकता है। अवध के चक्रवर्ती सम्राट राजा दशरथ के पुत्र भगवान राम के अवधी भाषा ने तीनों लोकों में अमृत बूंदों की बर्षा की। मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने मानव जीवन में सत्य,अहिंसा को स्थापित किए। अधर्म का तिरस्कार करके आदर्श रामराज्य की स्थापना की। भय (पाप)को जड़ से उखाड़ फेका। धर्म की स्थापना करके अवधी भाषा की अमृत बूंदें कण- कण में विद्यमान है। अवधी भाषा को अपने ही देश में विश्वगुरु की कल्पना पूरी होने में पापड़ बेलना पड़ेगा। कवि,साहित्यकार,शिक्षाविद,समाजसेवी,अधिकारी,मीडिया, को भगवान राम की अवधी साहित्य को बढ़ावा देने के लिए मन लगाना होगा।
अवध, अवधी और अवधी संस्कृति को सारी दुनिया में स्थापित करने के अवधी प्रेमियों को आगे आने की जरूरत है। देश-दुनिया में अवधी भाषा को पल्लवित पुष्पित होने पर ही अवध संस्कृति को संवार सकते हैं।
दुनिया में अवधी से समृद्ध कोई दूसरी भाषा नहीं है।

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