STORY OF CRANE…. हे नीतिनियंता दया करो….
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देवदत्त: सिद्धार्थ यह हंस तुम्हारे पास है और मैं इसे कब से इधर उधर ढूंँढ़ रहा था,यह मेरा शिकार है अब जाकर मिला है।
सिद्धार्थ: नहीं देवदत्त यह हंस मेरा है,यह तो कब का दम तोड़ देता अगर मैं समय पर इसका इलाज़ न करता ।
देवदत्त: दम तोड़ देता तो क्या? यह तो मेरा शिकार है मैंने इसे इसलिए तो मारा है, तुम जबरदस्ती मेरे शिकार को हड़पना चाहते हो।
इस तरह विवाद बढ़कर राजा शुद्धोधन के पास गया।
राजा शुद्धोधन विचार करके बोले:
चूंकि यह हंस देवदत्त का शिकार है इसलिए इस पर पहला अधिकार देखा जाये तो देवदत्त का है परन्तु सिद्धार्थ ने इसकी जान बचाई है और मारने वाले से बड़ा बचाने वाला होता है इसलिए यह हंस सिद्धार्थ का है।
सिद्धार्थ भावपूर्ण होकर उस हंस (SWAN) को सहलाने लगे
*हे नीतिनियंता दया करो*
इक सारस आया धरती पर मानव को प्रेम सिखाने को।
उसे राम,रहीम ने भेजा है बस थाती अपनी बचाने को।।
जब दोस्त से अपने बिछड़ा वो मानवता उस दिन रोई थी,
अम्बर के कोने कोने पर सूरज ने पीड़ा बोई थी,
जल बिन मछली सा तड़प रहा सामर्थ्य नहीं बतलाने को।
इक सारस आया धरती पर मानव को प्रेम सिखाने को।।
तू कौन कहांँ से आया है चल रही निशानी बस तेरी,
तेरे हाल पे सब बेहाल हुये कह रहे कहानी बस तेरी,
हम दुआ करें तेरा मीत मिले प्रीत की रीत निभाने को।
इक सारस आया धरती पर मानव को प्रेम सिखाने को।।
सबको इक दिन उठ जाना है ये धरा किसी की नहीं हुई,
यह सांँस यहीं रह जानी है ये हवा किसी की नहीं हुई,
क्यों ज़ुल्म करे ऐ सृष्टि श्रेष्ठ क्या कारण मिला बताने को।
इक सारस आया धरती पर मानव को प्रेम सिखाने को।।
करबद्ध प्रार्थना *पूनम* की हे राजन अब स्वीकार करो,
उस पक्षिश्रेष्ठ की आज़ादी करुणानिधि अंगीकार करो,
इतिहास क्षमा कर सकता न, अनमोल का मोल बताने को।
इक सारस आया धरती पर मानव को प्रेम सिखाने को।।
डॉ.फूलकली”पूनम”
शायरा, कवयित्री,कहानीकार
व्हाइट हाउस अमेठी
उ.प्र.,भारत