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सोचें ज़रा……

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हम धन – दौलत , गाड़ी, बंगले आदि कमाने को दौड़ रहे है हर समय दिन – रात परन्तु हमने यह सोचा है की जो सही में हमारे साथ रहने वाला है उसका हमने कितना जीवन में संग्रहण किया है । जिन्दगी मे धूप है तो घनी छांव भी तो है।गति के साथ -साथ मे ठहराव भी तो है।

पर जो जानते है हर पल समभाव मे जीना उनके लिए जिन्दगी केवल वरदान ही तो है। अनादिकाल से 84 लाख जीव योनियों में संसारी जीव घूम रहा है ।जब तक हम कर्मों से ही लिप्त रहेंगे तब तक सिद्ध नहीं बन सकते है । यह मानव जीवन दुर्लभ है क्योंकि सिर्फ यही से ही हो सकती है जन्म – मरण से मुक्ति ।इस सत्य से जो अनजान मनुष्य रहते है वह हर युग में सुप्त बने रहते है ।

इसके विपरीत जो भी जागृत हुए उन्होंने अमरत्व को पा लिया है । भूतकाल ,वर्तमान और भविष्य हर काल में मुक्ति सिर्फ और सिर्फ मनुष्य भव से पा सकते है । बस मोक्ष की सोच अंदर पैदा होनी चाहिए । अक्षय , अरुज ज्योति से प्रकाशमान और अम्लान , जन्म ,ज़रा ,मरण ,भय और शोक आदि से रहित स्थान मोक्ष है । उस अद्भुत स्थान तक पहुँचने का माध्यम सम्यक् दर्शन हैं ।

सम्यक् दर्शन को समझ कर जीवन के आचरण में लाओ । जिसके प्रभाव से मोक्ष की और हम आगे बढ़ सकते है तथा राग – द्वेष को पीछे छोड़ सकते है । हम इसको आज से ही गहराई में सोचें जिससे हमारा अपना दृष्टिकोण बदल जायेगा ।

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़, राजस्थान )   

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