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बच्चों को अध्यात्म के साथ कैसे जोड़ें…..

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एक समय था कि व्यक्ति अतिमितव्यता में भी अपने परिवार का लालन-पालन बड़े प्रेम से कर लेता था और अपनी आमदनी में से कुछ पैसे बचा कर अपने बच्चों के लिये गहने और जायदाद आदि भी जोड़ लेता था।वो समय था सादा जीवन उच्च विचार।इंसान बहुत सुखी और खुशहाल था।बड़ा और भरा पुरा परिवार होने के बावजूद मन में किसी चीज़ की कमी नहीं लगती थी।

बड़ों के प्रति आदर और पारिवारिक सदस्यों में बहुत प्रेम था। घर में सभी छोटे – बड़े धर्म आदि ध्यान करते थे । संस्कारित थे । परन्तु आज सब अलग ही है । मैंने देखा है की आज के समय की यह खूब – खूब माँग हो रही है की बच्चों में धर्म के संस्कार कैसे भरे । इसमें मेरा यह चिन्तन है की निज पर फिर अनुशासन को सही से नहीं अपनाया जा रहा है ।

इसको मैं यो कहूँ तो कोई भी इसमें अतिशयोक्ति नहीं होगी की अपन बड़े तो स्वयं अपने जीवन में धर्म का सही से आचरण नहीं ला रहे है और आशा कर रहे की हम बच्चों से की वो धर्म करे । बच्चें तो देखा – देखी में बिना बोले सब कुछ बड़ो से ज्यादा समझते है । सही से घर में ही संस्कार की पौध नहीं है तो बच्चों में धर्म करने का भाव कहाँ से आयेगा ।

एक प्रसंग मुझे दिवंगत शासन श्री मुनि श्री पृथ्वीराज जी स्वामी (श्री डूंगरगढ़ ) ने बोरावड़ में कितनी – कितनी बार कहा की प्रदीप घर या कही अपना काम करवाना हो तो पहले स्वयं के जीवन व घर में आचरण लाओ फिर कहो तो बात का असर होता है । काम भी होता है । सत्य को छोड़ो मत । गलत तनिक सुख तो दे सकता है लेकिन सही सुख सत्य के साथ जुड़ा हुआ होता है ।

सच्चाई को कठिनाई आ सकती है परन्तु सच्चाई कभी परास्त नहीं हो सकती है । घर में गलत होगा तो इसका असर सीधे पहले बच्चों पर आयेगा ।यह अपन पहले ध्यान में रखे हर समय । बात का मर्म इतना गहरा था मुनिवर की । सही दृष्टिकोण जीवन में संस्कारों से भरपूर होता है ।गर्भस्थ शिशु को ही माता-पिता के पारिवारिक-जनों के संस्कार मिलने शुरू हो जाते है।उसके बाद घर के वातावरण का संस्कार सब को प्रभावित करता हैं ।

इस समय के संस्कार सारी जिंदगी काम आते है । आज 2 साल का बच्चा होने से पहले उसे विद्यालय में भेजने की जल्द बाजी बहुत गलत साबित हो रही है । बच्चों का सर्वांगीण विकास के लिए उम्र का सही चुनाव भी बहुत जरूरी होता है । बच्चों के दिमाग पर कच्छिमर में पुस्तकों का बोझ और पढ़ाई करने का प्रेशर डालने से वो सही दृष्टिकोण को सीख पाने से वंचित रह जाते हैं ।इसमें अभिभावक ज्यादा जिम्मेदार है ।

बच्चों का सर्वांगीण – विकास न होने में और उससे सही दृष्टिकोण की कमी रह जाती है।आज बच्चों को म्यूजिक-क्लास,डांस-क्लास,आर्ट्स एंड क्राफ्ट्स आदि की शिक्षा तो दी जाती है । जीवनोपयोगी व्यवहारिक -ज्ञान की कमी रह जाती है । जो जीवन का अहम हिस्सा है। व्यवस्थित , नियमित, सही से समयोचित जीवन शैली सफलता का पहला पायदान है ।एक सुलझे हुए जीवन की पहचान है । प्रात: सूर्योदय पूर्व से उठने से लेकर रात्रि सही समय पर सोने तक ।

हर क्रिया हो समय पर सही उद्देश्य पूर्वक ,स्वास्थ्य चेतना सहित , ध्यान-स्वाध्याय आदि का पुट होगा उसमें तो होगा हर कार्य परिपूर्ण बाधा रहित ।हमारे सुचारु जीवन यापन से बच्चों के इर्द-गिर्द के सही से वातावरण में सकारात्मकता होगी प्रसरित । इससे हममें व बच्चों आदि साथ में रहने वालो के साथ होगी एक अलग ही तरह की आत्मविश्वास व धर्म करने की लौ ज्वलित । यह देख हमारे साथ अन्य लोग भी होंगे प्रेरित । यह अनुभूति आह्लाद दायक होगी ।

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ ,राजस्थान )

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