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अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष….नारी ! तुम नर की महतारी

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भारत में महिलाओं का सम्मान सदा ही रहा है। इस सनातन धर्म में कभी समझौता नहीं हुआ है।सभी विधाओं में उनको सर्वोच्च
स्थान मिला है।शक्ति,विद्या,धन,वैभव आदि में उनको ही प्रतीक कहा है। औरत जिससे सारा संसार ज्यीतिर्मय है l अर्थात कहने का तात्पर्य यह है कि वह जननी है । समाज की ऊँचाई, सागर की गहराई , परिवार की परछाईं, पुरुषों के पुरुषत्व में तेरी ही झलक निहारी, जन मन करता है प्रणाम ओ शील की महिमाधारी ।

नारी के त्याग को तोला जा सके ऐसी कोई भी तुला आज तक कोई बना नहीं सका है। उस जैसी ममता,सेवा, समर्पण आदि की दिव्य मशाल कोई जला नहीं सका है। वह सृजनकी,संवर्धन की अच्छी अनमोल अनुपम अद्वितीय,धरोहर है। उसके नैसर्गिक सौंदर्य की सौम्य मूरत आज तक कोई बना नहीं सका है। त्याग और समर्पण की अद्भुत मूरत ,ममता और वात्सल्य की अनोखी सूरत , अपने लिए नहीं ,अपने परिवार के लिए वह श्रमशील अनवरत , वह नारी है- जिसे नहीं किसी नाम या पुरस्कार की जरुरत हैं ।

मिले उलाहना या ताना, उसे आता है हर स्तिथि को सहना । बच्चों से लेकर बड़े तक सबका रखती है वो ख़्याल , अपनी क़ाबिलियत से आता है उसे मकान को घर बनाना । हाँ ,वो नारी ही है ; जो जानती है -परिवार को चलाना , एक आदर्श परिवार बनाना , नि:स्वार्थ सबमें खुशियाँ बाँटना , गृहलक्ष्मी बनकर गृह की शोभा बढ़ाना । नारी शक्ति और समर्पण की गरिमा को रौशन करती हैं। भारतीय संस्कृति में नारी के सम्मान को हम ऐतिहासिक स्तर पर भी देख सकते है।

जब में भारतीय संस्कृति की बात करता हूं तो जैन, बौद्ध, वैदिक सभी परंपराएं आ जाती है।जहाँ स्त्री की पूजा होती है वहाँ देवता भी रमण करते है यह उदात स्वर भारतीय परंपरा का रहा है। जैन परंपरा की हम बात करे तो आदि पुरुष भगवान ऋषभ माता मरूदेवा का आदेश का कितना सम्मान करते थे वह उस घटना से पता लगता है जब युगल में उसका पुरुष साथी आश्चर्यजनक घटना में उसकी जीवन यात्रा शेष हो जाती है और माता कहती है इसका विवाह ऋषभ के साथ कर दो।

जैन परम्परा उक्त घटना को विवाह संस्था का उदय मानती है। ऋषभ ने अपनी पुत्री ब्राह्मी को लिपि कला और सुंदरी को गणित की कला सिखाई ।16 महासतियो का वर्णन जैन परम्परा में नारी जाति के प्रति अत्यंत सम्मान को दिखाता है। तीर्थंकर परंपरा में हमारे 19 वे तीर्थंकर मल्लिनाथ को स्त्री को सर्वोच्च आध्यात्मिक पद देना स्वीकृत करता है। भगवान महावीर ने चंदनबाला का उद्धार करके उनको 36000 साध्वियों की प्रमुख बनाया। विनोबा भावे के शब्दो में भगवान महावीर ने नारी जाति को जो अधिकार दिए वे कोई साधारण नही थे।

जो साहस महावीर ने दिखाया वह बुद्ध में नही दिखाई दिए। यह विनोबा जी का मानना है। आकांक्षाओं की पूर्ति ,हर पल का आनंद ,घर के चारों कोनों से हँसने की आवाज़ ,सुबह द्वार की साँकल ,ख़ुशियों की किरण से आँगन की जगमगाहट,एक चूल्हा,एक आँगन ,एक सुख मन का, एक आँसु सभी का ,एक दुःख तन का और प्यार-त्योहार , जब शाम का थका-हारा श्रम चैन से सोए , सुबह का सूरज जगत के तम-कलुष धोए, उम्र हो हर साथ ,वो आज की परिभाषा में घर का चलता-फिरता गुगल हैं महिला ।

आज महिला दिवस पर शत शत नमन तुम्हें मातृ रूप में।

देखें आगे तुम्हें और कई विविध स्वरूप में।

यही कामना है हमारी। नारी ! तुम नर की महतारी।

प्रदीप छाजेड
( बोरावड,राजस्थान)

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