सास भी है माँ ही…..
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यह सही है की सास भी माँ ही है । मैंने मेरे ग्राम में कितनो – कितनो को कहते देखते सुना की यह हमारी माँ है । मुझे भीतर में आश्चर्य हुआ की समय के साथ – साथ सत्यता को स्वीकार कर लिया है । मैंने ऐसा भी देखा है की बेटी अपने पीहर गिने – चुने दिन ही आती है ।
पीहर आने के बाद उसका वहाँ पर ज्यादा मन नहीं लगता है । सुनने में आता है की बेटी बोलती है वहाँ पर घर की सारी व्यवस्था बिगड़ जायेगी । सही भी है यह । पीहर में कुछ दिन । अपना सही में जो घर है वो घर – घर । सास भी बोलती है की अपन बच्चो के हिसाब से ढल जाये तो उसमें क्या बुराई है । बच्चे भी खुश । हम भी खुश ।
हमको भी मान – सम्मान मिलता रहे । बच्चे अपने बन कर अपने साथ रहेंगे । क्योंकि आखिर करना तो सब कुछ बच्चो को है । कहते है की जब रोते हुए जन्म लिया तब माँ ने बड़े प्रेम से छाती से चिपकाया। रोते हुए ससुराल गई तो सास ने भी गले लगाया।
माँ ने दिया जीवन तो सास ने दिया जीवन-साथी। माँ ने सिखाया
सही से अंगुली पकड़ कर चलना। सास ने सिखाया कैसे घर-परिवार समाज आदि में सही से घुलना-मिलना आदि – आदि ।
घर के काम माँ ने सिखाए । गृहस्थी चलाने के गुर सासु ने बताए।यों इस तरह जीवन के अनेक गुर जो कोई माँ ने तो कोई सासु ने बताए । तभी तो हम कह सकते हैं की माँ है जन्मदात्री माता और सासु है व्यावहारिक जीवन की निर्माता। तभी तो कहा है सास भी है माँ ही ।