विलुप्त हो रहे होली पर गाए जाने वाले पुराने गीत
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होली पर बसंत पंचमी से शुरू होने वाला फागोत्सव अब यदा कदा ही कुछ गांवों में नजर आता है।बसंत पंचमी के बाद प्रत्येक शाम होते ही कानों में पड़ने वाले गीतों की गुनगुनाहट सुनने के लिए अब कान तरस जाते हैं।सिंहपुर ब्लाक मुख्यालय के निकट आदिशक्तिपीठ माँ अहोरवा भवानी के आंचल में बसा पंहौंना गाँव के कुछ उत्साही युवा आज भी अपनी इस परंपरा को संजोए हुए हैं। पन्हौना गांव अपनी साहित्यिक, सांस्कृतिक विरासत और नाट्यकला की गतिविधियों के लिए जाना जाता है।
पंहौंना रियासत के तालुकेदार स्वर्गीय रावत कन्हैया बक्श सिंह जहाँ अपने अदम्य साहस व अचूक निशानेबाजी के लिए जाने जाते थे वहीँ नाट्यकला के कुशल अभिनय निर्देशन तथा संगीत प्रेम के लिए प्रसिद्ध थे। तालुकेदार कन्हैया बक्श सिंह द्वारा डाली गयी फागोत्सव में नाट्यकला की परम्परा आज भी सैकड़ो वर्षो पश्चात गाँव में जारी है। वैसे तो बसंतपंचमी से ही पंहौंना गांव का फागोत्सव शुरू हो जाता है परंतु होली के दिन आज भी गांव के उत्साही व नवोदित कलाकारों द्वारा रावत कन्हैया बक्श सिंह नाट्यकला रंगमंच पर भव्य नाट्यकला का मंचन किया जाता है जिसे देखने के लिए हजारो की भीड़ जुटती है।
इसके अलावा बसंत के दिन से ही शाम होते ही गाँव के मोहल्लों में होली गीत ढोलक और डफले की थाप पर सुनाई देने लगते हैं जो अबीर गुलाल में सराबोर होकर होलिकोत्सव के दिन तक पूरे सबाब पर होते रहते हैं हालांकि डीजे साउंड की गूँज के मध्य विलुप्त हो रही होली गीतों की परंपरा को गांव के कलाकारों ने आज भी जीवंत कर रखा है।पेशे से शिक्षक रविकांत श्रीवास्तव अपने तीन अन्य भाइयों जयकांत श्रीवास्तव, श्रीकांत श्रीवास्तव, मणिकांत श्रीवास्तव, के साथ गांव के सूर्यबक्श सिंह, विजय कुमार,लक्ष्मी प्रसाद, दृगपाल व राजेंद्र प्रसाद शुक्ला के द्वारा गए जाने वाले गीतों में गांव के युवा भी बढ़ चढ़ कर भाग लेते हैं।
रविकांत श्रीवास्तव ने बताया कि होली विधा के कुछ गीत आज भी बहुत लोक प्रिय हैं जिनमें “आज विरज में होरी हैं रे रसिया, होरी खेलै रघुवीरा, यमुना तट श्याम खेलय होरी, वही कदम तले बृजराज खेलन होली आओ, रसिया को नारि बनाओ री, होइके विकल सुदामा भुलाने, माधव गति तुम्हार को जानी,” आदि होली गीत प्रचलित हैं इनके साथ ही पुरानी विधा के होली पर गए जाने वाले परंपरागत गीत जिनमें धमार, फगुआ, चौताल, डेढ़ताल, लेज, लचका जैसे गीत बड़े उल्लाष के साथ गाए जाते हैं।हालांकि इन गीतों को गाने वाले और जानने वालों की संख्या भी लगातार घट रही है।