प्रेम ;जीवन का सार…
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प्रेम ;जीवन का सार
“आशाओं के प्राण को अपने तन मन में ढाल/
प्रकृति के कमान की कारीगरी दिल में संभाल //
दो पग नाप लिए गर तुमने प्रेम से /
जीवन के संचार वश अद्भुत होगा तुम्हारा श्रृंगार।।,
श्वेत फूल और अश्वेत गंधों जैसा ही तो होता है प्रेम, जिसे सूंघने मात्र से सिर्फ प्रेम की ही खुशबू आती है। प्रेम किसी आकर्षण का मोहताज नहीं होता वो तो बस होता है या नहीं होता /
“प्रेम की बाती
स्नेह का तेल
यूँ ही अक्षय रहे
हम सबका मेल”
एक अनजानी महक आसमान को छूने की ताकत रखती है और हम मालामाल हो जाते हैं । रुहानी प्रेम को शारीरिक स्पर्श की आवश्यकता नहीं होती ,वो तो आपकी बातों की विचारों की अहसास की भूखी होती है ।आजकल का प्रेम ,प्रेम नहीं सिर्फ जिस्मानी आकर्षण है आज किसी से कल किसी से । क्या आप इसे प्यार समझते हैं? यदि ऐसा है तो आप छल रहे हैं स्वयं को दूसरों को ।प्रेम छल कैसे हो सकता है ,प्रेम तो ईश्वर है ।जिसके पास ईश्वर है उसे मृत्यु से भय कैसा ? प्रेम को दिल से महसूस करो फिर प्रेम छल नहीं लगेगा /प्रेम तो राधे है फिर प्रेम छल कैसे और मृत्यु राधे की दासी ।प्रेम तो हमेशा पूजनीय है बस समझना सबके वश का नहीं।
“सात फेरे ही यदि प्रेम
की सच्ची परिभाषा होती
तो दुनिया में प्रेम की देवी
राधा न होती ।
राधा कृष्ण का प्रेम यूँ
अमर न होता ।
न पीती जहर मीरा
कृष्ण के लिए
न राधा यूँ कृष्ण की
दीवानी होती ।
न रोती शबरी राम के लिए
न प्रेम में यूँ अधीर होती ।”
प्रेम एक ईश्वरीय शक्ति है जो आम इंसान की समझ से बाहर है।
“प्रेम ही हमारा बल है
प्रेम ही हमारी पूँजी
प्रेम से ही हम हैं
प्रेम ही दुनिया की कुँजी”
आज इंसान प्रेम की परिभाषा को सिर्फ ‘लेन देन ‘की भाषा समझता है । प्रेम वो है जो आपकी बातों का अर्थ समझे।आपको दुःखी न करे ।आपकी बातों की गहराई को समझे ।बात बात पर आपको रुलाये नहीं ।मजाक में भी वो न कहे जिससे आपको दुःख हो ,क्या ऐसा हो सकता है?कभी कभी लगता है जैसे प्रेम सिर्फ रूहानी बातें है
व्यवहारिकता में इसका कोई मोल नहीं ।
“प्रेम की तपिश मे जलकर भी
दीया गैर का ही रहा ,
मैं चलती रही अंगारों पर
दौर बदनसीबी का ही रहा ।”
प्रेम और परिस्थिति एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।कभी कभी हम दूसरे व्यक्ति पर कुछ इस कदर निर्भर हो जाते हैं कि हमें स्वयं के आगे कुछ भी दिखाई ही नहीं देता ।
“व्याकुल हैं दृग नयन यूँ
खग मृग नीर समान
आतुरता विह्वल कर जाए
संयम दुष्कर हुआ जाए”
परिवर्तन और पीड़ा संसार के दो अटल सत्य हैं जिसने इन्हें स्वीकार कर लिया वही इस संसार में खुश रह सकता है ।यदि हम दुखी हैं तो सामने वाले से क्यों उम्मीद करें कि वो हमें समझ पायेगा ।हम कष्ट में हैं तो ये हमारा नसीब है। हर व्यक्ति की काल परिस्थिति एक सी नहीं होती फिर दूसरों से अपनी परिस्थिति को समझने की उम्मीद करना मूर्खता है ।अपेक्षाएँ ही दुख का मूल कारण हैं ।एक ही वस्तु अलग अलग समय में दुख सुख दोनों का कारण है। अर्थ स्पष्ट है की सुख दुख सब मन के ही विकार हैं ।पीड़ा ही आंनद के प्रारंभ का लक्ष्य है और प्रेम सारे दुखों को जड़ से मिटाने का सूत्र । अंत में सिर्फ यही कहना चाहूँगी कि
“औपचारिक प्रेम से बसर कहाँ होती है जिंदगी
जीने के लिए सरस प्रेम की जरूरत होती है
प्रेम कब बंधा होता है दुनिया की शर्तों में
जीने के लिए खुली हवा की जरूरत होती है
वो प्रेम जिसे दिल महसूस कर सके
आत्मा भी जिससे तृप्त हो सके
हवा बनकर जो वादियों में
साँस को सुंगंधित कर दे
आसमान बनकर जो प्रेम की वर्षा कर दे ।
समा जाए जो हर पल रूह में साँसे बनकर
जो जीवन को खुशियों से भर दे ।
सागर की लहर की तरह
किनारों को आशा से भर दे”