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जीवन के लिए नेक सलाह…

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पारस्परिक विचार-विमर्श तो होते ही रहना चाहिए। पर नहीं होना चाहिए इनमें कभी तर्क-वितर्क। क्योंकि तर्क-वितर्क में टकरा जाते हैं पारस्परिक अहंकार व बढ़ती जाती है तकरार।इसलिए हमे इससे भरपूर दूरी रखना ही है सही कोशिश रहे सदैव हमारी यही। अपने विचारों का आदान-प्रदान करते रहो व अपने ज्ञान व विज्ञान के खाली खजाने को विभिन्न जानकारियों से भरते रहो ।

तर्क के तीर न चुभे इसलिए संयम का परिधान धारण करो ।आग्रह से बचने के लिए तर्कवाद के ज्ञान से अपने खजाने को भरो ।जब ज्ञात से अज्ञात ज्यादा है तो हर अज्ञात को ज्ञात में बदल डालने में बता तुझे कौन कौनसी बाधा है । सदा तोल-तोल के बोलना है सभी सुधीजनों की यह नेक सलाह है । अनावश्यक बोलने में व्यर्थ खर्च होती है ऊर्जा व मिल जाता है उसको वाचाल का भी दर्जा।

इसीलिए केवल बोलने के लिए ही बोलना है ना कि अनावश्यक मुँह खोलना।बुद्ध का कथन है बहुत सारगर्भित कि हमें बोलना चाहिए तभी लगे जब हमारे शब्द हैं मौन से भी कीमती और मार्मिक ।किसी ने कहा है की सामने वाले पर जो असर विनम्रता से कही बात का होता है I

कठोर शब्दों में कही बात उतना ज्यादा असर नहीं करती है । दरवाजा खोलने के लिए खटखटाया जाता है न कि जोर जोर से ठक ठक करते रहो उसके लिये । दर्पण जब अपने चेहरे का दाग दिखाता है तब हम दर्पण नहीं तोड़ते है । बल्कि अपने चेहरे का दाग ही साफ करते हैं। बात यह गहरी जरूर है पर असरदार भी है ।

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )

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