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नहीं रहे जेडीयू के पूर्व अध्यक्ष शरद यादव

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विजय यादव –

भारतीय राजनीति में सामाजिक न्याय के बड़े महारथी रहे जेडीयू के पूर्व अध्यक्ष व केंद्रीय मंत्री रहे शरद यादव का करीब 75 वर्ष की आयु में गुरुग्राम के फोर्टिस मेडिकल इंस्टीट्यूट में गुरुवार की रात करीब नौ बजे के बाद आकस्मिक निधन की सूचना से राजनीतिक गलियारों में शोक की लहर दौड़ पड़ी।इंस्टीट्यूट की तरफ से जारी बयान में कहा गया कि उन्हे अचेतावस्था में हॉस्पिटल लाया गया था चिकित्सकों के अथक प्रयासों के बाद भी उन्हें बचाया नही जा सका।

बेटी सुभाषिनी का ट्विट से जानकारी दी “पापा नही रहे”

वही बेटी सुभाषिनी शरद यादव ने ट्वीट कर बताया कि “पापा नही रहे”पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद यादव के निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गृह मंत्री अमित शाह बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव पूर्व मुख्यमंत्री व सपा मुखिया अखिलेश यादव कांग्रेस नेता राहुल गांधी सहित विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओ ने उनके निधन पर शोक व्यक्त करते हुए देश की राजनीति के लिए अपूरणीय क्षति बताया ।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने ट्वीट में उन्हें डॉक्टर लोहिया के विचारों से प्रभावित नेता बताया और कहा कि “मैं उनकी यादों को संजो कर रखूंगा” I

थम गया समाजवादी विचारधारा की राजनीति का सफर

दरअसल शरद यादव पिछले कुछ महीनों से स्वास्थ्य मुश्किलों का सामना कर रहे थे लेकिन चार महीने पहले उनकी तबियत में सुधार होने लगा था और उम्मीद की जाने लगी थी कि वे सार्वजनिक राजनीति में फिर से सक्रिय होंगे । कयास लगाए जा रहे थे कि 2024 के लोक सभा के आम चुनावों से पहले विपक्ष की एकजुटता में उनकी अहम भूमिका होगी ।उनके निधन से करीब 50 साल की समाजवादी विचारधारा की राजनीति का सफर अब थम गया।दिल्ली के जंतर मंतर स्थित उनका बंगला जो करीब 22 साल तक उनकी राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र रहा उसे भी संसद सदस्यता जाने के बाद खाली करना पड़ा था।वर्तमान पीढ़ी को उनके राजनीतिक योगदान और कद का अंदाजा भले ही न हो लेकिन वे गैर कांग्रेसी सरकारों में शरद यादव ताकतवर नेता के तौर पर जाने गए ।

शरद यादव का राजनीतिक सफर 

मध्य प्रदेश के होशंगाबाद में 01 जुलाई 1947 को साधारण परिवार में जन्मे शरद यादव जेपी आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई।करीब 25 वर्ष 07 माह की उम्र में सक्रिय राजनीति में उतरे शरद यादव बिहार मध्य प्रदेश व उत्तर प्रदेश से 11 बार सांसद चुने गए।जबलपुर विश्वविद्यालय के छात्र संघ अध्यक्ष रहते हुए छात्र आंदोलन के चलते जेल चले गए और जेल से ही जबलपुर का चुनाव में जीत दर्ज की थी।1989 में वे जनता दल के टिकट पर उत्तर प्रदेश के बदायूं लोक सभा क्षेत्र से सांसद चुने गए। वीपी सिंह के नेतृत्व में बनी केंद्र सरकार में कैबिनेट मंत्री बने । बीपी सिंह और चौधरी देवीलाल के मध्य उपजे विवाद के दौरान वे बीपी सिंह के साथ मजबूती से खड़े रहे ।बिहार के मधेपुरा लोक सभा क्षेत्र से 1991 1996 1999 2009 में चुनाव जीते वही मधेपुरा से चार बार 1998 व 2004 में लालू यादव से 2014 में आरजेडी के पप्पू यादव से और 2019 में जेडीयू के दिनेश यादव से चुनाव हारे।

2003 से 2016 तक जेडीयू के अध्यक्ष रहे शरद यादव ने राम विलास पासवान सहित अन्य नेताओं के साथ मिलकर बीपी सिंह से मंडल कमीशन की रिपोर्ट को लागू कराकर उत्तर भारत की राजनीति को बदल दिया था।मंडल आंदोलन के सूत्रधार रहे शरद यादव की छवि मंडल मसीहा के तौर पर देश भर उभरी ।1990 में बिहार में जनता दल के मुख्यमंत्री पद की दावेदारी आई तो उन्होंने बीपी सिंह के उम्मीदवार राम सुंदर दास को पीछे करके लालू प्रसाद यादव को मुख्यमंत्री बनवाया । हवाला कांड में पांच लाख रुपए के लेन देन के आरोप भी लगे जिसमे अदालत ने उन्हें बरी कर दिया।

आरोप के बाद उन्होंने नैतिकता के आधार पर लोक सभा से इस्तीफा दे दिया था।इमरजेंसी के दौरान करीब 18 महीने जेल में बंद रहे शरद यादव गांधी परिवार के गढ़ कहे जाने वाले अमेठी संसदीय क्षेत्र से राजीव गांधी के खिलाफ भी नाना जी देशमुख व चौधरी चरण सिंह के कहने पर चुनाव मैदान में उतरे थे।तब उन्होंने अमेठी की गलियों में गांधी परिवार को चुनौती पेश की ।विपक्षी नेताओं के तमाम कोशिशों के बावजूद भी वे राजीव गांधी से चुनाव हार गए।

1997 -98 में शरद यादव जब जनता दल के सांगठनिक चुनाव में अध्यक्ष चुने गए तो लालू यादव से गहरे मतभेद सामने आए ।उनके अध्यक्ष चुने जाने के बाद लालू यादव ने नाराज होकर राष्ट्रीय जनता दल बना ली थी।1990 के दौर में नीतीश कुमार मुलायम सिंह यादव लालू प्रसाद यादव जार्ज फर्नांडीज सरीखे नेता कांग्रेस के विरोध में खुलकर राजनीति में दो दो हाथ करने में जुटे थे।शरद यादव लगातार केंद्र की मोदी सरकार को सत्ता से हटाने के लिए लालू यादव मुलायम सिंह यादव नीतीश कुमार सहित अन्य नेताओं के बीच एकता कराने की कोशिश करते रहे।

(लेखक – लोक दस्तक के सह संपादक हैं)

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