वैश्विक पटल पर बढी़ है हिन्दी की पहचान, फिर भी भारत में कमजोर हैं हिंदी के विकास के प्रयास
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विश्व हिंदी दिवस पर आयोजित होने वाले जागरूकता कार्यक्रम ठंड की भेंट चढ गए।हिन्दी प्रेमी रजाई और हीटर के सहारे दिन भर पुस्तकों को पलटते देखे गये।हिन्दी प्रेमियों और विद्वानों से बातचीत कर स्वतंत्रता के सात दशक बाद भारत में हिंदी की दशा और दिशा की पड़ताल की गई।पुस्तक प्रेमी शिक्षक देवांशु सिंह ने कहा कि पहला हिंदी दिवस सम्मेलन 10 जनवरी 1974 को महाराष्ट्र के नागपुर में आयोजित हुआ था।
यह सम्मेलन अंतर्राष्ट्रीय स्तर का था, जिसमें 30 देशों के 122 प्रतिनिधि शामिल हुए थे। इस सम्मेलन का उद्देश्य हिंदी का प्रसार-प्रचार करना था। तब से विश्व हिंदी दिवस इसी तारीख यानी 10 जनवरी को मनाया जाने लगा।बाद में यूरोपीय देश नार्वे के भारतीय दूतावास ने पहली बार विश्व हिंदी दिवस मनाया था।कवि और लेखक बृजलाल कोरी ने कहा कि भारत में हिंदी दिवस 14 सितंबर को मनाया जाता है। इस दिन को मनाने की शुरुआत आजादी के तुरंत बाद हुई।
14 सितंबर 1946 को संविधान सभा ने देवनागरी लिपि में लिखी हिंदी को भारत की आधिकारिक भाषा स्वीकार किया।तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की सरकार ने संसद में 14 सितंबर को हिंदी दिवस के तौर पर मनाने का एलान किया। आधिकारिक तौर पर पहला राष्ट्रीय हिंदी दिवस 14 सितंबर 1953 को मनाया गया।
अंग्रेज देश से चले गये।सात दशक से अधिक समय बीत रहा है।अंग्रेजी अभी भी शासन,प्रशासन, न्यायालय और नौकरी की भाषा बनी हुई है,ऐसा क्यों।नौकरानी रानी बन गई और रानी नौकरानी।नौकरशाह ही हिन्दी के विकास में बाधा बने हुए है,जज भी निहित स्वार्थ मे हिन्दी को आगे बढते नहीं देखना चाहते।सरकार को भाषा शास्त्री डा.देवेंद्र नाथ शर्मा के सुझाव पर अमल करना चाहिए।जिस तरह राज्यों की आबादी के हिसाब से संसद सदस्यों की संख्या निर्धारित है,उसी तरह गैर हिंदी भाषी प्रांतों की नौकरियां भी निर्धारित की जा सकती हैं।
प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए सात हिंदी भाषी प्रांतों के प्रश्न पत्र अलग और गैर हिंदी भाषी प्रांतों के प्रश्न पत्र अलग बनने चाहिए।यह देश का दुर्भाग्य है कि भारत मे जिला न्याय धीश और सत्र न्यायधीश पी सी एस जे की परीक्षा के बाद बनता है और हाईकोर्ट और सुप्रीमकोर्ट के जज अभी भी वंशानुगत परम्परा और कोलेजियम सिस्टम से चुने जाते हैं।जब तक हिन्दी कोर्ट,कचहरी, न्यायालय और कार्यालय की भाषा नही बनती विश्व हिंदी दिवस मनाने का कोई लाभ नहीं।
डॉ. ज्वलंत कुमार शास्त्री
वरिष्ठ संस्कृत साहित्यकार
प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन 10 जनवरी 1975 को नागपुर में आयोजित किया गया था।यह दिवस विश्व मे हिंदी भाषा के प्रचार प्रसार को जागरूकता के लिए मनाया जाता है। इस वर्ष की थीम है-हिन्दी को जनमत की भाषा बनाना।बगैर उनकी मातृभाषा की महत्ता को न भूलें।10 जनवरी 1949,को संयुक्त राष्ट्र महासभा में पहली बार हिंदी बोली गई थी।
डॉ.सुरेन्द्र प्रताप यादव
विभागाध्यक्ष
हिन्दी विभाग
भारत की राजभाषा हिंदी धीरे धीरे वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बढ़ा रही है। इंटरनेट के बढ़ते प्रसार के इस दौर में हिंदी कंटेंट देखने और पढ़ने वालों की संख्या निरंतर बढ़ रही है। हिंदी को अपने अपनाने के पीछे एक कारण यह भी है कि हिंदी मातृभाषा नहीं अपितु भारत की संस्कृति से जोड़ने का माध्यम भी है ।जैसे-जैसे वैश्विक पटल पर भारत की छवि मजबूत हो रही है, हिंदी को जानने समझने की ललक भी बढ़ रही है। आज विश्व के 175 से अधिक विश्वविद्यालयों में हिंदी भाषा का पठन-पाठन हो रहा है। आज बीस से अधिक देशों में हिंदी बोली जा रही है। हिंदी विश्व की दूसरी बोली जाने वाली भाषा बन चुकी है।
डॉ.धनंजय सिंह
समाजशास्त्री