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सरदार उधम सिंह की जयंती पर विशेष….

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अमेठी। शहीद ऊधम सिंह की जयंती पर समाज कर्मियों और शिक्षकों ने उन्हें नमन‌ करते हुए अंग्रेजों को भारत से खदेड़ने मे उनके योगदान का स्मरण किया है।डा.धनंजय सिंह सरदार उधम सिंह 26 दिसंबर 1899 का जन्म पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम गांव में हुआ था।उनके पिता सरदार तेहाल सिंह जम्मू उपल्ली गांव में रेलवे चौकीदार थे।

उधम सिंह का असली नाम शेर सिंह था।सात साल की उम्र में उधम अनाथ हो गए थे।पहले उनकी मां चल बसीं और फिर उसके 6 साल बाद पिता ने दुनिया को अलविदा कह दिया था। मां-बाप के मरने के बाद उधम और उनके भाई को अमृतसर के सेंट्रल खालसा अनाथालय में भेज दिया गया था।वरिष्ठ पत्रकार संजीव भारती ने कहा कि सरदार उधम सिंह भारतीय समाज की एकता के लिए अपना नाम बदलकर राम मोहम्मद सिंह आजाद रख लिया था, जो भारत के तीन प्रमुख धर्मों का प्रतीक है।

साल 1917 में उधम के भाई साधु की भी मौत हो गई।1918 में उधम ने मैट्रिक के एग्जाम पास किए। साल 1919 में उन्होंने अनाथालय छोड़ दिया। उधम सिंह, शहीद भगत सिंह को अपना गुरु मानते थे।शहीद ऊधम सिंह जैसा शौर्य और बलिदान भारत के स्वाधीनता इतिहास में‌ अद्वितीय है।उन्होंने लंदन में जनरल डायर को मौत के घाट उतारकर जलियांवाला बाग हत्याकांड का बदला लिया था।राष्ट्रीय खिलाडी डा.अब्दुल हमीद ने कहा कि उधम सिंह, एक स्वतंत्रता सेनानी, जो गदर पार्टी से संबंधित थे, को हत्या करने का दोषी पाए जाने के बाद 31 जुलाई, 1940 को फांसी दे दी गई थी।

शहीद उधम सिंह ने अमृतसर में जलियांवाला बाग हत्याकांड का बदला लेने के लिए लंदन में भारत के पंजाब के पूर्व लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल ओ डायर की हत्या कर दी।पूर्व मा शि संघ के अध्यक्ष अब्दुल रसीद ने कहा कि उधम सिंह जी ब्रिटिशों की नृशंसता की उस घटना के न केवल प्रत्यक्षदर्शी थे, बल्कि उस हादसे ने उनके जीवन पर भी बड़ा प्रभाव डाला। जलियांवाला बाग की मिट्टी हाथ में लेकर उन्होंने जनरल डायर और पंजाब के तत्कालीन गवर्नर माइकल ओ डायर को सबक सिखाने की शपथ ली।पूर्व सांसद और बसपा के जोन इंचार्ज घनश्याम चंद्र खरवार ने कहा कि जलियांवाला बाग के 21 साल बाद 13 मार्च, 1940 को रॉयल सेंट्रल एशियन सोसाइटी की लंदन के कॉक्सटन हॉल में एक बैठक थी।

वहां ओ डायर भी वक्ताओं में शामिल थे। उधम सिंह ने एक किताब ली और उसके बीच का हिस्सा रिवाल्वर के आकार के अनुपात में काट दिया और रिवॉल्वर को उसमें छिपाकर रखा, फिर समय पर बैठक स्थल में पहुंच गए। बैठक खत्म होने के बाद दीवार के पीछे से मोर्चा संभालते हुए उधम सिंह जी ने ओ डायर पर गोलियां दाग दीं। ओ डायर को दो गोलियां लगी और तुरंत ही उनकी मौत हो गई।पूर्व प्रमुख और अमेठी पब्लिक स्कूल की प्रबंधक रश्मि सिंह उधम सिंह जी ने भागने की कोशिश नहीं की और वहीं अपनी गिरफ्तारी दी। उन पर मुकदमा चला अदालत में जज ने उसने पूछा कि माइकल ओ दायर के दोस्तों पर उन्होंने गोलियां क्यों नहीं चलाई? उधम सिंह का जवाब था, वहां कई औरतें मौजूद थीं और हमारी संस्कृति में औरतों पर हमला करना पाप है।

उधम सिंह जी की इस बहादुरी की काफी तारीफ हुई।शिक्षक रामचंद्र और इन्द्र पाल गौतम 4जून, 1940 को उधम सिंह जी को हत्या का दोषी ठहराया गया, और 31 जुलाई, 1940 को पेंटनविले जेल में उन्हें फांसी दे दी गई। वर्ष 1974 में ब्रिटेन ने उधम सिंह जी के अवशेष भारत को सौंप दिए। उत्तराखंड के एक जिले का नाम उनके नाम पर उधम सिंह नगर रखा गया है। उनके जीवन पर सरदार उधम सिंह नाम से एक फिल्म भी बनी है।उत्तर प्रदेश किसान सभा के जिला संयोजक आर के मिश ने कहा कि 13 अप्रैल 1919 का दिन इतिहास के पन्ने पर पंजाब के अमृतसर में स्वर्ण मंदिर के पास जालियांवाला बगीचे में एक दर्दनाक घटना घटी थी।वरिष्ठ अधिवक्ता कामरेड वासुदेव मौर्य कहते हैं कि उधम सिंह ने जलियांवाला बाग की मिट्टी हाथ में लेकर जनरल डायर और तत्कालीन पंजाब के गर्वनर माइकल ओ ड्वायर को सबक सिखाने की शपथ ली कि जब तक इस नरसंहार के असली गुनहगार को मौत की नींद नहीं सुला दूंगा, तब तक चैन से नहीं बैठूंगा।

अब डायर की मौत की नींद सुलाना उनका मुख्य लक्ष्य बन गया।अटेवा के जिला संयोजक मंजीत यादव ने कहा कि देश के इस नरसंहार का बदला लेने के लिए क्रांतिकारी उधम सिंह ने विदेश की तरफ रुख किया। साल 1920 में वे अफ्रीका पहुंचे। वर्ष 1921 में नैरोबी के रास्ते संयुक्त राज्य अमेरिका जाने की कोशिश की लेकिन वीजा न मिलने के कारण ऐसा हो नहीं पाया और उन्हें स्वदेश लौटना पड़ा।

— रिपोर्ट –वीरेन्द्र यादव

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