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मोबाइल और इंटरनेट युग में गुम होते मासूमों के बचपन

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शिवम द्विवेदी

हाईटेक होते युग में मासूम बच्चों का मोबाइल और इंटरनेट ही सहारा बना हुआ है I स्मार्टफोन के स्क्रीन में बच्चो के सिमटने की लत बन चुकी है I शारीरिक-बौद्धिक विकास के साथ खिलौने की दुनिया ही अपना बचपन भूल गए हैं I आभासी दुनिया ने बच्चों को चश्मे चढ़वा दिए है I भविष्य की रोशनी कमजोर पड़ती जा रही है I

वर्तमान में इलेट्रानिक दुनिया की भागदौड़ भरी व्यस्ततम जिंदगी में बच्चों के लिए साथ बिताने का समय लोग नहीं निकाल पाते! इसके अलावा रिश्तेदारी का व्यावहारिक ज्ञान भी पीछे छूट-सा गया है I नन्हें-मुन्नों की जिंदगी और हमारा नजरिए से कल्पना की उत्पत्ति होती है और मातृत्व दुलार भी सही तरीके से प्राप्त होता है I अब यह चिंता सताने लगी है कि कहीं कहानियां सुनाने की प्रथा विलुप्त न हो जाए I

ऐसा हुआ तो बच्चे लाड़-प्यार और कहानियों से वंचित हो जाएंगे हाईटेक होते युग में मोबाइल और इंटरनेट ही सहारा बन गए हैं I अभिभावकों को चाहिए कि बच्चों के लिए अपनी भागदौड़ भरी व्यस्ततम जिंदगी में से कुछ समय बच्चों को घर पर कहानियां सुनाने के लिए भी निकालें I इसके अभाव में बच्चों को तो स्मार्टफोन के स्क्रीन में सिमटने की लत पड़ गई I

जिसने अभी बैठना सीखा हो वह भी मोबाइल का दीवाना दिखता है अगर उसके हाथ से मोबाइल ले लिया जाता है तो वह रोने लगता है उससे बड़े बच्चे जो दूसरी या तीसरी कक्षा में पढ़ते हैं व यूट्यूब पर कार्टून देखना सीख गए ऐसा लगता बच्चे शारीरिक-बौद्धिक विकास के साथ खिलौने की दुनिया ही भूल गए है I खिलौनों का व्यापार भी इससे प्रभावित हुआ है कुल मिला कर शारीरिक बौद्धिक गतिविधि कमजोर हो गई I

मोबाइल के आभासी दुनिया ने बच्चों को चश्मे चढ़वा दिए I कहने का मतलब है कि दिन और रात मोबाइल में ही लगे रहते हैं I अगर घर पर मेहमान आते हैं तो वे हमसे कुछ कह रहे होते हैं मगर लोगों का ध्यान बस फेसबुक वाट्सएप्पवाट्सएप्प पर जवाब देने में लगा रहता है और उनकी समझाइश में ही बीत जाता है I मेहमान भी रूखेपन से व्यवहार में जल्द उठने की सोचते हैं I

घर के काम तो पिछड़ ही रहे फेसबुक वाट्सएप्प का चस्का ऐसा है कि अगर रोजाना सुबह-शाम हाजिरी दर्ज न हो तो रिश्तों में नाराजगी आ जाती है I बच्चों को ज्ञानार्जन में उपयोगी होने के लिए कहानियों गीत संगीत व्यायाम खेल आदि पर ध्यान देना होगा बजाय मोबाइल पर ही लगे रहने के का नतीजा बचपना ही गुम हो चुका है ।

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