Lok Dastak

Hindi Samachar, हिंदी समाचार, Latest News in Hindi, Breaking News in Hindi.Lok Dastak

कच्ची उम्र में पक्की सीख.. #35_टुकड़ों_वाला_प्यार

1 min read
Spread the love

 

श्रद्धा वॉकर की नृशंस हत्या को वैसे तो कई महीने बीत गए हैं, लेकिन कुछ दिनों पहले खुले इस राज़ से हर दिन नए-नए खुलासे होते चले जा रहे हैं। किस्सों-कहानियों के माफिक बुनी गई यह दर्दनाक मर्डर मिस्ट्री दुनिया के लिए एक किस्सा ही बनकर रह गई है। उसके माता-पिता और परिवार अपनी बेटी को इतने भयानक तरीके से खोने के बाद शायद ही अब कभी सदमे से बाहर आ सकेंगे। हर दिन एक पछतावा उन्हें अंदर ही अंदर खाए जाता होगा कि काश सब कुछ बर्बाद होने से पहले वे इसे रोक पाते। लेकिन सच्चाई यह है कि अब वे लाख चाहकर भी अपनी बेटी को खुद के जीवन की आहुति देने वाला निर्णय लेने से नहीं रोक सकते हैं, और न ही उसे अब वापस ला सकते हैं। यह पहला मामला नहीं है, जहाँ प्यार का अंत खून-खराबे से हुआ हो और माता-पिता अनगिनत सवालों व शंकाओं के जंजाल में फँसकर रह गए हों।

अतीत को खँगालें, तो ऐसे अनगिनत मामले मिलेंगे, जब युवा आँख मूंदकर अपनी इच्छाओं के पीछे भागते-भागते रास्ता भटक गए। यहाँ सबसे बड़ी जिम्मेदारी माता-पिता की है कि वे अपने बच्चों को जीवन की कड़वी सच्चाइयों के बारे में बचपन से ही सिखाएँ, क्योंकि जीवन के इस पड़ाव पर वे अपना अधिकांश समय माता-पिता के साथ बिताते हैं। आज के समय को देखते हुए कच्ची उम्र में ही बच्चों को सही और गलत, सच और झूठ, अच्छे स्पर्श और बुरे स्पर्श तथा अच्छे व्यक्ति और बुरे व्यक्ति के बीच के अंतर को सिखाने की जरूरत है।

लेकिन होता इसका उल्टा है, माता-पिता बच्चों से बुरे तथ्य और कड़वी सच्चाइयाँ छिपाकर रखते हैं। इसका दुष्परिणाम यह होता है कि समान उम्र में या उम्र का एक पड़ाव पार करने के बाद जब उन्हें अच्छे और बुरे में फर्क समझ आता है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है, और सिवाए पछतावे के कुछ भी हाथ नहीं आता है। श्रद्धा के साथ यही तो हुआ है। इस बात के कई सबूत इंटरनेट पर भरे पड़े हैं कि श्रद्धा आफताब को अच्छी तरह से जानती थी। नहीं जानती, तो शायद उसके साथ सालों न बिताती। उसके बारे में सब कुछ जानने के बावजूद श्रद्धा यह न जान सकी कि आफताब उसके भरोसे के रत्ती भर भी काबिल नहीं था, जिसने प्यार के बहाने उसकी जान ले ली।

आखिर कब बच्चों को यह सिखाया जाएगा कि बात-बात पर जान से मारने की धमकी देना, परिवार और दोस्तों का बरसों पुराना साथ छोड़ने के लिए मजबूर करना या अन्य किसी तरह से हिंसा करना अच्छे व्यक्ति की निशानी नहीं है? मीडिया के अनुसार यही तो किया आफताब ने। उन्हें कब बताया जाएगा कि ऐसे लोगों की भनक भर लग जाने से उनसे दूर हो जाना चाहिए? वो दिन गए, जब कहा था कि अनजान व्यक्ति कुछ खाने को दे, तो खाना नहीं, यह कहीं ले जाए, तो उसके साथ जाना नहीं। अब बात इससे बहुत आगे बढ़ गई है, बच्चों को यह बताना होगा कि अच्छाई का मुखौटा ओढ़े व्यक्ति के पीछे भी दरिंदा छिपा हो सकता है। इसके अलावा, माता-पिता को अपने बच्चों के लिए सतर्क रहने और उनकी गतिविधियों पर बारीकी से ध्यान देने की आवश्यकता है। उनके दोस्तों और संगत पर खास तौर पर ध्यान दिया जाना चाहिए।

मॉडर्न होती दुनिया में, पहले की तुलना में सब कुछ बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा है। टेक्नोलॉजी और समाज की प्रगति के साथ ही बच्चे भी अपनी उम्र की तुलना में बहुत जल्दी बड़े हो रहे हैं। इसलिए आज के समय में माता-पिता को शुरू से ही अपने बच्चों के प्रति सतर्क रहने की जरूरत है। कुछ गलत सामने आने पर बच्चों से बिगड़ने के बजाए प्रेम से रहें। अच्छे और बुरे दोनों उदाहरण देने के साथ उन्हें जीवन के मूल्य सिखाएँ। परियों की कहानियों और मिथ्यों से परे वास्तविक तथ्यों से उन्हें रूबरू कराएँ, तब जाकर ही आफताब जैसे दरिंदों से श्रद्धा जैसी मासूमों को बचाया जा सकेगा।

 

– अतुल मलिकराम((ये लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Copyright ©2022 All rights reserved | For Website Designing and Development call Us:-8920664806
Translate »