SCO Summit : तियानजिन में संपन्न हो रहा एससीओ शिखर सम्मेलन, पुतिन ने भारत-चीन की भूमिका को सराहा
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विशेष रिपोर्ट – रवि नाथ दीक्षित
चीन के ऐतिहासिक और औद्योगिक महत्व वाले शहर तियानजिन में इस वर्ष का शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया। दो दिवसीय इस बैठक का आज समापन होगा । इस बार सम्मेलन में सुरक्षा, व्यापार, यूरेशियन सहयोग और अंतरराष्ट्रीय संकटों के समाधान जैसे गंभीर मुद्दों पर गहन चर्चा हुई।
रूस, चीन और भारत सहित कई सदस्य देशों के शीर्ष नेताओं ने इसमें हिस्सा लिया और अपने-अपने दृष्टिकोण रखे।
पुतिन का संबोधन: भारत-चीन के प्रयासों की प्रशंसा
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने पूर्ण सत्र को संबोधित करते हुए सबसे पहले यूक्रेन संकट का जिक्र किया। उन्होंने साफ कहा कि इस मसले पर भारत और चीन ने शांति बहाली तथा संवाद को आगे बढ़ाने में सकारात्मक योगदान दिया है।
पुतिन ने यह भी कहा कि वह अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ हाल ही में अलास्का में हुई बैठक के अनुभवों और सहमतियों को द्विपक्षीय वार्ताओं में अन्य नेताओं के साथ साझा करेंगे। उनके अनुसार यह बैठक भविष्य में समाधान खोजने की दिशा में सहायक सिद्ध हो सकती है,
अपने भाषण में पुतिन ने एक बार फिर रूस की आधिकारिक स्थिति को दोहराया। उन्होंने स्पष्ट किया कि यूक्रेन की मौजूदा अस्थिरता किसी सैन्य आक्रमण का परिणाम नहीं है, बल्कि पश्चिमी देशों द्वारा समर्थित कीव में हुए तख्तापलट से हालात बिगड़े।
उन्होंने दावा किया कि अलास्का शिखर सम्मेलन में अमेरिका और रूस के बीच जो सहमति बनी है, उससे यूक्रेन में शांति और स्थिरता लाने का मार्ग खुल सकता है। यह बयान स्पष्ट करता है कि रूस अभी भी इस संकट को बाहरी हस्तक्षेप की उपज मानता है और इसे अंतरराष्ट्रीय संवाद से हल करने का पक्षधर है।
पुतिन ने अपने संबोधन में कहा कि एससीओ का महत्व इसीलिए बढ़ रहा है क्योंकि यह संगठन अब यूरोप और अटलांटिक देशों पर आधारित पारंपरिक सुरक्षा ढांचे का विकल्प प्रस्तुत कर रहा है।
उनके अनुसार एससीओ एक ऐसी यूरेशियन सुरक्षा प्रणाली की नींव रख रहा है जो समानता और बहुपक्षीय सहयोग पर आधारित होगी। इससे सदस्य देशों को न केवल सुरक्षा बल्कि आर्थिक सहयोग के क्षेत्र में भी नई संभावनाएं मिलेंगी।
SCO की वैश्विक भूमिका
रूस के राष्ट्रपति ने शंघाई सहयोग संगठन को अंतरराष्ट्रीय मुद्दों के समाधान में एक मजबूत और प्रभावी मंच बताया। उन्होंने कहा कि एससीओ सिर्फ चर्चा का स्थान नहीं है, बल्कि यहां लिए गए फैसले व्यावहारिक और लंबे समय तक असर डालने वाले होते हैं।
पुतिन ने यह भी जोर दिया कि सदस्य देशों के बीच व्यापार और निवेश संबंधों को और मजबूत किया जा रहा है। खासकर स्थानीय या राष्ट्रीय मुद्राओं में व्यापार बढ़ने से डॉलर पर निर्भरता कम हो रही है और इससे सदस्य देशों की आर्थिक संप्रभुता मजबूत होगी।
सम्मेलन की शुरुआत चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के संबोधन से हुई। उन्होंने संगठन के सभी सदस्य देशों से न्याय, निष्पक्षता और संतुलित दृष्टिकोण बनाए रखने की अपील की।
शी जिनपिंग ने द्वितीय विश्व युद्ध की ऐतिहासिक सच्चाइयों का सम्मान करने और शीत युद्ध जैसी मानसिकता से दूर रहने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि धमकी और टकराव की नीतियां किसी भी तरह से विकास और शांति के लिए उचित नहीं हैं।
उनका संदेश यह था कि वैश्विक राजनीति में स्थिरता तभी आ सकती है जब सहयोग को प्राथमिकता दी जाए और किसी भी प्रकार की धमकाने वाली प्रवृत्तियों को हतोत्साहित किया जाए, पुतिन के बयान से यह स्पष्ट है कि भारत की भूमिका को गंभीरता से लिया जा रहा है।
भारत हमेशा से यह मानता रहा है कि किसी भी अंतरराष्ट्रीय विवाद का समाधान संवाद और कूटनीति से होना चाहिए। यही कारण है कि यूक्रेन संकट के मामले में भी भारत ने न तो पश्चिमी देशों का पक्ष लिया और न ही रूस का, बल्कि लगातार शांति वार्ता पर जोर दिया। पुतिन की सराहना इस बात का संकेत है कि भारत का यह संतुलित रुख वैश्विक स्तर पर प्रभाव डाल रहा है।
तियानजिन में आयोजित यह बैठक केवल कूटनीतिक रस्म अदायगी नहीं थी, बल्कि एक ऐसा मंच साबित हुई जिसने नए अंतरराष्ट्रीय समीकरणों का संकेत दिया। रूस और चीन जहां अमेरिका तथा यूरोप के दबाव का सामना कर रहे हैं, वहीं भारत जैसे देश एक संतुलनकारी भूमिका निभा रहे हैं।
एससीओ का विस्तार और इसमें बढ़ती सक्रियता यह बताती है कि आने वाले समय में यह संगठन वैश्विक निर्णयों और नीतियों पर और अधिक असर डालेगा।
तियानजिन शिखर सम्मेलन ने यह संदेश दिया कि वैश्विक चुनौतियों का समाधान केवल पश्चिमी मॉडल से नहीं, बल्कि बहुपक्षीय सहयोग और आपसी संवाद से ही संभव है। पुतिन का भारत-चीन की सराहना करना इस बात का प्रमाण है कि एशियाई देश अब शांति और स्थिरता की दिशा में निर्णायक भूमिका निभा रहे हैं।
शी जिनपिंग का शीत युद्ध की मानसिकता छोड़ने का आह्वान भी मौजूदा दौर की सबसे बड़ी ज़रूरत है। इस तरह यह सम्मेलन न केवल अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में एक नया अध्याय जोड़ता है, बल्कि भविष्य के लिए एक नई दिशा भी तय करता है।

