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SCO Summit 2025 : तियानजिन शिखर सम्मेलन और अमेरिकी मीडिया का नजरिया…!

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विशेष रिपोर्ट रवि नाथ दीक्षित

तियानजिन, चीन।

चीन के तियानजिन शहर में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन केवल एशियाई राजनीति तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इसने अमेरिका के मीडिया जगत में भी हलचल पैदा कर दी। अमेरिकी अखबारों और चैनलों ने इस बैठक को न केवल व्यापक कवरेज दी, बल्कि इसे अंतरराष्ट्रीय शक्ति संतुलन में बदलाव की ओर इशारा करने वाला कदम बताया। खासतौर पर इस सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चीन में स्वागत और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ उनकी बातचीत ने अमेरिकी पत्रकारों और विश्लेषकों का ध्यान खींचा।

 

अमेरिकी मीडिया का बड़ा हिस्सा पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की विदेश नीति पर सवाल उठाता दिखा। अधिकांश अखबारों ने लिखा कि ट्रंप की नीतियों ने भारत-अमेरिका संबंधों को गहरी चोट पहुंचाई है। उनका मानना है कि पिछले 25 सालों से अमेरिका और भारत के बीच जो विश्वास और सहयोग धीरे-धीरे बना था, उसे ट्रंप ने अपने फैसलों से कमजोर कर दिया।

‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट कहा कि ट्रंप ने भारत को आर्थिक और कूटनीतिक रूप से चीन का विकल्प बनाने की कोशिश तो की, लेकिन उनके जल्दबाज़ी भरे और असंतुलित निर्णयों ने इस संभावना को खत्म कर दिया। यही वजह है कि आज भारत, अमेरिका की बजाय रूस और चीन के करीब दिख रहा है।

सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भव्य स्वागत और राष्ट्रपति शी जिनपिंग का उनके साथ गर्मजोशी भरा व्यवहार भी अमेरिकी मीडिया की सुर्खियों में रहा। रिपोर्ट्स में यह सवाल प्रमुखता से उठाया गया कि क्या भारत की चीन और रूस के साथ बढ़ती निकटता वाशिंगटन और नई दिल्ली के रिश्तों को कमजोर कर सकती है।

‘सीएनएन’ ने अपने कवरेज में लिखा कि चीन इस सम्मेलन के जरिए यह दिखाने में सफल रहा कि वह मोदी और पुतिन जैसे नेताओं को साथ लेकर नई वैश्विक व्यवस्था की नींव रखना चाहता है,

‘द वाशिंगटन पोस्ट’ ने इस आयोजन को चीन की कूटनीतिक रणनीति का हिस्सा बताया। अखबार ने लिखा कि राष्ट्रपति शी जिनपिंग एससीओ को केवल सुरक्षा मंच तक सीमित नहीं रखना चाहते, बल्कि इसे आर्थिक सहयोग और राजनीतिक प्रभाव के बड़े ब्लॉक के रूप में देख रहे हैं।

इसी तरह ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ ने लिखा कि चीन इस सम्मेलन का इस्तेमाल अपनी ताकत दिखाने और अमेरिका को चुनौती देने के लिए कर रहा है। अखबार ने यह भी उल्लेख किया कि मोदी और पुतिन जैसे नेताओं की उपस्थिति ने चीन के इस संदेश को और अधिक मजबूत बना दिया है,

‘द इकोनॉमिस्ट’ ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि ट्रंप के बेमतलब के फैसलों ने भारत को अमेरिका से दूरी बनाने पर मजबूर कर दिया। अखबार ने लिखा कि भारत, जो कभी अमेरिकी नीति के लिए चीन का विकल्प समझा जाता था, अब उसी चीन के साथ सहयोग के नए अवसर तलाश रहा है। यह स्थिति अमेरिका के लिए गहरी चिंता का विषय है।

रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि भारत ने खुद को वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में चीन का विकल्प बनाने के लिए वर्षों तक मेहनत की थी, लेकिन अब उसकी नीति में बदलाव दिखाई देता है,

‘वाल स्ट्रीट जर्नल’ ने इस सम्मेलन को अमेरिका-चीन प्रतिस्पर्धा के बड़े मंच के रूप में देखा। अखबार ने लिखा कि चीन ने इस मौके का इस्तेमाल खुद को वैश्विक नेतृत्व की भूमिका में पेश करने के लिए किया। यदि भारत इस मंच पर अपनी भागीदारी और अधिक सक्रिय करता है, तो यह सीधे-सीधे अमेरिका की इंडो-पैसिफिक रणनीति को चुनौती दे सकता है।

इस विश्लेषण में यह भी कहा गया कि अमेरिका, जो भारत को एशिया में अपना मजबूत सहयोगी मानता रहा है, उसे अब नई रणनीति पर विचार करना होगा

अमेरिका के अलग-अलग चैनलों की कवरेज में भी फर्क देखने को मिला। जहां सीएनएन और ब्लूमबर्ग ने इसे विस्तार से प्रस्तुत किया और चीन की रणनीति पर प्रकाश डाला, वहीं फॉक्स न्यूज ने इसे सीमित रूप से कवर किया। फॉक्स न्यूज ने सम्मेलन की खबरें तो दीं, लेकिन उतनी गहराई से विश्लेषण नहीं किया जितना अन्य चैनलों ने किया,

कुल मिलाकर, तियानजिन एससीओ सम्मेलन ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति में नई हलचल पैदा कर दी है। अमेरिकी मीडिया के लिए यह आयोजन एक संकेत है कि शक्ति संतुलन बदल रहा है। चीन अपनी रणनीति के जरिए खुद को वैश्विक नेतृत्व की भूमिका में स्थापित करना चाहता है, वहीं भारत का उसके साथ कदम मिलाना अमेरिका के लिए चिंता का कारण बन गया है।

अमेरिकी अखबारों और चैनलों की कवरेज से यह स्पष्ट होता है कि वाशिंगटन को अब अपने रिश्तों और नीतियों पर दोबारा विचार करने की जरूरत है, क्योंकि एशिया में बदलते समीकरण आने वाले वर्षों में अंतरराष्ट्रीय राजनीति की दिशा तय कर सकते हैं।

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