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Wild Animals : वन्यजीवों के अस्तित्व पर मंडराता संकट

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PRISENTED BY ARVIND JÀYTILAK 

विश्व वन्यजीव कोष (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) की ‘लिविंग प्लैनेट’ रिपोर्ट (एलपीआर) 2024 का यह खुलासा चिंतित करने वाला है कि 1970 से अब तक वन्यजीवों की आबादी में 73 फीसदी की कमी आ चुकी है। रिपोर्ट के मुताबिक लैटिन अमेरिका और कैरिबियन में जैव विविधता सबसे अधिक प्रभावित हुई है। मीठे पानी के पारिस्थितिक तंत्र में 85 फीसदी की कमी आई है। प्रवाल भित्तियों का निरंतर विरंजन हो रहा है। अमेजन वर्षावन और उपध्रुवीय गाइरे का पतन हो रहा है। ग्रीनलैंड और पश्चिमी अंटार्कटिका की बर्फ की चादरें पिघर रही हैं। रिपोर्ट के मुताबिक इन परिस्थितियों के लिए एकमात्र जलवायु परिवर्तन जिम्मेदार है। रिपोर्ट में चेताया गया है कि पृथ्वी मानवता के लिए खतरनाक बिंदुओं के करीब पहुंच रही है और आने वाले पांच वर्षों में जलवायु और प्रकृति से जुड़े संकट से निपटने के लिए एक सकारात्मक सामुहिक प्रयास की जरुरत होगी।

उल्लेखनीय है कि वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर की यह रिपोर्ट पृथ्वी पर होने वाले पर्यावरणीय बदलावों और जैव विविधता में कमी पर प्रकाश डालती है। देखें तो यह पहली बार नहीं है जब वन्यजीवों की घटती आबादी को लेकर चिंता जताया गया है। अभी गत वर्ष पहले नेशनल ऑटोनॉमस यूनिवर्सिटी ऑफ मैक्सिको और स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने दावा किया था कि पृथ्वी अपने छठे व्यापक विनाश युग में प्रवेश कर चुकी है और वन्य जीवों के खत्म होने की प्रक्रिया जारी है। वैज्ञानिकों का आंकलन है कि आगामी वर्षों में जीवों की कुल प्रजातियों में से तकरीबन 75 प्रतिशत विलुप्त हो सकती है। यह शोध प्रासीडिंग्स ऑफ द नेशलन एकेडमी ऑफ साइंसेज नामक जर्नल में प्रकाशित हुआ था।

इस रिपोर्ट के आंकड़ों के मुताबिक पिछले सौ वर्षों में धरती से 200 वर्टीबेट जीवों की प्रजातियां विलुप्त हुई है। जबकि इतनी प्रजातियों की विलुप्ति दस हजार वर्षों में होनी चाहिए थी। शोध के नतीजे बताते हैं कि अब तक पृथ्वी पर जितने जीव हुए उनमें से 50 प्रतिशत से अधिक लुप्त हो चुके हैं। इनकी संख्या अरबों में है। वर्ल्ड वाइल्ड फंड एवं लंदन की जूओलॉजिकल सोसायटी की रिपोर्ट से भी खुलासा हो चुका है कि 2020 तक धरती से दो तिहाई वन्य जीव खत्म हो जाएंगे। इस रिपोर्ट में कहा गया था कि दुनिया भर में हो रही जंगलों की अंधाधुंध कटाई, बढ़ता प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के कारण पिछले चार दशकों में वन्य जीवों की संख्या में भारी कमी आयी है। इस रिपोर्ट के मुताबिक हाथी और गोरिल्ला जैसे लुप्तप्राय जीवों के साथ-साथ गिद्ध और रेंगने वाले जीव तेजी से खत्म हुए हैं।

रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि 2025 तक 67 प्रतिशत वन्य जीवों की संख्या में कमी आ सकती है। यहां ध्यान देने वाली बात यह कि खत्म हो रहे जीवों में सिर्फ जंगली जीव ही नहीं बल्कि पहाड़ों, नदियों एवं महासागरों में रहने वाले जीव भी शामिल हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक 1970 से अब तक इन जीवों की संख्या में तकरीबन 81 प्रतिशत की कमी आयी है। जीवों के लुप्त होने का एक महत्वपूर्ण कारण इंसानों द्वारा शिकार का लालच भी है। उदाहरण के लिए आर्कटिक लोमड़ियों की संख्या तेजी से घट रही है। गत वर्ष पहले फिनलैंड की एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था जस्टिस फॉर एनीमल ने यह चिंता जताया कि इंसानी लालच की वजह से वन्य जीवों का अस्तित्व मिट रहा है। आर्कटिक लोमड़ियां माइनस 70 डिग्री सेंटीग्रेड से कम तापमान में भी अपने विशेष गर्म फर के कारण प्रसिद्ध हैं। इनका शिकार कर मोटा धन कमाया जा रहा है।

उल्लेखनीय है कि वन्य प्राणी संरक्षण की अंतर्राष्ट्रीय संस्था ने आर्कटिक लोमड़ियों को सबसे कम चिंता वाली श्रेणी में रखा है। इसके बावजूद भी लक्जरी और लाइफस्टाइल के महंगे उत्पाद बनाने वाली अंतर्राष्ट्रीय कंपनियां इनके फर महंगे दामों में बेचकर भारी मुनाफा कमा रही हैं। उदाहरण के तौर पर लुई विटन नामक प्रसिद्ध ब्रांड लोमड़ियों के फर से जैकेट बनाकर तकरीबन 6000 डॉलर में बेचता है। फिनलैंड में फर बेचने वाली सबसे बड़ी कंपनी सालाना 25 लाख लोमड़ी की खाल बेचती है। उसी का परिणाम है कि यूरोपिय देश नार्वे, स्वीडन और फिनलैंड में आर्कटिक लोमड़ियों की संख्या तेजी से कम रही है। फिलहाल इन तीनों देशों में आर्कटिक लोमड़ियों की संख्या घटकर 200 से भी कम हो चुकी हैं। आसमान में अपने करतबों के लिए चर्चित पक्षी हेन हैरियर का बड़े पैमाने पर शिकार हो रहा है।

ब्रिटेन में रॉयल सोसायटी फॉर से प्रोटेक्शन ऑफ बर्डस् द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण से खुलासा हुआ है कि पिछले 6 साल में ब्रिटेन में हेन हैरियल की कुल संख्या यानी 545 जोड़ों में 88 जोड़ों यानी 13 प्रतिशत की कमी आयी है। इन पक्षियों की संख्या में ब्रिटेन में हर जगह कमी आ रही है। इंग्लैंड में इन पक्षियों के प्रजनन करने वाले महज चार जोड़े बचे हैं। स्कॉटलैंड में यह संख्या 505 से घटकर 460 और वेल्स में 57 से घटकर 35 रह गयी है। इसी तरह चीनी पैंगोलिन और गैंडा की भी तादाद कम हो रही है। पिछले एक दशक में अफ्रीका में 1.11 लाख हाथियां इंसनी क्रुरता का शिकार बनी। अफ्रीका में हर वर्ष 211 मिट्रिक टन हाथी दांतों का अवैध वैश्विक कारोबार होता है।

भारत की बात करें तो यहां अवैध शिकार से सालाना 40 प्रतिशत हाथियों की मौत होती है। वन्य जीवन पर खतरे के महत्वूर्ण कारणों में 71.8 प्रतिशत शिकार, 34.7 प्रतिशत बढ़ता शहरीकरण, 19.4 प्रतिशत ग्लोबल वार्मिंग, 21.9 प्रतिशत प्रदूषण और 62.2 प्रतिशत खेत बनते जंगल मुख्य रुप से जिम्मेदार है। इसी तरह जलीय जीवों के अवैध शिकार के कारण भी 300 प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर पहुंच चुकी हैं। जलीय जीवों के नष्ट होने का एक अन्य कारण फफूंद संक्रमण और औद्योगिक इकाईयों का प्रदूषण भी है। इसके अलावा प्राकृतिक आपदाएं, विभिन्न प्रकार के रोग, जीवों की प्रजनन क्षमता में कमी भी प्रमुख कारण हैं। इन्हीं कारणों की वजह से यूरोप के समुद्र में ह्वेल और डॉल्फिन जैसे भारी-भरकम जीव तेजी से खत्म हो रहे हैं।

एक आंकड़े के मुताबिक भीड़ बकरियों जैसे जानवरों के उपचार में दिए जा रहे खतरनाक दवाओं के कारण भी पिछले 20 सालों में दक्षिण-पूर्व एशिया में गिद्धों की संख्या में कमी आयी है। भारत में ही पिछले एक दशक में पर्यावरण को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले गिद्धों की संख्या में 97 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गयी है। गिद्धों की कमी से मृत पशुओं की सफाई, बीजों का प्रकीर्णन और परागण कार्य बुरी तरह प्रभावित हुआ हो रहा है और किस्म-किस्म की बीमारियां तेजी से पनप रही हैं। गिद्धों की तरह अन्य प्रजातियां भी तेजी से विलुप्त हो रही हैं। वन्य जीवों के वैश्विक परिदृश्य पर नजर डालें तो पृथ्वी के समस्त जीवधारियों में से ज्ञात एवं वर्णित जातियों की संख्या लगभग 18 लाख है। लेकिन यह संख्या वास्तविक संख्या के तकरीबन 15 प्रतिशत से कम है।

जहां तक भारत का सवाल है तो यहां विभिन्न प्रकार के जीव बड़ी संख्या में पाए जाते हैं। जीवों की लगभग 75 हजार प्रजातियां पायी जाती है। इनमें तकरीबन 350 स्तरनधारी, 1250 पक्षी, 150 उभयचर, 2100 मछलियां, 60 हजार कीट व चार हजार से अधिक मोलस्क व रीढ़ वाले जीव हैं। भारत में जीवों के संरक्षण के लिए कानून बने हैं। लेकिन इसके बावजूद भी जीवों का संहार जारी है। जैव विविधता को बचाने के लिए आवश्यक है कि जीवों को बचाया जाए। अस्तिव के संकट में फंसे जीवों को बचाने के लिए जरुरी है कि धरती के बढ़ते तापमान एवं प्रदूषण की रोकथाम की दिशा में ठोस पहल हो। इसके अलावा वन क्षेत्र को कम करके कृषि विस्तार की योजनाओं पर भी रोक लगनी चाहिए। स्थानान्तरण खेती को नियंत्रित किया जाए तथा यदि संभव हो तो उसे समाप्त ही कर दिया जाए। नगरों के विकास के लिए वनों की कटाई पर भी रोक लगनी चाहिए। लेकिन त्रासदी है कि संपूर्ण विश्व में बड़े पैमाने पर वनों की कटाई जारी है।

 

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