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International Women’s Day नवाचारों का बीज रोपती आधी आबादी-

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PRESENTED BY ARVIND JÀYTILAK 

आज अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस है। दुनिया की सभी महिलाओं को आसमान भर बधाई और मंगल शुभकामनाएं। सिर्फ इसलिए नहीं कि आज उनका दिन है। इसलिए भी नहीं कि वे सृष्टि की निरंतरता की अनवरत व आधारभूत परमतत्व हैं। इसलिए भी नहीं कि उनके आंचल में दूध और आंखों में पानी है। इसलिए भी नहीं कि वे हौसलों की उड़ान से जहान भर की बुलंदियों से खेल रही हैं। उन्हें बधाई और मंगल शुभकामनाएं इसलिए कि वे सदियों से गढ़ी-बुनी वर्जनाओं के खोल को धूल-धुसरित कर एक नए मूल्य और प्रतिमान को गढ़ रही हैं। उन्हें बधाई इसलिए भी कि योनि के कठघरे की परिधि से बाहर निकल अपने हक-हकूक की प्रस्तावना का इंकलाब भर रही हैं।

उन्हें बधाई इसलिए भी कि हजारों साल से गढ़े-बुने गए समाज के एकध्रुवीय स्वरुप, चरित्र एवं चिंतन की दायरे का विस्तार कर रही हैं। उन्हें बधाई इसलिए भी कि वे स्वयं के मापने व परखने के पूर्वाग्रही सांचे व सोच को चकनाचूर कर पुरुषवादी कवच का विन्यास कर रही हैं। उन्हें बधाई इसलिए कि वे असमानता और अन्याय के खिलाफ तनकर खड़ा होने के नवाचारों का बीज रोप रही हैं। उन्हें बधाई इसलिए भी कि वे स्वयं के इतिहासपरक मूल्यांकन को रद्द कर नई व्याख्या को आयाम दे रही हैं। उन्हें बधाई इसलिए भी कि उनकी नई सोच और जीवन-मूल्य को अब दुनिया का हर समाज आत्मसात कर रहा है। बदलाव के गुणसूत्र को मान्यता दे रहा है। बदलाव की इस सहज प्रतिध्वनि से असमानता की लौह-बेड़ियां स्वतः पिघल रही हैं। नतीजा सामने हैं। कल तक हम लैंगिक असमानता, हिस्सेदारी व भागीदारी को लेकर चिंतित थे। लेकिन आज बदलाव को चक्र घुमता हुआ साफ दिख रहा है।

अब लैंगिक असमानता में तेजी से कमी दिखने लगी है। अभी गत वर्ष ही राष्ट्रीय परिवार सर्वेक्षण के आंकड़ों से खुलासा हुआ कि महिला स्वास्थ्य और शिक्षा में सुधार हुआ है। महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा की वारदातों में कमी आयी है। वैवाहिक हिंसा पिछले एक दशक में घटी है। सर्वोच्च अदालत ने बेटियों को राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए) की प्रवेश परीक्षा में शामिल होने की मंजूरी दे दी है। सरकार भी तैयार है। लेकिन मौंजू सवाल यह है कि क्या समानता के मीनार पर आधी-आबादी विराजमान हो गयी है? बिल्कुल नहीं। देखा जाए तो अभी भी राष्ट्रीय महत्व के संस्थानों, व्यवसायिक पाठ्यक्रमों में आधी-आबादी की मौजूदगी आनुपातिक रुप से कम है। अखिल भारतीय उच्च शिक्षा सर्वे (एआईएसएचई) की रिपोर्ट से उद्घाटित हो चुका है कि राष्ट्रीय महत्व के संस्थानों और व्यवसायिक पाठ्यक्रमों में बेटियों का नामांकन तुलनात्मक रुप से कम है।

शिक्षा मंत्रालय द्वारा जारी सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक छात्राओं की मौजूदगी राष्ट्रीय महत्व के संस्थानों, सरकारी डीम्ड विश्वविद्यालयों और राज्य एवं निजी विश्वविद्यालयों में पुरुषों के मुकाबले कम है। इसी तरह राज्य विधान अधिनियम के तहत आने वाले संस्थानों, सरकारी विश्वविद्यालयों और केंद्रीय विश्वविद्यालयों में भी उनकी भागीदारी कम है। आर्थिक उपक्रमों में भागीदारी की बात करें तो देश के कंपनी बोर्ड में महिला प्रतिनिधित्व की भागीदारी ऊंट के मुंह में जीरा समान है। मुठ्ठी भर महिलाएं नेतृत्वकर्ता की भूमिका में हैं। श्रम के क्षेत्र में नजर दौड़ाएं तो यहां भी पुरुषों के मुकाबले महिलाओं का प्रतिनिधित्व दयनीय है। प्रशासनिक नौकरियों में महिलाओं की भागीदारी कम है।

आंकड़े बताते हैं कि आईएएस में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 20 फीसदी से भी कम है। बैंकों में 22 प्रतिशत के आसपास है। नौकरियों के मामले में विश्व बैंक अपनी रिपोर्ट में पहले ही कह चुका है कि दुनिया भर के कई देशों में महिलाओं की आर्थिक उन्नति में कानूनी बाधाएं हैं। इसी कारण महिलाओं को नौकरियां छोड़नी पड़ रही हैं। उन्हें अपने खर्च को सीमित करना पड़ रहा है। अच्छी बात है कि भारत में इस तरह का भेदभावकारी कानून नहीं है। लेकिन सच यह भी है कि भारतीय समाज पूरी तरह से दकियानूसी विचारों से अभी तक उबरा नहीं है। महिलाओं को आज भी नौकरी के मामले में अपने परिवारिजनों से इजाजत लेनी पड़ती है। फिलहाल सरकार और स्वयंसेवी संगठनों के प्रयास से देश में महिला सशक्तिकरण को लेकर जागरुकता बढ़ी है। नतीजतन महिलाएं जीवन के कई क्षेत्रों में परचम लहरा रही हैं।

गौर करें तो इसका श्रेय भारतीय संविधान और सर्वोच्च अदालत को जाता है जहां भारतीय संविधान स्त्री-पुरुष दोनों को समान अधिकार प्रदान करता है। सर्वोच्च अदालत संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करता है। भारतीय संविधान में शिक्षा, सेवा, राजनीति इत्यादि सभी क्षेत्रों में पुरुषों व महिलाओं को बराबर के अधिकार दिए हैं। भारतीय संविधान में लैंगिक असमानता को मिटाने यानी समानता को बल प्रदान करने के लिए कई प्रावधान किए गए हैं। संविधान में स्पष्ट कहा गया है कि धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर महिलाओं से भेदभाव नहीं किया जा सकता। दो राय नहीं कि इन संवैधानिक प्रावधानों और गत वर्षों में हुए सरकारी प्रयासों के परिणामस्वरुप भारत में लैंगिक विभेद में कमी आयी है। उसके सकारात्मक परिणाम देखने को मिल रहे हैं।

उदाहरण के तौर पर देश के विभिन्न राज्यो की पंचायतों में महिलाओं को आरक्षण प्रदान किया गया है। इस पहल से पंचायतों में महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी बढ़ी है। लेकिन यहां ध्यान रखना होगा कि संख्या के लिहाज से भले ही यह आंकड़ा प्रतिनिधित्व को मजबूती देता हो पर एक सच यह भी है कि बड़े पैमाने पर नेतृत्व की बागडोर अभी भी पुरुष अभिभावकों के ही हाथों में ही है। बात चाहे गांव, ब्लॉक या तहसील की हो अथवा जिला स्तर की सभी आवश्यक स्थानों पर निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों के पति या अभिभावक ही उनके दायित्वों का निर्वहन करते देखे जा रहे हैं। यह स्थिति ठीक नहीं है। इससे निर्वाचित महिला सरपंचों की भूमिका महज एक रबर स्टैंप बनकर रह गयी है। यह हस्तक्षेप पंचायतों में महिलाओं की भूमिका को सीमित करने के साथ ही पंचायती राज के पावन उद्देश्यों को नष्ट करता है।

दूसरी ओर संसद और राज्यों की विधानसभाओं में भी महिलाओं की भागीदारी पुरुषों के मुकाबले आनुपातिक रुप से कम है। लोकसभा में कुल महिला सदस्यों की संख्या तकरीबन 74 है जो कुल सदस्यों के 15 फीसदी के आसपास है। इसी तरह राज्यसभा में महिलाओं की संख्या तकरीबन 24 है यानी 10 फीसदी के आसपास है। इसी तरह केंद्रीय मंत्रिमंडल में कुल महिला मंत्रियों की संख्या सात है। विचार करें तो पुरुषों के मुकाबले कम है। लेकिन अच्छी बात है कि केंद्र की मोदी सरकार महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए लगातार पहल कर रही है। विगत वर्ष ही मोदी सरकार ने ऐतिहासिक निणर्य लेते हुए संसद का विशेष सत्र आहुत कर दशकों से बर्फखाने में पड़े महिला आरक्षण बिल को पारित कराकर आधी आबादी को उनके अधिकारों से लैस किया। इस क्रांतिकारी फैसले से अब लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फीसदी सीटें सुरक्षित-आरक्षित हो गई हैं।

निःसंदेह इस पहल ने व्यवस्थापिका में महिला सशक्तिकरण को नया आयाम दिया है। इस उपलब्धि से देश भर की महिलाओं का इकबाल बुलंद हुआ है। गौर करें तो 11 वर्षों में मोदी सरकार ने महिलाओं के हित में ढ़ेर सारे निर्णय लिए हैं। इसके लिए उन्होंने महिला केंद्रित योजनाओं को आकार देने के की पहल शुरु की। मोदी सरकार ने 1 मई, 2016 को उत्तरप्रदेश राज्य के बलिया जिले से उज्ज्वला योजना का शुभारंभ किया। आज इसका लाभ देश भर की उन सभी गृहणियों को मिल रहा है जो आर्थिक रुप से कमजोर हैं। उज्जवला योजना के अमल में आने से महिलाओं के स्वास्थ्य को नया जीवनदान मिला है।

प्रधानमंत्री मोदी ने बालिका लिंग अनुपात में गिरावट को रोकने एवं महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के लिए 22 जनवरी, 2015 को हरियाणा के पानीपत से ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ योजना का शुभारंभ किया। इसी तरह महिलाओं के आत्मसम्मान की रक्षा के लिए तीन तलाक को खत्म किया। नतीजा सामने है। आज महिलाएं अपने अधिकारों को लेकर न सिर्फ चैतन्य हैं बल्कि अपने लक्ष्य का प्रस्तावना भी खुद लिख रही हैं।

 

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