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SPECIAL ARTICLE : भारत में ‘डॉल्फिन'(Dolphin) का बढ़ता कुनबा ?

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PRESENTED BY DR RAMESH THAKUR

(SENIOR COLUMNIST)

भारतीय नदियों में जलीय जीव ‘डॉल्फिन’ की संख्या में दर्ज हुई वृद्धि की सु:खद खबर चर्चाओं में है। इससे उम्मीद जगी है कि लोग अब दुलर्भ डॉल्फिन को किताबों, टीवी और यूट्यूब के अलावा वास्तविक रूप से भारतीय नदियों में ही साक्षात दीदार कर सकेंगे। डॉल्फिन भारत की किन-किन नदियों में हैं उसे चिंहित कर लिया गया है। हिंदुस्तान के 8 राज्यों की 28 बड़ी नदियों में डॉल्फिन की संख्या के संबंध में कराए गए सर्वेक्षण-2024 से कुल 6327 डॉल्फिनों के होने का पता चला है, जिनमें सर्वाधिक संख्या उत्तर प्रदेश में आंकी गई। उत्तर प्रदेश की नदियों में इस वक्त 2397 डॉल्फिनों की मौजूदगी है। इसमें एक सुखद खबर ये है कि डॉल्फिनों की संपूर्ण संख्या में 20 प्रतिशत मादा डॉल्फिन बताई गई हैं जिनसे अगले एकाध वर्षों में डॉल्फिन की संख्याओं में और इजाफा होने की उम्मीद जगी है।

डॉल्फिन को सबसे सुंदर और आर्कषण जलीय जंतु कहा जाता है। इस दुलर्भ किस्म की मछली के दीदार को लोग विदेशों तक जाते हैं और बड़ी रकम देकर उसे देखते हैं। लेकिन, डॉल्फिन अब भारतीय नदियों में ही दिखाई दिया करेंगी। इसके लिए हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में राष्ट्रीय वन्य बोर्ड की 7वीं बैठक हुई, जिसमें उन्होंने स्वयं डॉल्फिन जनगणना की रिपोर्ट को सार्वजनिक कर ये सु;खद खबर देशवासियों से साक्षा की। डॉल्फिन की गणना के लिए 8,500 किलोमीटर से अधिक जलीय क्षेत्र का परीक्षण किया गया। इस कार्य में 3150 दिन लगे और वन्य बोर्ड के 1200 कर्मचारियां ने सहभागिता निभाई। 25 करोड़ रूपए का खर्च भी आया। डॉल्फिन की जनगणना भारत में पहली मर्तबा कराई गई है। ये कार्य आसान नहीं था, तमाम तरह की मुसिबतों का सामना वन्यजीव की टीमों को उठाना पड़ा। लेकिन आधुनिक तकनीकों ने मुसीबतों को किसी तरह आसान किया और डॉल्फिन की जनगणना समय से पूरी हो सकी।

भारत सरकार ने सन् 2009 में डॉल्फिन को ‘राष्ट्रीय जलीय जीव’ घोषित किया था। असंतुलित पर्यावरण को संतुलित रखने के लिए जलीय जंतुओं की गणना कर उनका संरक्षण करना सदैव हुकूमतों के लिए चुनौती ही रहा? क्योंकि बीते कुछ दशकों से नदियों में जिस हिसाब से प्रदूषण फैला है उससे कहीं अधिक जल क्षेत्र प्रदूषित हुआ, जिसकी मार जलजीव लगातार झेल रहे हैं। नदियों में बेहताशा कचरा फैलाया जा रहा है, जिससे अनगिनत जल जंतुओं की प्रजातियां नष्ट हो रही हैं। उन्हीं को ध्यान में रखकर केंद्र सरकार ने ये कदम उठाया। रिपोर्ट ये भी बताती है कि अगर भारतीय नदियां साफ-सुथरी रहें। तो सामान्य नदियों में भी डॉल्फिन आ सकती है। डॉल्फिन को साफ पानी पसंद है। जिन 28 नदियों में डॉल्फिन पाई गई हैं, उनका पानी फिलहाल अच्छा है। पर, उतना भी नहीं, जितना होना चाहिए? नदियों का पानी साफ हो, इसके लिए प्रयास और तेज करने होंगे?

डॉल्फिन सर्वेक्षण में उत्तर प्रदेश के अलावा बिहार में बहने वाली नदियों में भी 2220 डॉल्फिन की मौजूदगी मिली है। वहीं, पश्चिम बंगाल में 815 तो असम में 635 डॉल्फिन मौजूद हैं। प्रयागराज में हाल में संपन्न हुए महाकुंभ के दौरान भी कई स्नानियों को डॉल्फिन के दर्शन हुए। क्योंकि गणना में त्रिवेणी संगम में करीब 96 डॉल्फिन बताई गई हैं। इसके अलावा कम संख्या में बाकी नदियों में भी डॉल्फिनों की संख्या सामने आई है। डॉल्फिन सर्वेक्षण का दूसरा चरण अभी होना बाकी है। उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक डॉल्फिन मिलने पर केंद्र सरकार ने राज्य को ‘गांगेय डॉल्फिन’ घोषित किया है। मुंबई के समुद्र में डॉल्फिनों की संख्या अच्छी हुआ करती थी, लेकिन गणना में संख्या उतनी नहीं आई जितने की उम्मीद थी। एक रिपोर्ट के मुताबिक वहां डॉल्फिनों का अवैध शिकार सबसे ज्यादा किया जाता है। तस्कर डॉल्फिनों को चुन चुन कर निशाना बनाते हैं।

डॉल्फिन जहां होती हैं, वहां स्वयं का दीदार लोगों को आसानी से करवाती हैं। दरअसल, ये एक ऐसी स्तनपायी जीव है,जो ज्यादा वक्त तक पानी में सांस नहीं ले सकती। सांस के लिए कुछ समय बाद उसे पानी से बाहर आना ही होता है। डॉल्फिन जब पानी से बाहर आती है तो 7 फिट उंची लंबी छलांग लगाती है। वह दृश्य देखने लायक होता है। डॉल्फ़िन की भारतीय बैराइटी को ‘सूंस’ कहते हैं,जो अधिकांश भारत, नेपाल और बांग्लादेश की नदियों में पाई जाती हैं जिसकी लंबाई सामान्य डॉल्फिन के मुकाबले कुछ कम होती है। 1965 में भारत की नदियों में वास करने वाली डॉल्फिनों को ‘गंगा डॉल्फिन’ का नाम दिया गया। डॉल्फिन अधिकतर मीठे पानी में रहना पसंद करती हैं। इस लिहाज से भारत की नदियां का पानी हमेशा से मीठा रहा है। पर, बढ़ते कचरे ने मीठे पानी को अब कड़वा कर दिया है। डॉल्फिन के संरक्षण के लिए पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने असम से पिछले वर्ष दिसंबर-2024 से डॉल्फिन की टैगिंग का अभियान शुरू किया था,जो 10 फरवरी 2025 में संपन्न हुआ।

भारत में 20वीं सदी के दरम्यान डॉल्फिनों की संख्या बहुत अच्छी हुआ करती थी। उसके बाद संख्या में तेजी से गिरावट बाई। संख्या कम होने के कारण कई हैं। सबसे पहले डॉल्फिन के तस्करों पर अंकुश लगाना होगा। मछुआरे भी डॉल्फिनों को खतरा पहुंचाते हैं। मछली पकड़ने के दौरान उनके जाल में कई बार डॉल्फिन फंसकर मर जाती हैं। वहीं, तस्कर डॉल्फिन का शिकार उसके तेल के लिए करते हैं जिसकी डिमांड राष्ट्र से लेकर अंतरराष्ट्रीय बाजारों में खूब रहती है। इसके अलावा बांध, तटबंधों के निर्माण जैसी विकास परियोजनाएं भी डॉल्फिन के लिए खतरा बनी हैं। घाघरा, गंडक, कोसी और सोन जैसी सहायक नदियों में पानी की गहराई की वजह से अधिकांश हिस्सों में डॉल्फिन की आबादी वृद्धि हुई है। ये वृद्वि यथावत रहे, इसके लिए इस जलीय जंतु के लिए माहौल पैदा करना होगा। नदियों को साफ करना होगा, जल प्रदूधण पर निरंत्रण करना होगा और पानी में मीठी की मात्रा बढ़ाने के लिए नई आधुनिक तकनीकों को अपनाना होगा।

 

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