TRAVELODGE ILLUSTRATION : अयोध्या का टूर: पहुंच आसान-दर्शन दूर..
1 min read
PRESENTED BY GAURAV AWASTHI
‘स्वस्थ भारत’ स्वयंसेवी संगठन के सभापति आशुतोष कुमार सिंह की तरफ से आचार्य नरेंद्र देव कृषि विश्वविद्यालय कुमारगंज में चल रही तीन दिवसीय सेमिनार का आज आखिरी दिन था। नई दिल्ली से प्रकाशित पाक्षिक पत्रिका ‘युगवार्ता’ के संपादक भाई संजीव कुमार ने ‘अमृत काल में भारत का स्वास्थ्य और मीडिया की भूमिका’ विषय पर चर्चा के लिए आदेशित किया। इसी सिलसिले में कुमारगंज जाना था लेकिन अनुज करुणा शंकर मिश्र ने इस बहाने हनुमानगढ़ी में दर्शन का नया क्लाज जोड़ दिया। कलयुग के जीवित देवता हनुमान जी के दर्शन का प्रस्ताव कोई कैसे ठुकरा सकता है? फिर हम तो ठहरे गहरे हनुमान भक्त। सो, तुरंत तैयार। साथ उनका। सारथी हमारा।
इस सबके चलते आज अयोध्या कई वर्षों बाद जाना हुआ। रायबरेली से अयोध्या 120 किलोमीटर दूर है। पहले सिंपल सी सड़क थी और अब हाईवे। तब जनपद का नाम फैजाबाद हुआ करता था और अब अयोध्या। रायबरेली मार्ग से फैजाबाद होते हुए अयोध्या जाया करता था। यह सड़क पहले टू-लेन थी और अब फोरलेन। मोहनगंज के पास थोड़ी दिक्कत छोड़ दें तो बाकी का कष्टरहित सफर। अयोध्या पहुंचने के लिए अब हिचकोले नहीं खाने पड़ते। 25-30 किलोमीटर पहले हाईवे के डिवाइडर पर लगे बिजली के कलात्मक खंबों के बीच में कमल की पंखुड़ियों के नीचे नए स्टाइल में विभिन्न रंगों से अंग्रेजी में लिखा ‘अयोध्या’ आपका ध्यान आकर्षित करने लगता है।
अंग्रेजी में इसे ‘लोगो’ कह सकते हैं। हिंदी वाले इस ‘प्रतीक चिन्ह’ कहते हैं। फैजाबाद पहुंचने पर अयोध्या की दूरी 10 किलोमीटर लिखी दिखती थी अब नए हाईवे पर लिखा मिलेगा-‘ अयोध्या-0 किमी और अयोध्या धाम-10 किमी। यानी अयोध्या-टू-अयोध्या धाम। भक्तों के लिए ‘रामनगरी अयोध्या’ और सरकारी बोर्ड में ‘अयोध्या धाम’। प्रदेश के किसी भी तरफ से आपका अयोध्या पहुंचना तो बहुत आसान हो गया है पर भगवान पहुंच से दूर होते जा रहे हैं। तीखी धूप। लंबी कतार। पसीना अपार। तब मिलेगा देवता का द्वार।
अब रायबरेली को ही लें। रायबरेली से अयोध्या पहुंचने में पहले करीब 3 घंटे लग जाते थे लेकिन हनुमानगढ़ी में दर्शन तुरंत मिल जाते थे। रायबरेली से अब आप अयोध्या 2 घंटे में आसानी से पहुंच जाएंगे लेकिन अगर दिन शनिवार और मंगलवार है तो दर्शन में घंटे भर भी लग सकते हैं। कभी-कभी इससे ज्यादा भी। पहले खाकी वर्दी मंदिर में ऊपर प्रवेश द्वार पर ही दिखती थी और अब भक्तों की भीड़ के चलते नीचे सीढ़ियों से 100 मीटर पहले से हनुमानगढ़ी के हनुमान जी महाराज के विग्रह के सामने तक पुलिस ही पुलिस। इच्छा भरकर दर्शन की इच्छा पूरी करने की जरा भी कोशिश आपको धक्का दिला सकती है या कर्कश वाणी से सामना करा सकती है।
अब जब हनुमानगढ़ी में दर्शन का यह हाल है तो उनके इष्टदेव भगवान राम के दर्शनों में होने वाली दिक्कतों का अंदाज आप खुद लगाइए। राम जन्मभूमि में दर्शन के लिए पहले भी काफी चक्कर लगाना पड़ता था और अब भी। एक भजन है- कभी-कभी भगवान को भी भक्तों से काम पड़े..। भक्ति के उमड़ रहे ज्वार में अब भक्तों को ही भगवान से काम पड़ रहा है, भगवान को नहीं। मंदिरों मठों में कदम-कदम पर पहरा गहरा है। राम-राम रटते हुए ही भगवान राम के दर्शन पा सकते हैं।
यह सही है अब अयोध्या पहले वाली नहीं रही। ‘दिव्य-नव्य-भव्य’ की सरकारी उपमा रत्तीभर गलत नहीं है। अयोध्या का सीन पूरा चेंज है। सड़कें बदल गई हैं। रास्ते की क्रॉसिंग पर फ्लाईओवर है। सुंदर सजे-धजे चौराहे। कहीं आओ-कहीं जाओ। सब सिस्टमैटिक। पहले अयोध्या की मुख्य सड़क पर गाड़ी खड़ी कर आप हनुमानगढ़ी के दर्शन को जा सकते थे। कुछ खा सकते थे लेकिन अब ऐसा संभव ही नहीं। गाड़ी खड़ी करने पर चालान का स्वाद चखना पड़ सकता है।
पहले अयोध्या में साधारण से खाने के जुगाड़ बहुत कम होते थे। घर से पूड़ी बांध कर ले जाओ या किसी मठ में प्रसाद पाओ या ऐसे ही काम चलाओ। अब नई अयोध्या में नए-नए होटल-रेस्टोरेंट की भरमार है। साउथ इंडियन खाना है तो उडुपी रेस्टोरेंट जाइए और गुजराती थाल खानी है तो ‘नमो नमो ग्रुप’ के रेस्टोरेंट और आदि-आदि में। ₹200 वाले डोसे और ढाई सौ रुपए थाल (उत्तर भारतीय खाना) वाले रेस्टोरेंट एक नहीं कई हो गए हैं। अगर आपकी जब इजाजत दे रही हो तो इससे महंगे भी होटल-रेस्टोरेंट मिल जाएंगे। इस सबके बावजूद अयोध्या ने अपना सांसद क्यों बदला? इस सवाल का जवाब खोजने के लिए नई नवेली अयोध्या के बजाये आपको पहले की तरह वाले गांवों की गलियों से गुजरना ही पड़ेगा।
किराए पर रहती कौशल्या
आदर्श पुत्र और आदर्श भाई का सर्वोत्तम उदाहरण प्रस्तुत करने वाले मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम की लीला स्थली में हनुमानगढ़ी मंदिर के बाहर सड़क के एक किनारे आंचल फैलाए बैठीं वृद्ध कौशल्या भोजपुर (बिहार) की रहने वाली हैं। उनके दो बेटे हैं लेकिन दोनों में तनिक भी मातृमोह नहीं। पिछले 18 वर्षों से वह यहां ₹1500 प्रतिमाह किराए के कमरे में रहते हुए भीख मांग कर गुजारा कर रही हैं। वह नित्य 2 घंटे पूजा अर्चना के बाद सुबह 11 बजे हनुमानगढ़ी मंदिर के बाहर आकर बैठ जाती है। बताती हैं, ₹300 तक रोज मिल जाते हैं। इसी से उनका बस गुजर-बसर हो रहा है।
चार पैसों के लिए धूप से दो-चार
आज धूप कड़ी थी और उमस तेज। अयोध्या नगर के तुलसीबाड़ी के रहने वाले अनिल कुमार चार पैसों के लिए बालक राम की फोटो बेचने का काम करते हैं। सुबह जल्दी पहुंच कर शाम को देर से घर जाना होता है। पेट की भूख के आगे कड़ी धूप उनके लिए कुछ भी नहीं। अनिल बताने लगे, मीडियम साइज की भगवान राम की फोटो चार रुपए में मिल जाती है और ₹10 में बेचते हैं। अगर 100 फोटो बिक गई तो ₹500-600 की बचत हो जाती है। अनिल सरीखे हजारों को रोजी-रोटी का ‘बालक राम’ ही सहारा हैं।