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आशा पारेख को मिलेगा दादा साहेब फाल्के अवार्ड

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जापानी भाषा में अलविदा शब्द  “सायोंनारा “का जिक्र आते ही 60 एवं 70 के दशकों में शोख ,खूबसूरत और चंचल अदाओं से मुग्ध करने वाली बेहतरीन अदाकारा आशा पारेख को फिल्म का सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित करने का निर्णय भारत सरकार ने लिया है I इसकी जानकारी केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने दी। उन्होंने बताया कि फिल्म अभिनेत्री आशा पारेख को इस वर्ष का दादा साहब फाल्के पुरस्कार दिया जाएगा। श्री ठाकुर ने बताया कि आशा पारेख ने 95 फिल्मों में काम किया है,  उन्हें 1992 में पद्मश्री से भी नवाजा गया है । उन्हें यह पुरस्कार 30 सितंबर को दिया जाएगा।

आशा पारिख का जीवन काल
आशा पारेख का जन्म 2 अक्टूबर 1942 को मुंबई में हुआ था। इनका जन्म एक गुजराती जैन परिवार में हुआ था । बचपन में इन्होंने डॉक्टर बनने, आईएएस बनने जैसे सपने देखा करती थी । लेकिन उनकी मां ने इन्हें नृत्य सीखने के लिए कहा और फिर उनके लिए बकायदा एक डांस टीचर की व्यवस्था कर दी । आशा पारेख डांस पर इतनी पारंगत हुई, मशहूर नृत्यांगना बनकर उभरी, जो कि देश विदेश में भी अपने परफॉर्मेंस करने लगी । इनका व्यक्तिगत जीवन भी बड़ा ही दिलचस्प रहा है। आशा पारेख खुश मिजाज एवं जिंदादिल, उदार प्रवृति की महिला हैं। सामाजिक कार्यों में बढ़-चढ़कर भाग लेती हैं। उनके नाम पर मुंबई में एक अस्पताल भी चलता है , जिसका नाम आशा पारेख अस्पताल है। यह सामाजिक कार्यक्रमों में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती हैं। आज भी कारा भवन में डांस एकेडमी चलाती है। आशा पारेख सिने आर्टिस्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष भी रह चुकी हैं। इसके   साथ 1994 से 2000 तक भारतीय फिल्म सेंसर बोर्ड की पहली महिला अध्यक्ष रह चुकी हैं I जो कि भारतीय फिल्म  सेंसर बोर्ड के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि कोई महिला भारतीय फिल्म  सेंसर बोर्ड अध्यक्ष बनी थी। अपने ऊपर बनी बायोपिक में उन्होंने बताया कि मुझे एक शादीशुदा पुरुष से प्यार हो गया था ।लेकिन उसका घर तोड़ना नहीं चाहती थी।  इसीलिए अविवाहित रहने का फैसला किया। और आज भी अविवाहित जीवन व्यतीत कर रही है ।

आशा पारेख का फिल्मी कैरियर 


आशा पारेख ने अपनी फिल्म कैरियर की शुरुआत बाल कलाकार के रूप में फिल्म आसमान से किया था। मशहूर निर्देशक विमल राय ने एक नृत्य शो में आशा जी को देखा,पूछा फिल्म में काम करोगी, उन्होंने हाँ कर दिया। 1954 में बाप-बेटी में उन्हें काम करने का मौका दिया, लेकिन फिल्म नहीं चली । काफी संघर्षों के बाद 1959 नासिर हुसैन की “दिल दे कर देखो” उन्हें एक बार फिर मौका मिला और फिल्म चल निकली । आशा पारेख एक बेहतरीन कलाकार के रूप में फिल्म इंडस्ट्री में स्थापित हो गई। आशा पारेख जी ने कुल 95 फिल्मों में काम किया है । उनकी फिल्में 1961 में आई ‘जब प्यार किसी से होता है’, ‘घराना’, ‘छाया’ थी,1963 में आई ‘फिर वही दिल लाया हूं’, ‘मेरी सूरत तेरी आँखे’, ‘भरोसा’, ‘बिन बादल बरसात’ ‘बहारों के सपने’, ‘उपकार’ थी,1969 में आई ‘प्यार का मौसम’, ‘साजन’, ‘महल’, ‘चिराग’, ‘आया सावन झूम के’, ‘फिर आई कारवां’, ‘नादान’, ‘जवान मोहब्बत’, ‘ज्वाला’, ‘मेरा गांव  मेरा देश’ जोो कि 1971 में आई थी । इस तरह से आशा जी ने फिल्मों की लाइन ही लगा दी । 1966 में आई फिल्म लव इन टोकियो का सायोंनारा गाने में की गई अदाकारी लोग आज भी नहीं भूलते हैं। उनका एक सपना अधूरा रह गया । उनका अपने जीवन काल में दिलीप कुमार के साथ फिल्म करने का सपना था। उन्होंने निर्माता निर्देशक की भूमिका अदा की है। अनेक सीरियलों का निर्माण किया। आशा पारेख को अपनी अदाकारी के लिए पद्मश्री,फिल्म फेयर पुरस्कार, लाइफ टाइम अचीवमेंट, से लेकर सैकड़ों पुरस्कारों से नवाजा गया है । अब उन्हें ऐक्टिंग से अलग होने के 37 वर्ष बाद फिल्म जगत के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया जा रहा है। यह उनके लिए गौरव की बात होगी।

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