Lok Dastak

Hindi Samachar, हिंदी समाचार, Latest News in Hindi, Breaking News in Hindi.Lok Dastak

दतिया घराने की सांझी कला के प्रख्यात चित्रकार हैं रसिक वल्लभ नागार्च

1 min read

वृंदावन। गली स्थित ठाकुर प्रियावल्लभ कुंज में श्रीहित परमानंद शोध संस्थान के तत्वावधान में पितृ पक्ष में चले 15 दिवसीय सांझी महोत्सव के समापन पर विद्वत गोष्ठी का आयोजन सम्पन्न हुआ।
संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए श्रीहित परमानंद शोध संस्थान के अध्यक्ष आचार्य विष्णुमोहन नागार्च ने कहा कि ठाकुर प्रियावल्लभ कुंज दतिया घराने की सांझी का प्रमुख केंद्र है।हमारे पूर्वज और 18 वीं शताब्दी के रस सिद्ध संत व प्रमुख वाणीकार श्रीहित परमानंद दास महाराज सांझी कला के जाने-माने विशेषज्ञ थे।वह न केवल स्वयं सांझी बनाते थे अपितु उसका प्रशिक्षण भी दिया करते थे।उन्होंने सांझी से सम्बन्धित तमाम पदों की रचना भी की है।
श्रीहित परमानंद शोध संस्थान के समन्वयक व वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. गोपाल चतुर्वेदी ने कहा कि दतिया के महाराजा परीक्षित बहादुर देव जू महाराज श्रीहित परमानंद दास महाराज की सांझी कला के अत्यधिक प्रशंसक थे।साथ ही वह उनके द्वारा रचित सांझी के पदों का श्रवण किया करते थे।
राधावल्लभीय विद्वान डॉ. चन्द्र प्रकाश शर्मा ने कहा कि दतिया घराने की सांझी बनाने की परम्परा का निर्वाह ठाकुर प्रियावल्लभ कुंज में श्रीहित परमानंद दास महाराज की आठवीं पीढ़ी के आचार्य रसिक वल्लभ नागार्च के द्वारा आज भी बखूबी किया जा रहा है।वह इस कला के कुशल चित्रकार हैं।उनके द्वारा पितृ पक्ष में सूखे रंगों से पृथ्वी व जल के उपर बनाई गई महारास झांकी, सेवाकुंज झांकी, मानलीला झांकी,गौचारण झांकी, मान सरोवर झांकी व बरसाना झांकी आदि ने अत्यधिक वाहवाही लूटी है।
प्रमुख शिक्षाविद् डॉ. सुनीता अस्थाना ने कहा कि श्रीहित रसिक वल्लभ नागार्च को सांझी निर्माण के संस्कार अपने पूर्वज श्रीहित परमानंद दास महाराज से विरासत में मिले हैं। उन्हें सांझी बनाने के क्षेत्र में उत्तर प्रदेश शासन,मध्यप्रदेश शासन व उत्तराखंड शासन आदि के अलावा कई प्रमुख संस्थाओं व संगठनों के द्वारा सम्मानित व पुरस्कृत भी किया जा चुका है।उनके द्वारा बनाई गई सांझी मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री निवास में भी लगी हुई है।
श्रीहित परमानंद शोध संस्थान के महासचिव श्रीहित ललितवल्लभ नागार्च ने कहा कि सांझी को सुअटा व झांझी आदि के नाम से भी जाना जाता है।यह केवल लोक कला ही नहीं अपितु राधावल्लभीय सम्प्रदाय में भजन-पूजा का भी अंग माना गया है।श्रीहित हरिवंश महाप्रभु ने भी अपने पदों में इसकी महिमा का अत्यधिक बखान किया है।
युवा साहित्यकार डॉ. राधाकांत शर्मा ने कहा कि सांझी अब केवल लोक कला ही नहीं है अपितु यह देवालयों तक में प्रतिष्ठित हो चुकी है।आज इस बात की परम आवश्यकता है कि हमारी सरकार इसके संरक्षण व उन्नयन हेतु कोई ठोस कार्य योजना बनाए।जिससे यह इसके कलाकारों की जीविका का साधन बन सके।
इस अवसर पर श्रीमती कमला नागार्च, हितवल्लभ नागार्च,आचार्य रासबिहारी मिश्रा,आचार्य युगल किशोर शर्मा,महंत मधुमंगल शरण शुक्ल, तरुण मिश्रा व भरत शर्मा आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए।संचालन डॉ. गोपाल चतुर्वेदी ने किया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Copyright ©2022 All rights reserved | For Website Designing and Development call Us:-8920664806
Translate »