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जयंती (01 मार्च) विशेष : इसलिए याद किए जाने चाहिए अमर बहादुर सिंह ‘अमरेश’

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PRESENTED BY GAURAV AWASTHI 

लेखक पत्रकार अमर बहादुर सिंह ‘अमरेश’ रायबरेली के एक ऐसे साहित्यकार और पत्रकार थे जिनमें देश प्रेम कूट-कूट कर भरा था| 1 मार्च 1929 को ऊंचाहार तहसील के पूरे रूप मजरे कंदरावा में जन्म लेने वाले अमरेश जी बाल्यकाल से ही कविताएं लिखने लगे| पहली कविता ‘नागरिक’ उन्होंने कक्षा तीन में पढ़ते हुए लिखी| अपने जीवन के प्रारंभिक दौर में कालजई कविताएं लिखने वाले अमरेश जी उपन्यास और एकांकी, बालोपयोगी साहित्य लिखने के साथ-साथ संपादन कार्य से भी जुड़े रहे। हिंदी दैनिक स्वतंत्र भारत में उनका स्तंभ ‘गांव की चिट्ठी’ काफी लोकप्रिय रहा। जीवन के आखिरी वक्त तक वह स्वतंत्र भारत में इस कॉलम के लिए लिखते रहे।

बाद में उनका जीवन एक अनुसंधानकर्ता के रूप में भी सामने आया। उन्होंने जनपद की पहचान सूफी काव्य धारा के जनक माने जाने वाले मलिक मोहम्मद जायसी, स्वाधीनता संग्राम के महान शूरवीर राणा बेनी माधव और हिंदी के युग प्रवर्तक आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी पर भी लेखनी चलाई। एक अनुसंधानकर्ता के रूप में उनकी जायसी पर लिखी किताबें ‘कहरानामा’, ‘मसलानामा’, ‘राणा बेनी माधव’ और ‘आचार्य द्विवेदी के गांव में’ काफी पसंद की गई। अमरेश जी ने आचार्य द्विवेदी के उसे पक्ष को पुस्तक रूप में समाज के सामने रखा जिस पर कभी चर्चा ही नहीं हुई| उनके द्वारा लिखी गई ‘आचार्य द्विवेदी के गांव में’ पुस्तक में आचार्य द्विवेदी के सरपंच और मजिस्ट्रेट के रूप में दी गई सेवा का विस्तार से उल्लेख किया गया है| यह पुस्तक साहित्य की अप्रतिम धरोहर है|

निराला जी के समकालीन स्वर्गीय अमरेश जी ने उन्हें बहुत नजदीक से देखा और सुना| डलमऊ ससुराल में रहते हुए निराला जी से जुड़े उनके संस्मरण आज भी प्रेरणादाई हैं| एक चर्चित संस्मरण उसे समय का है जब निराला जी किसी विवाद में चोट खाकर रायबरेली जिला मुख्यालय पहुंचे| यहां कलेक्टर के बंगले के बाहर उन्हें रोका गया लेकिन वह धड़धड़ाते हुए अंदर गए और केवल नाम बताने पर कलेक्टर सामने आकर हाथ जोड़कर खड़े हो गए| कलेक्टर ने निराला जी को सरकारी वाहन से जिला अस्पताल भिजवाया| अमरेश जी का यह संस्मरण ‘लेखन’ मासिक पत्रिका के निराला विशेषांक में भी पढ़ा जा सकता है|

जनपद के साहित्यिक आकाश के चमकते सितारे अमर बहादुर सिंह को आज जनपद भूल सा चुका है। उनकी यादें धुंधला गई हैं। कवि दुर्गाशंकर वर्मा दुर्गेश कहते हैं कि ऐसे कालजई साहित्यकार के साहित्य को पुर्नप्रकाशित कर समाज के सामने लाने की आवश्यकता है। शबिस्ता बृजेश ने कहा कि अमरेश जी की यादें जनपद के हिंदी साहित्य की धरोहर हैं।उनके पुत्र अशोक सिंह उनका साहित्य संजोए हुए हैं। वह किसी ऐसे व्यक्ति की तलाश में है जो इस साहित्य की धरोहर को आगे बढ़ा सके।

 

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