सभ्यता का आचरण सवालों के घेरे में________
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हमारे देश में नैतिकता और चरित्र दोनों महत्त्वपूर्ण माने गए हैं. भारत का भारतीय-सत्व उसके अपने चरित्र में विद्यमान है, ऐसा माना गया है. जो व्यक्ति चरित्र से समृद्ध होता है, उसे नैतिक होने में कठिनाई नहीं होती. हमारे धर्म-ग्रन्थ और सामजिक ताने-बाने में ही ऐसे सूत्र हैं जो हमें बार-बार चेताते हैं और हमें किसी भी बुरे रस्ते पर जाने से रोकते हैं. भारत की गुरु-शिष्य परंपरा में चरित्र-निर्माण पर विशेष बल दिया जाता था. आज भी भारतीय शैक्षणिक उन्नयन के लिए सदचरित्र होना नितांत ज़रूरी माना जाता है. आप देखें भारतीय मानस में ऐसे अनेक वृत्तांत हैं, कहानियां हैं, लोक में व्याप्त उद्धरण हैं, जो हमें अपने होने का महत्त्व बताते हैं, उनकी शर्तें यही होती हैं कि हमारे चरित्र उज्ज्वल हों. चरित्र पर हमारे कोई दाग न हो, न कोई आंच हो.
किन्तु, आज यह दुखद है कि हमारे शिक्षा संस्थानों में नैतिक पतन तेजी से हुआ है. शिक्षा संस्थाओं में नेतृत्व करने वाले लोग ही इस दलदल में फंसे हैं. भारतीय विश्वविद्यालयों में इस प्रकार की घटनाएँ शोभा नहीं देतीं. कहाँ तो हमारे विश्वविद्यालयों के प्रतिमान इस प्रकार के उभरकर आने चाहिए कि इससे समाज, शिक्षा-जगत के अन्य निकाय व स्कूल सिस्टम में भी रह रहे लोग इससे प्रेरणा लें, लेकिन जब अख़बारों या न्यूज चैनलों पर ऐसे न्यूज आते हैं कि फला के गलत आचरण के कारण उसे इस्थीपा देना पड़ा, या उन्होंने इस्थीपा दिया तो यह न्यूज तो बच्चा भी सुन रहा है, किसान भी सुन रहा है, गृहणियां भी सुन रही हैं और स्कूल सिस्टम में जो रह रहे हैं अध्यापक या अध्यापिकाएं वे भी सुन रहे हैं. अब यह सोचिये कि उनके मन में क्या भावनाएं जागृत होती होंगी? वे क्या सोचते होंगे विश्वविद्यालयों में अनीति के राह पर चलने वाले लोगों को देख-सुनकर? सच मानिए उन्हें अच्छा तो नहीं लग रहा होगा.
प्रायः पद के दुरुपयोग के साथ शोषण की बातें सामने आती हैं. पद का दुरुपयोग करना बहुत ही गलत है, इसे कोई सही नहीं ठहराएगा लेकिन आज जेंडर आधारित आरोप भी उतने ही सवालों के घेरे में हैं. प्रायः ऐसी बातें सामने आती हैं कि नौकरी की लालच देने के कारण हमारा शारीरिक शोषण हुआ. ऐसा आरोप लगता है, ऐसे भी मामले सामने आते हैं कि यह शोषण उनका वर्षों से किया जा रहा है. यह आरोप महिलाओं की ओर से लगाने की घटना प्रायः चर्चा में आती है. उसके बाद जो होता है, वह सब छिन्न-भिन्न होता है. अभीष्ट न सधने पर महिलाएं अपने पूर्व के संबंधों को उजागर कर छवि अपनी और अपने सहयोगी की विनष्ट करती हैं, ऐसा विशेषज्ञ मानते हैं या भारतीय न्यायालयों में भी ऐसे तर्क प्रतिपक्ष की ओर से वकील देते हैं. सबसे दुखद यह है कि ये आरोप-प्रत्यारोप वहीँ तक सीमित नहीं रह जाते. इस मामले को तेजी से सोशल मिडिया में वायरल किया जाता है. कमेन्ट करने वाले कमेन्ट करते हैं. खूब शेयर करते हैं. सब आज स्वीकार करेंगे कि सोशल मिडिया के आने के बाद इस तरीके के आचरण बहुत ही आम हो गए.
ये शेयर करने वाले लोग पूर्णतया नैतिक ही हैं और इनका चरित्र उज्ज्वल ही है, इसकी कोई गारंटी नहीं, किन्तु इसके बाद भी वे इसमें तल्लीनता से शामिल होते हैं. वे बस किसी के फटे को ज्यादा बेइज्जत करके प्रसन्न होते हैं. ऐसा वे इसलिए करते हैं क्योंकि यह उनकी हैबिट का हिस्सा भी बनता जा रहा है. दूसरों का मजाक उड़ाना, भद्दा कमेन्ट करना, गालियाँ देना या मजाक का पात्र बनाकर छोड़ना, यह इनकी आदत बनती जा रही है. दरअसल, ये लोग अव्वल किस्म के पागल होते हैं. ये विक्षिप्त लोग हैं. ये सब अपने लिए कम, मजावादी समाज का हिस्सा बनकर दूसरों के अपमान के लिए ज्यादा जीने वाले लोग हैं.
खैर, इन मजावादी समाज के लोगों और आरोप-प्रत्यारोप की चपेट में आए लोगों का मनोविज्ञान अलग-अलग होता है, इसे समझने की आज ज्यादा ज़रूरत है. इनकी गणित और कैमिस्ट्री भी अलग-अलग होती है. इनके स्वभावों की वजह से हमारा भारतीयपन ज़रूर परेशान होता है. हमारा विश्वास टूटता है. जिन्हें भी इन पागलपंथी ने घेरा है वे भारत के लिए निरर्थक लोग हैं. वे सकारात्मक भारत से बिलकुल अलग होकर भारत को बर्बाद करने के लिए जीते आए हैं और जी रहे हैं. हमें इनसे खुद को अलग करने की आज आवश्यकता है. इन्हें त्याग देने की आवश्यकता है. जिन लोगों ने नैतिक पतन किया है वे अभागे हैं कि उन्हें सही से जीना नहीं आया. जो इस पर प्रतिक्रिया कर रहे हैं वे भी कम अभागे नहीं हैं. इस प्रकार इन अभागों द्वारा भारत का सौभाग्य कम अभाग्य ज्यादा गढ़ा जा रहा है, समझने वाली बात यह है.
अब यदि बात की जाए उच्च शिक्षा संस्थानों में जो नैतिक पतन के मामले आए हैं उन पर तो सबसे अहम् यह है कि मनुष्य आत्मानुशासन को खो चुका है, इससे ऐसा लगता है. चरित्र को नष्ट होने की पहली कड़ी यहीं से शुरू होती है. चरित्र से ये लोग जब गिरते हैं तो ख़ास बात यह है इनमें आत्मग्लानि के भाव नहीं होते. विश्वविद्यालयों में कुछ कुलपतियों के चरित्र पर लगा दाग भारतीय शिक्षा इतिहास का सबसे बड़ा पतन है. ऐसे मामले जब से प्रकाश में आए तो यह सवाल उठता है आम आदमी के भी मन में कि शिक्षा जगत से जुड़े कुलपति लोग यदि अपने चरित्र को संयमित नहीं रख पाएंगे तो अपने अधीनस्थों और विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों पर क्या संयमित रहने की प्रेरणा दे पाएंगे? आज ऐसा लगता है कि यह नैतिक पतन एक बुरे समय के आगमन की आहट है. हाल ही में एक कुलपति के चैट को वाइरल किया गया. उसके बारे में अनेकों प्रतिक्रियाएं सोशल मिडिया पर दी गईं. कुलपति ने इस्थीपा दिया. इसमें निश्चय ही केवल कुलपति का दोष नहीं था. उस महिला के भी दोष थे जिसकी मोबाइल से चैट सोशल मिडिया तक पहुंचा. लेकिन एकतरफा सोचना, एक को दोषी ठहराना आज के समय में बहुत आसान है. प्रतिक्रिया देने वाले या कमेन्ट देने वाले लोगों ने स्वयं जज बनकर अनेकानेक बयान दर्ज कर दिए किन्तु उस पूरी घटना के आकार लेने के मनोविज्ञान का विश्लेषण आज के समय की मांग है, इसे कोई क्यों नहीं समझने को तैयार है.
ऐसा नहीं कि कुलपति कोई था इसलिए वह दोषी नहीं है, दोषी वह हो सकता है लेकिन केवल एकतरफ़ा होने का मनोविज्ञान भी समझना आज प्रश्नांकित है. ऐसे कुछ केस हैं जो अनकहे हैं. अनसुलझे हैं. जबरदस्ती हैं, वे प्रकाश में नहीं आए तो उन पर कोई बात नहीं होगी. उन पर कोई अंगुलियाँ नहीं उठाएगा. जरा विचार करके देखें तो पाएंगे कि दोष और दोषी समझने या ठहराने की हमारी त्वरित गतिविधि भी उचित नहीं है.
इन सबके घटित होने की प्रतिक्रिया और उसके परिणाम आज चाहे जो भी हों, हमें विचार यह करना ज़रूरी है कि ऐसा हो ही क्यों? क्या हमारा आत्मानुशासन इतना विखंडित हो चुका है कि वह आत्म को बांधकर नहीं रख पा रहे हैं? भारतीय गुरु-शिष्य परंपरा की लम्बी विरासत को यदि हम यूं ही खंडित करते रहेंगे तो भारत के लिए यही बातें लोग कहेंगे कि न भारत कभी विश्व गुरु था, न है और न ही हो सकेगा. हमें आज इस बनती हुई नई धारणा को तोड़ने की ज़रूरत है.
भारत के शिक्षा मंदिर में एक ऐसे माहौल बनने की ज़रूरत है जो सबके आचरण के लिए प्रतिमान गढ़े. सबके लिए प्रेरणा का स्रोत बने. सभ्यता के आचरण की कसौटी तो शिक्षालय से ही तय होगी. भारत में समाज और शिक्षालय मनुष्य निर्माण की सबसे बड़ी प्रयोगशाला हैं, यदि यही सवालों के घेरे में आ जायेंगे तो हमारे भारत की आन बान और शान का क्या होगा, यह सवाल आज है. इस सवाल को रेखांकित करके आज सरकार को भी सोचना है और जो इस विधा में शामिल लोग हैं, उन्हें भी क्योंकि यह घटनाएँ केवल हम तक शामिल नहीं हैं, आने वाली पीढ़ी के सामने भी हमें शर्मसार करने से नहीं छोड़ेंगी.
प्रो. कन्हैया त्रिपाठी
लेखक भारत गणराज्य के महामहिम राष्ट्रपति जी के विशेष कार्य अधिकारी रह चुके हैं। आप केंद्रीय विश्वविद्यालय पंजाब में चेयर प्रोफेसर, अहिंसा आयोग व अहिंसक सभ्यता के पैरोकार हैं।