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भारत मंडपम से वैश्विक भारत बनाने का आह्वान

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भारत मंडपम से शिक्षा की ज्योति-पुंज प्रवाहित करते हुए प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने मंडपम में बैठे शिक्षाविदों को एक बार पुनः शिक्षा क्षेत्र से देश में क्रांति लाने का आह्वान किया. वैसे तो प्रधान मंत्री अपने हर अभिभाषण में भारत की उन्नत्ति व समृद्धि की बात करते हैं लेकिन यह अवसर था भारतीय शिक्षा समागम का, और इसमें देश भर के शिक्षा जगत से जुड़े लोग प्रतिभाग कर रहे थे. यह अवसर था एनईपी-2020 की तीसरी वर्षगांठ का, जब प्रधान मंत्री ने सबसे आग्रह किया कि आप अपनी ताकत को पहचानें, भारत की ताकत को पहचानें और उस दिशा में बढ़ें जिससे भारत पूरी दुनिया का, धरती का प्रतिपालक बन सके. प्रधान मंत्री ने साफ शब्दों में कहा कि आज 21वीं सदी का भारत, जिन लक्ष्यों को लेकर आगे बढ़ रहा है, उसमें हमारी शिक्षा व्यवस्था का भी बहुत ज्यादा महत्व है. आप सभी इस व्यवस्था के प्रतिनिधि हैं, ध्वजवाहक हैं. काशी के रुद्राक्ष से लेकर इस आधुनिक भारत मंडपम तक, अखिल भारतीय शिक्षा समागम की इस यात्रा में एक संदेश भी छिपा है. ये संदेश है-प्राचीनता और आधुनिकता के संगम का! 

एक सकारात्मक ऊर्जा से भारत के शिक्षा तपस्वियों को उत्साह भरते हुए प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने न केवल भारत की उपलब्धियों को गिनाया, न केवल अकादमिक जगत से जुड़े लोगों की नई शिक्षा नीति में अवदान की तारीफ की अपितु उन्होंने युवा भारत से उम्मीदें कायम रखने की भी बात की. भारत में शिक्षा से बदलाव होगा हम सब जानते हैं लेकिन इस दिशा में जब हमारी सोच और संवेदनाएं एक होकर देश में सुधार की ओर बढेंगी तो भारत और भारतीय समृद्धि का वाहक बन सकेंगी, वह चाहे कोई भी क्षेत्र की समृद्धि या विकास हो. प्रधान मंत्री ने इसलिए शायद इस समागम में भारत के शिक्षा जगत से जुड़े लोगों को चुनौतियों के बारे में आगाह किया और भारत की प्राच्य उत्कर्ष को पुनः हासिल करने के लिए प्रोत्साहित किया. 

हम जानते हैं कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति आने के बाद देश में शिक्षा के नए दृष्टिकोण ने जन्म लिया. शिक्षा में औपनिवेशिक सभ्यता को चुनौती देती राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भाषाई स्तर पर शैक्षिक माहौल निर्मित करने का यत्न अपने आप में सरकार की ओर से महत्वपूर्ण प्रयास है. दुनिया के कई बड़े संगठन और शैक्षणिक संस्थानों ने भारत की एनईपी की तारीफ की यह भारत के लिए गौरव की बात है. प्रधान मंत्री ने भारतीय शिक्षा समागम के मंच से पुनः एक बार जोर देकर कहा युवाओं को उनकी प्रतिभा की जगह उनकी भाषा के आधार पर जज किया जाना, उनके साथ सबसे बड़ा अन्याय है. मातृभाषा में पढ़ाई होने से भारत के युवा टेलेंट के साथ अब असली न्याय की शुरुआत होने जा रही है. और ये सामाजिक न्‍याय का भी अहम कदम है. दुनिया में सैंकड़ों अलग-अलग भाषाएं हैं. हर भाषा की अपनी अहमियत है. दुनिया के ज़्यादातर विकसित देशों ने अपनी भाषा की बदौलत बढ़त हासिल की है. अगर हम केवल यूरोप को ही देखें, तो वहां ज़्यादातर देश अपनी-अपनी नेटिव भाषा का ही इस्तेमाल करते हैं. लेकिन हमारे यहाँ, इतनी सारी समृद्ध भाषाएँ होने के बावजूद, हमने अपनी भाषाओं को पिछड़ेपन के तौर पर पेश किया. इससे बड़ा दुर्भाग्‍य क्‍या हो सकता है? कोई कितना भी इनोवेटिव माइंड क्यों न हो, अगर वो अंग्रेजी नहीं बोल सकता था तो उसकी प्रतिभा को जल्दी स्वीकार नहीं किया जाता था. इसका सबसे बड़ा नुकसान हमारे ग्रामीण अंचल के होनहार बच्चों को उठाना पड़ा है. आज आजादी के अमृतकाल में नेशनल एजुकेशन पॉलिसी के जरिए देश ने इस हीनभावना को भी पीछे छोड़ने की शुरुआत की है और मैं तो यूएन में भी भारत की भाषा बोलता हूँ. 

प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी की एक खाशियत है कि वह जो बोलते हैं वह बहुत ही कान्फीडेंस से बोलते हैं. उन्होंने अपने मनोबल न कभी गिराया न ही किसी का गिरने दिया. भारतीय भाषाओँ के सम्मान के साथ भाषाई दृष्टि से समृद्ध युवा मन की पहचान रखने वाले प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने हीनता और हीनभावना से लोगों को निकलने का जो इस मंच से आह्वान किया वह भारत को नई संवेदना के साथ आगे बढ़ने में मदद करेगा. हिंदुस्तान के लिए इसे लोग आने वाले आज़ादी के शताब्दी वर्ष पर रचनात्मक पहल के रूप में देखेंगे, यदि ऐसा कहा जाये तो कोई अतिशयोक्तिपूर्ण बात न होगी. उन्होंने इस समागम में भारत मंडपम से कह भी दिया कि युवाओं के पास भाषा का आत्मविश्वास होगा, तो उनका हुनर, उनकी प्रतिभा भी खुल करके सामने आएगी. और, इसका एक और लाभ देश को होगा। भाषा की राजनीति करके अपनी नफरत की दुकान चलाने वालों का भी शटर डाउन हो जाएगा. उन्होंने साफ साफ कहा कि आजादी के अमृत महोत्सव में, आने वाले 25 साल बहुत ही महत्वपूर्ण हैं. इन 25 सालों में हमें ऊर्जा से भरी एक युवा पीढ़ी का निर्माण करना है. एक ऐसी पीढ़ी, जो गुलामी की मानसिकता से मुक्त हो. एक ऐसी पीढ़ी, जो नए-नए इनोवेसंस के लिए लालायित हो. एक ऐसी पीढ़ी, जो साइंस से लेकर स्पोर्ट्स तक हर क्षेत्र में भारत का नाम रोशन करे, भारत का नाम आगे बढ़ाए. एक ऐसी पीढ़ी, जो 21वीं सदी के भारत की आवश्यकताओं को समझते हुए अपना सामर्थ्य बढ़ाए. और, एक ऐसी पीढ़ी, जो कर्तव्य बोध से भरी हुई हो, अपने दायित्वों को जानती हो-समझती हो. खास बात यह है कि उन्होंने इसके साथ जोड़ा कि इसमें राष्ट्रीय शिक्षा नीति की बहुत बड़ी भूमिका है.

जब प्रधान मंत्री भारतीय शिक्षा समागम को संबोधित कर रहे थे तो वहां कुलपत थे, यूजीसी के चेयरमैन थे. दूसरे कई आयोग के चेयरपर्सन और आईआईटीज के निदेशक थे, पूरा शिक्षा मंत्रालय और मंत्रिमंडल के सदस्य थे. प्रधान मंत्री युवा-युवा और बस युवा की बात कर रहे थे. इससे एक बात साफ हो गई कि वह भले बड़े सीनियर, अनुभवी इन्टैल्क्चुअल के बीच बोल रहे थे लेकिन उनका फोकस था भारत का युवा वर्ग कोई और नहीं. उन्हें इन्हीं में भारत का भविष्य दिख रहा था. इसे बहुत ही गहराई से समझने की कोशिश की जाये तो अपने संबोधन में प्रधान मंत्री ने तो युवाओं से, युवाओं के लिए, युवाओं द्वारा भारत के भविष्य व भारत बोध को बताने की कोशिश की. वे अपने युवा भारत की युवा संपदा को भरपूर विकसित करने के अब पक्ष में हैं जो भारत के लिए वरदान साबित होने वाला है.  

उन्होंने भले कहा कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत, अब नए तरीकों से पढ़ाई होगी. लेकिन उन्होंने जो नहीं कहा उसे यदि हमारा देश समझ ले तो निश्चय ही प्रधान मंत्री का सन्देश भारत की तस्वीर बदल देगा. उन्होंने जो नहीं कहा वह यही था कि अब भारत की आगे बढ़ने की हर पटकथा के केंद्र में युवा को रखें, यह महत्वपूर्ण बात है. वे स्पष्ट करते हैं कि नन्हें वैज्ञानिक आगे चलकर देश के बड़े-बड़े प्रोजेक्ट्स को लीड करेंगे, भारत को दुनिया का रिसर्च हब बनाएँगे. यह समझने की आवश्यकता है. यह भी गौर करने की बात है कि उन्होंने कहा कि किसी भी सुधार के लिए साहस की जरूरत होती है, और जहां साहस होता है, वहीं नई संभावनाएं जन्म लेती हैं. यही वजह है कि विश्व आज भारत को नई संभावनाओं की नर्सरी के रूप में देख रहा है. समर्थ युवाओं का निर्माण सशक्त राष्ट्र के निर्माण की सबसे बड़ी गारंटी होती है और, युवाओं के निर्माण में पहली भूमिका माता-पिता और शिक्षकों की होती है. इसलिए, मैं शिक्षकों और अभिभावकों, सभी से कहना चाहूंगा कि बच्चों को हमें खुली उड़ान देने का मौका देना ही होगा. हमें उनके भीतर आत्मविश्वास भरना है ताकि वो हमेशा कुछ नया सीखने और करने का साहस कर सकें. हमें भविष्य पर नज़र रखनी होगी, हमें फ्यूचरिस्टिक माइंडसेट के साथ सोचना होगा. ….मैं चाहूँगा कि हमारे स्कूलों में फ्युचर टेक से जुड़े इंटरैक्टिव सेशन आयोजित हों. हमें हमारी शिक्षा व्यवस्था को इस तरह से तैयार करना होगा, ताकि युवा इस दिशा में जागरूक भी हों, उनकी जिज्ञासा भी बढ़े. भारत के भविष्य को गढ़ने के आप सबके ये प्रयास एक नए भारत की नींव का निर्माण करेंगे. और मुझे पक्‍का विश्‍वास है कि 2047 में हम सबका सपना है, हम सबका संकल्‍प है कि जब देश आजादी के 100 साल मनाएगा, 2047 में ये हमारा देश विकसित भारत होकर रहेगा. शिक्षा समागम की एक खास उपलब्धि कही जाएगी की प्रधान मंत्री ने इस समागम में नया बीज बोया है जो ठीक ठीक विकसित हुआ तो विकसित भारत तो बनेगा, यह सुनिश्चित है.   

 

प्रो. कन्हैया त्रिपाठी 

लेखक भारत गणराज्य के महामहिम राष्ट्रपति जी के विशेष कार्य अधिकारी-ओएसडी रह चुके हैं। आप केंद्रीय विश्वविद्यालय पंजाब में चेयर प्रोफेसर और अहिंसा आयोग और अहिंसक सभ्यता के पैरोकार हैं। 

 

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