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तो फिर ये पागलपन हम कुबूल करते हैं….

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हम कुछ नहीं जानते

हम तो सोचते है सिर्फ़ अपने ही बारे में,
लोगों के सामने रोते हैं गिड़गिड़ाते हैं I 
लेकिन कभी हमने सोचा नहीं उनके बारे में, 
जो ग़मों से हर रोज़ लड़ते लड़ते हार जाते हैं I 

हम हैं बहुत ही मतलबी और निर्दयी भी, 
कहाँ कभी किसी की परवाह हम करते हैं I 
हमें तो ज़िंदगी में इतना कुछ मिला है,  
कहाँ हम दूसरों के दुख दर्द समझते हैं I 

हमारी ज़िंदगी ने हमें सिर्फ़ ख़ुशियाँ ही दी हैं, 
शायद इसलिए हम किसी को कुछ नहीं समझते हैं I 
हम क्या जाने क्या होता चाहत और प्यार करना, 
हम तो सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने स्वार्थ के बारे में सोचते हैं I 

कहाँ है हमारे अंदर वो परिपक्वता अभी, 
अभी तो हमें और भी पापड़ बेलने हैं I 
तुम कहते हो तो शायद सही ही होगा ये, 
हम कहाँ कभी किसी और के बारे में सोचते हैं I 

हम तो हमेशा बहकी बहकी बातें करते हैं, 
हमको दोस्ती और रिश्ते कहाँ निभाने आते हैं I 
हमने तो हमेशा ख़यालों की दुनिया बसाई है, 
हम कहाँ कभी हक़ीक़त से रूबरू नहीं होते हैं I 

चाहे हमें कुछ आता हो या नहीं आता हो, 
लेकिन एक बात हम भली भाँति जानते हैं I 
समझते हैं हम इंसान सभी को,
सभी की इज़्ज़त करना हम बखूबी जानते हैं I 

लोग तो ये भी कहते हैं कि हम पागल हैं,
और हम इसमें कुछ ग़लत नहीं समझते हैं I 
लोगों की परवाह करना उनसे प्यार करना ग़र पागलपन हैं,
तो फिर ये पागलपन हम कुबूल करते हैं I 

— सुमन मोहिनी (नई दिल्ली)

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