तो फिर ये पागलपन हम कुबूल करते हैं….
1 min read

हम कुछ नहीं जानते
हम तो सोचते है सिर्फ़ अपने ही बारे में,
लोगों के सामने रोते हैं गिड़गिड़ाते हैं I
लेकिन कभी हमने सोचा नहीं उनके बारे में,
जो ग़मों से हर रोज़ लड़ते लड़ते हार जाते हैं I
हम हैं बहुत ही मतलबी और निर्दयी भी,
कहाँ कभी किसी की परवाह हम करते हैं I
हमें तो ज़िंदगी में इतना कुछ मिला है,
कहाँ हम दूसरों के दुख दर्द समझते हैं I
हमारी ज़िंदगी ने हमें सिर्फ़ ख़ुशियाँ ही दी हैं,
शायद इसलिए हम किसी को कुछ नहीं समझते हैं I
हम क्या जाने क्या होता चाहत और प्यार करना,
हम तो सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने स्वार्थ के बारे में सोचते हैं I
कहाँ है हमारे अंदर वो परिपक्वता अभी,
अभी तो हमें और भी पापड़ बेलने हैं I
तुम कहते हो तो शायद सही ही होगा ये,
हम कहाँ कभी किसी और के बारे में सोचते हैं I
हम तो हमेशा बहकी बहकी बातें करते हैं,
हमको दोस्ती और रिश्ते कहाँ निभाने आते हैं I
हमने तो हमेशा ख़यालों की दुनिया बसाई है,
हम कहाँ कभी हक़ीक़त से रूबरू नहीं होते हैं I
चाहे हमें कुछ आता हो या नहीं आता हो,
लेकिन एक बात हम भली भाँति जानते हैं I
समझते हैं हम इंसान सभी को,
सभी की इज़्ज़त करना हम बखूबी जानते हैं I
लोग तो ये भी कहते हैं कि हम पागल हैं,
और हम इसमें कुछ ग़लत नहीं समझते हैं I
लोगों की परवाह करना उनसे प्यार करना ग़र पागलपन हैं,
तो फिर ये पागलपन हम कुबूल करते हैं I