Lok Dastak

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” पिंजरे मे कैद पंछी “…

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मुझे मिले थे पँख जान लो, नीलगगन मे उड़ना था।
इस धरती सें उस अंबर तक, हमको खूब विचरना था।
तुमने नोचें पँख हैं उसके , बिना जुर्म ही कैद किया,
जिनको संगी साथी सें मिल, जी भर कलरव करना था।
…… मुझे मिले थे पँख जान लो, नील गगन मे उड़ना था।।

मानव कितना पापी हैं तू, मुझे आकरण पकड़ा हैं।
तोता मैना की जोड़ी को, ला पिंजरों मे जकड़ा हैं।
मुझको कैद किया हैं तूने, क्या तेरा अपराध नहीं,
रोज भुगतता पाप कर्म हैं, फिर भी देखो अकड़ा हैं।
एक छोटा सा टेप मंगा ले, गान मेरा यदि सुनना था।
……..मुझे मिले थे पँख जान लो, नीलगगन मे उड़ना था।।

हम को कर परतन्त्र बताओ, पता नहीं क्या सुख पाते हो।
हमें बंद कर पिंजरे मे, मेरा अस्तित्व मिटा जाते हो।
पिंजरे मे मिल पाता हैं क्या, मुझको एक उन्मुक्त जहां,
मेरे सुख को छीन हमारा, आसमान क्यों खा जाते हो।।
छीन रहा ऊपर वाला सब, तुम्हे भाग्य मे मिलना था।।
………मुझे मिले थे पँख जान लो, नीलगगन मे उड़ना था।।।

मुझको स्वर और रूप मिला, तेरी आँखों खटक गया।
तेरी लालच और ख्वाहिश, पिंजरे मे तेरी लटक गया।
मेरा जीवन चक्र हैं पूरा, बता मुझे क्या क्या देगा,
क्या होता एहसास तुझे , तू पाप कर्म मे अटक गया।
मेरे घर और बच्चे होते, खुशियों सें सब मिलना था।
…..मुझे मिले थे पँख जान लो, नीलगगन मे उड़ना था।।

मुझे प्रकति सें मिले पँख थे, हाय उसे क्यों नोच लिया।
अरे नराधम सुखी रहेगा, कैसे तूमने सोंच लिया।
कितना दर्द मिल रहा मुझको, हुआ कभी एहसास तुम्हे,
मुझको जाल बिछा कर पकड़ा, और पिंजरे मे कैद किया।
नारकीय जीवन कर डाला, बयां दर्द यह करना था।.
……. मुझे मिले थे पँख जान लो, नीलगगन मे उड़ना था।।

जितेंद्र मिश्र यायावर
सेमरौता – अमेठी

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