सिर्फ एक तानए ग़ैरत से मैं मर जाऊंगा, मुझ पे शमशीर उठाने की जरूरत क्या है….
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रायबरेली I
बज़्मे हयाते अदब किठावा के तत्वाधान में काशानए हयात के अंदर एक काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया । जिसकी अध्यक्षता लाल मियां ने की और संचालन आलिम समर ने किया। ‘तुझको मालूम नहीं इल्म की दौलत क्या है ‘इस पंक्ति पर शायरों ने अपनी रचनाएं सुनाई । मोहम्मद अरकान को कुरआने पाक का नाज़िरा मुकम्मल होने पर सम्मानित किया गया ।
असलम सलोनी ने कहा- सिर्फ एक तानए ग़ैरत से मैं मर जाऊंगा- मुझ पे शमशीर उठाने की जरूरत क्या है ,आफताब ज़िया ने पढ़ा -इतना इजहार ए मसर्रत की जरूरत क्या है ,ख्वाब तो ख्वाब है ख्वाबों की हकीकत क्या है। अम्मार सहर में पढ़ा- फूल छूते हैं तो आ जाती है उंगली पे खराश , लखनऊ वालों से पूछो कि नफासत क्या है ,तय्यार जफर ने पढ़ा- मैंने जाना ही नहीं ज़हर ए अदावत क्या है मुझसे ये पूछिए सरकार मोहब्बत क्या है , शान सलोनी ने पढ़ा- अपने मां-बाप की जानिब से न रुख़ मोड़ोगे इल्म हो जाए अगर उनकी फजीलत क्या है ।
यासिर नजर ने पढ़ा – क्या हंसी खेल है ज़रदार से पूछा जाए गम के मारो को पता है कि मुसीबत क्या है ।दिलशाद राही ने पढ़ा -काश इस बात का तुझ को भी यक़ी आ जाए तेरी चाहत के अलावा मेरी चाहत क्या है ।इसके अलावा तौसीफ़ ,मिनहाज ,आमिर कमर, आलिम समर ,नफीस अख़्तर, हाशिम उमर ,कासिम हुनर सलोनी ने अपनी काव्य रचनाएं प्रस्तुत की ।इस मौके पर शब्बीर, असगर, रहमत अली ,नजम असग़र जमील, वकार, बिलाल आदि मौजूद रहे ।