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विश्व शांति दिवस (World Peace Day) : एक सुरक्षित भविष्य की पुकार

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विशेष रिपोर्ट -रवि नाथ दीक्षित

 

“जहाँ इंसानियत हो धर्म,

जहाँ नफरत की जगह हो प्रेम,

जहाँ हथियारों की जगह किताबें हों,

वही असली शांति का संगम है।”

हर वर्ष 21 सितंबर को पूरी दुनिया एक स्वर में शांति का आह्वान करती है। यह दिन केवल एक औपचारिकता नहीं, बल्कि मानव सभ्यता की उस गहरी आवश्यकता का प्रतीक है, जिसके बिना जीवन की समूची संरचना बिखर सकती है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा स्थापित विश्व शांति दिवस हमें यह याद दिलाता है कि हथियारों की चमक और युद्ध की आग कभी भी स्थायी समाधान नहीं बन सकती।

स्थायी शांति ही सच्चे विकास और समृद्धि का आधार है, आज जब धरती के कई कोने युद्ध, आतंकवाद, जातीय संघर्ष और भूख की त्रासदी झेल रहे हैं, तब शांति का महत्व और भी बढ़ जाता है। यह केवल राष्ट्रों के बीच का मुद्दा नहीं है, बल्कि हर उस व्यक्ति की जिम्मेदारी है जो बेहतर भविष्य का सपना देखता है|

इस वर्ष अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस 2025 की थीम है – “शांतिपूर्ण विश्व के लिए अभी कार्य करें”। यह थीम हमें चेतावनी देती है कि शांति के लिए योजनाएं बनाना काफी नहीं है, बल्कि इसके लिए तुरंत ठोस कदम उठाने होंगे। जलवायु संकट, सीमाई तनाव, सामाजिक असमानता और हथियारों की बढ़ती दौड़ यह साफ़ संकेत देते हैं कि अगर हम आज नहीं चेते तो आने वाला कल और भी भयावह हो सकता है,

चुनौतियां और सच्चाई

दुनिया में युद्ध की सबसे बड़ी कीमत हमेशा आम इंसान चुकाता है – वह किसान जिसकी फसल उजड़ जाती है, वह माँ जिसका बेटा मोर्चे पर शहीद हो जाता है, और वह बच्चा जिसकी किताबें बमों की गूंज में खो जाती हैं। यह कड़वी सच्चाई हमें बार-बार सोचने पर मजबूर करती है कि आखिर कब तक मानवता सत्ता और स्वार्थ की भेंट चढ़ती रहेगी,

हमारी जिम्मेदारी…..

शांति केवल कागज़ी संधियों या बड़ी बैठकों से नहीं आती। यह हमारी सोच, व्यवहार और जीवनशैली से शुरू होती है। अगर हम अपने घरों में संवाद को प्राथमिकता दें, समाज में सहिष्णुता को बढ़ावा दें और सोशल मीडिया पर नफरत की बजाय सकारात्मकता फैलाएं, तो यह छोटे-छोटे कदम मिलकर बड़े बदलाव ला सकते हैं। बच्चों को करुणा और सहयोग की शिक्षा देना भी शांति की सबसे बड़ी नींव है,

विश्व शांति दिवस हमें केवल स्मरण नहीं कराता, बल्कि कार्रवाई के लिए पुकारता है। 2025 की थीम “शांतिपूर्ण विश्व के लिए अभी कार्य करें” इस बात का प्रतीक है कि हमें और इंतज़ार करने का अधिकार नहीं है। अगर हम आज हाथ बढ़ाएं, नफरत की जगह प्रेम को चुनें और हथियारों की जगह संवाद को अपनाएं, तो निश्चित ही हम आने वाली पीढ़ियों को एक ऐसा विश्व दे सकेंगे, जहाँ युद्ध की ध्वनि नहीं, बल्कि शांति की सरगम गूँजती होगी।

 

“शांति कोई सपना नहीं,

यह हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है।

आज कदम बढ़ाएँ,

ताकि कल हमारी आने वाली पीढ़ियाँ सुरक्षित साँस ले सकें।”

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