World Cleanliness Day : विश्व सफाई दिवस: “Let’s Do It” – एक वैश्विक संकल्प
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विशेष रिपोर्ट: रविनाथ दीक्षित
दुनिया भर में स्वच्छता केवल एक आदत या आवश्यकता भर नहीं है, बल्कि यह मानवीय सभ्यता और प्रकृति के प्रति हमारी जिम्मेदारी का प्रतीक है। जब हम अपने आसपास की गंदगी हटाते हैं, तो केवल धूल-मिट्टी और कचरे को नहीं हटाते, बल्कि उस मानसिकता को भी दूर करते हैं जो हमें लापरवाह और पर्यावरण के प्रति गैर-जिम्मेदार बनाती है। इसी सोच को वैश्विक रूप देने के लिए हर वर्ष सितंबर के तीसरे शनिवार को विश्व सफाई दिवस (World Cleanup Day) मनाया जाता है।
इस वर्ष का स्लोगन है – “Let’s Do It” यानी “आओ, हम सब मिलकर करें”। यह नारा केवल शब्दों का मेल नहीं, बल्कि सामूहिक चेतना और नागरिक जिम्मेदारी का आह्वान है। आज जब पूरी दुनिया प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन और असंतुलित उपभोग के संकट से जूझ रही है, तब यह दिवस हमें एकजुट होकर समाधान खोजने और धरती को स्वच्छ बनाने की प्रेरणा देता है।
विश्व सफाई दिवस का इतिहास और महत्व
विश्व सफाई दिवस की शुरुआत एस्टोनिया (Estonia) नामक छोटे से यूरोपीय देश से हुई थी। वर्ष 2008 में वहाँ 50,000 से अधिक लोगों ने एक साथ निकलकर केवल पांच घंटे में 10,000 टन से ज्यादा कचरा साफ किया। इस ऐतिहासिक पहल को “Let’s Do It Estonia” नाम दिया गया। यही आंदोलन आगे चलकर पूरी दुनिया में फैल गया और आज 150 से ज्यादा देशों में करोड़ों लोग एक दिन एक साथ सफाई करके धरती को राहत देने का संकल्प लेते हैं।
इस आंदोलन की सबसे बड़ी ताकत इसकी जन-सहभागिता है। सरकारें और संस्थाएँ तभी सफल होती हैं जब आम नागरिक सक्रियता से जुड़ते हैं। यही कारण है कि विश्व सफाई दिवस पर स्कूल, कॉलेज, एनजीओ, स्थानीय संस्थाएँ, धार्मिक संगठन और उद्योग जगत सब मिलकर एक अभियान चलाते हैं।
स्वच्छता का सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक आयाम
भारत जैसे देश में स्वच्छता केवल स्वास्थ्य का मुद्दा नहीं है, यह संस्कृति और आस्था से भी जुड़ा हुआ है। हमारे शास्त्रों में कहा गया है – “स्वच्छता ही ईश्वरत्व है”। यानी जहाँ स्वच्छता है, वहीं ईश्वर का वास है।
स्वच्छता के कई आयाम हैं
सांस्कृतिक दृष्टि से: मंदिरों, पूजा स्थलों और घरों में साफ-सफाई को पवित्रता का आधार माना जाता है।
सामाजिक दृष्टि से: गंदगी से फैलने वाली बीमारियाँ समाज को कमजोर करती हैं। डेंगू, मलेरिया, हैजा जैसी बीमारियाँ सीधे गंदगी से जुड़ी होती हैं।
आर्थिक दृष्टि से: पर्यटक साफ-सुथरे स्थानों पर ही आकर्षित होते हैं। स्वच्छ शहर पर्यटन और निवेश दोनों को बढ़ावा देते हैं। गंदगी से न केवल स्वास्थ्य पर खर्च बढ़ता है बल्कि उत्पादकता भी घटती है।
स्लोगन “Let’s Do It” की प्रासंगिकता
आज का समय केवल सोचने का नहीं, बल्कि करने का समय है। “Let’s Do It” स्लोगन यही संदेश देता है कि हम सबको मिलकर धरती को बचाने के लिए कदम उठाने होंगे। यह नारा हमें केवल शिकायत करने से रोकता है और कार्रवाई करने की प्रेरणा देता है। यह बताता है कि छोटे-छोटे प्रयास मिलकर बड़े बदलाव ला सकते हैं। यह एक वैश्विक एकता का प्रतीक है—चाहे कोई अमीर देश हो या गरीब, प्रदूषण सबके लिए एक जैसी समस्या है।
भारत में स्वच्छता अभियान और सरकार की पहल
भारत ने स्वच्छता की दिशा में सबसे बड़ा कदम वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू किए गए स्वच्छ भारत अभियान के रूप में देखा। इस अभियान ने गाँव-गाँव, शहर-शहर में लोगों को स्वच्छता के महत्व से जोड़ा।
भारत में प्रमुख पहलें
1. स्वच्छ भारत मिशन – खुले में शौच से मुक्त भारत की दिशा में ऐतिहासिक कदम।
2. प्लास्टिक मुक्त भारत अभियान – सिंगल-यूज़ प्लास्टिक पर रोक लगाने का प्रयास।
3. गंगा स्वच्छता मिशन (नमामि गंगे) – दुनिया के सबसे बड़े नदी सफाई अभियान में से एक।
4. कचरा प्रबंधन योजनाएँ – गीले और सूखे कचरे को अलग करना, रिसाइक्लिंग और पुनः उपयोग करना।
विश्व स्तर पर सफाई अभियान की चुनौतियाँ और उपलब्धियाँ
चुनौतियाँ –
बढ़ती जनसंख्या और शहरीकरण से कचरे का दबाव बढ़ रहा है।
प्लास्टिक और ई-वेस्ट का प्रबंधन कठिन है।
जागरूकता की कमी और लापरवाही सबसे बड़ी बाधा है।
उपलब्धियाँ:-
लाखों टन कचरा हर साल इस अभियान से हटाया जाता है।
लोग सामूहिक कार्य के महत्व को समझने लगे हैं।
स्वच्छता को केवल सरकार का काम न मानकर नागरिक जिम्मेदारी माना जाने लगा है।
पर्यावरण, स्वास्थ्य और जलवायु परिवर्तन से जुड़ाव
स्वच्छता का सीधा संबंध पर्यावरण और स्वास्थ्य से है। गंदगी से प्रदूषण बढ़ता है और प्रदूषण से जलवायु परिवर्तन की समस्या और गंभीर होती है।
स्वास्थ्य पर असर – अस्वच्छ वातावरण से संक्रामक रोग फैलते हैं।
पर्यावरण पर असर – कचरे का ढेर जमीन और जलस्रोतों को प्रदूषित करता है।
जलवायु पर असर – कचरे से निकलने वाली ग्रीनहाउस गैसें (जैसे मीथेन) ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ाती हैं।
युवाओं, स्वयंसेवी संगठनों और नागरिकों की भूमिका
इस अभियान में सबसे बड़ी शक्ति युवा वर्ग है। कॉलेज और स्कूल के विद्यार्थी जब इसमें जुड़ते हैं तो समाज में ऊर्जा और उत्साह का संचार होता है।
स्वयंसेवी संस्थाएँ (NGOs) और स्थानीय संगठन सफाई की निरंतरता बनाए रखते हैं। वहीं हर नागरिक की जिम्मेदारी है कि वह अपने घर और आसपास सफाई रखे और दूसरों को भी प्रेरित करे।
डिजिटल युग और स्वच्छता
आज डिजिटल प्लेटफॉर्म्स जैसे सोशल मीडिया, मोबाइल ऐप्स और ऑनलाइन नेटवर्क सफाई अभियान के प्रचार-प्रसार में बड़ी भूमिका निभा रहे हैं।लोग फेसबुक, इंस्टाग्राम और ट्विटर पर #WorldCleanupDay जैसे हैशटैग चलाकर जागरूकता फैला रहे हैं।कई जगहों पर मोबाइल ऐप के जरिए कचरे की लोकेशन बताई जाती है ताकि टीमें जाकर सफाई कर सकें।
शिक्षा, मीडिया और जागरूकता की जिम्मेदारी
स्वच्छता केवल अभियान नहीं, बल्कि आदत बननी चाहिए। इसके लिए शिक्षा और मीडिया की भूमिका अहम है।स्कूलों में बच्चों को स्वच्छता की शिक्षा देना ज़रूरी है।मीडिया को केवल कार्यक्रम कवर करने तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि लोगों की सोच बदलने की दिशा में लगातार प्रयास करना चाहता है।
व्यावहारिक उदाहरण और प्रेरक कहानियाँ
इंदौर शहर लगातार कई वर्षों से देश का सबसे स्वच्छ शहर बनकर सामने आया है। यह दिखाता है कि यदि प्रशासन और जनता मिलकर प्रयास करें तो चमत्कार हो सकता है।कई गाँवों ने सामूहिक श्रमदान से अपने तालाब, नालियाँ और सड़कें साफ की हैं।केरल, सिक्किम और मेघालय जैसे राज्यों में स्थानीय समुदायों ने सामूहिक प्रयास से नदियों और जंगलों को स्वच्छ बनाए रखा है।
वैश्विक संकल्प
विश्व सफाई दिवस केवल एक दिन की गतिविधि नहीं है, बल्कि यह हमें याद दिलाता है कि धरती हमारी साझा धरोहर है और इसे साफ-सुथरा रखना हमारी जिम्मेदारी है।
आज जरूरत है कि हम सब इस वर्ष के स्लोगन “Let’s Do It” को अपने जीवन का मंत्र बनाएँ। सरकार, समाज, उद्योग, युवा और बच्चे—सब मिलकर यदि जिम्मेदारी निभाएँ, तो वह दिन दूर नहीं जब हमारी धरती एक बार फिर से हरी-भरी, स्वच्छ और स्वस्थ दिखेगी।