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विषय आमंत्रित रचना – जीवन में चिन्तन – मनन____ ।

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जीवन में कोई भी कार्य हम करे तो चिन्तन – मनन उसके लिये आवश्यक है । कहते है की सही चिन्तन से किया हुआ कार्य
सफलता को प्राप्त होता है । किसी भी रचनात्मक काम की जन्मस्थली कल्पना है । पहले मन में एक योजना की कल्पना उठती है। फिर उसे लिपिबद्ध करने के लिए कलम चलती है।

फिर उस पर अच्छी तरह सही से चिन्तन मनन होता है। तब हमारी मानसिकता क्रियान्विति के लिए आगे बढती है। इस पृष्ठभूमि को तकनीकी भाषा में हम सृजनात्मक कल्पनाशीलता
कहते हैं । इसी के सहारे बड़े से बड़े, छोटे से छोटे सारे काम क्रियान्वित होते हैं। कठिन परिस्थिति और हताशा का चोली-दामन का साथ है ।

ऐसे में आदमी निराशा की ही बात पहली मानसिक प्रतिक्रया से करता है । विरले ही होते हैं जो इस घड़ी में भी नहीं डगमगाते और संयत रह पाते है । एक छोटा सा प्रयत्न हमारी सोच की दिशा को बदल सकता है । एक सही से सकारात्मक विचार का चिन्तन-मनन। करते-करते मनन में हृदयंगम हो जाती है सकारात्मकता ।

सकारात्मकता का अभ्यस्त और कठिनतम परिस्थिति में वह कभी भी नहीं होगा मानसिक रूप से त्रस्त । मनन करें वह मंथन करें की हम क्या कर रहे हैं कहाँ जा रहे है? लोभ और अनावश्यक चीजों के मायाजाल में फँस रहे हैं । हम इस संसार की मृगतृष्णा से अपनी बाज़ी स्वयं हार रहे हैं हरकदम ।हम विवेकशील प्राणी होकर भी विवेकशून्य हो रहे हैं । क्योंकि हमें जिन्हें छोड़ना हैं उन्हें ही हम जोड़ रहे हैं ।

ज़िन्दगी तो हमारी हल्की-फुल्की है ।हम हमारी ख्वाहिशों के बोझ तले दब रहे हैं । अपनी इच्छाओं से जो बेजोड़ नाता हमने बना रखा है उस गठबंधन को हमें तृप्ति की मज़बूत डोर से तुरन्त बाँधना होगा । अल्प समय का सुख और दीर्घकालीन खुशी का फ़र्क़ शान्ति से समझना होगा। उसको ह्रदंयगम करना होगा की अंत में ख़ाली हाथ ही है जाना । ये जगत का सुख तो है सपना , बढ़े जितना , घटे उतना ।

बस पुण्य की कमाई पर हक अपना है । और-और की व्यर्थ क्षुधा हमें संसार से बाँधने वाली- क्षणिक आनन्द देकर , दीर्घ खुशियों को छीनने वाली है । मन से मनन करते हुए नमन । मन- मनन – नमन । इस तरह हर अक्षर का अपना – अपना महत्व होता है । मन शब्द के पीछे जब जुड़ जाये न अक्षर तो मन का उच्चारण बन जाता है मनन । एक बिन्दु पर रहता है हमारा केन्द्रित क्रियाशील मन।

भीतर ही भीतर चलता है उसका चिन्तन। जिससे निर्णय शक्ति का संवर्धन होता है । वह सही से सफलता का वरण होता है । यदि मन का मनन रुप में हो अगर अवतरण तो मन का होगा सदा सकरात्मक अवलोकन।हर अक्षर का अपना महत्व होता है । मन शब्द के आगे जुड़ जाये न अक्षर। तब नमन शब्द का जन्म होता है । तब मन का पूर्ण रुप से रुपांतरण हो जाता है ।

नमस्कार या झुकना है- मन का नमन। नमन बन मन का अहंकार रहित हमें होना हैं ।ऋजुता व मृदुता का विकास करना हैं । चंचल मन को शान्त व निर्विकार बनाना है । नमन कर आत्मगुणों के विस्तार को पाना हैं । गतिशील मन पर यदि रोक लगाना चाहते हो तो न अक्षर का मन से सदा जुड़े रहना ज़रूरी है । चाहे आगे या पीछे पर सदा साथ निभाना जरुरी है ।

जिससे मनन और नमन बन मन द्वारा सदा अशुभ कर्मो का शमन हमारे द्वारा होगा ।मन- मनन -नमन को इस तरह हम सही से समझे । अपनी शक्ति को पहचान कर , ज्ञान की अनन्तता को पाकर आदि हम जीवन के वास्तविक सुख से मुख़ातिब होने के चिन्तन के साथ पीयूष प्रवाह में जीवन को झोकें ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )

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