कहानी और कविता की कुछ पंक्तियां मेरे जेहन…
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सोमवार का दिन है, मैं तैयार कर रही बच्चों का नाश्ता
और स्कूल ड्रेस
साथ में बना रही चाय और कर रही गर्म पानी
अपने बुजूर्ग सास ससुर के लिए
मेरे हाथ और पैर लगातार हिल रहे हैं, चल रहे हैं
आंखें सतर्क हर चीज को देख रही है
मेरे मोबाइल में बज रहा है सुगम संगीत और मेरे होंठो
से निकल रहा है मध्यम स्वर
कभी कभी इन्हीं होंठो से उठ रही है आवाज
‘उठ जाओ बच्चों , स्कूल के लिए देर हो जाओगे’
समय पंख लगाकर उड़ रहा है और मेरा मन भी
कविता और कहानी की कुछ पंक्तियां मेरे जेहन में चल रही है
पर अंगुलियों के बीच फंसी है
कलछी और कड़ाही
तवे पर सेंकती रोटियां और प्याज की चुभन आँखों में
सभी की जरूरतें पूरी करके
अभी सोफे पर बैठी हूं
हाथ में है चाय का प्याला और लैपटॉप स्क्रीन आंखों के सामने
लिखने की कोशिश में याद कर रही उन पंक्तियों को जो आया था ख्यालों में, रसोई में छौंक लगाती दाल के समय
विस्मृत मस्तिष्क को बार बार स्मृति में लाने की कोशिश में
यही पंक्तियां लिख देती हूं जो आप अभी पढ़ रहे हैं
लोग कहते हैं स्त्रियों को स्वतंत्रता की जरूरत नहीं और
लोग यह भी सलाह दे रहे हैं बादाम खाओ
पर उससे क्या
काम के समय याद आयी बातें याद रहेगी?
क्या हमारे पास और कोई सम्भावनाएं है?