मानव जीवन, एक संघर्ष की गाथा….
1 min read प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़, राजस्थान )
मानव जीवन एक संघर्ष की गाथा है । संघर्ष करते मनुष्य के सामने अनेक संकट आते है और उनमें सफलता भी मिलती है ।
जो लोग डर कर संघर्ष करना छोड़ देते है तब संकट अधिक गहरा जाते है ।और उन पर विजय पाना कठिन हो जाता है ।अतः हमें संकटों से घबराने की जरूरत नहीं हैं । उनसे निपटने का विचार दृढ़ संकल्पित करना चाहिए। मानव जीवन में अनेक बार ऐसी परिस्थितियां आती है जब मनुष्य समझ नहीं पाता की उसे किस तरह उस परिस्थिति का सामना करना है ।
मैंने अनुभव किया है की कभी – कभी परिस्थितिवश उत्पन्न स्थिति स्वयं में इतनी उलझी होती है की अगर उस समय सही से सूझ बूझ , धैर्य और दूर दृष्टि सोच आदि का सही से सहारा न लिया जाये तो निर्णय गलत होने की पूरी सम्भावना रहती है ।अनेको बार छोटी – छोटी बातें हमें गहरे तक प्रभावित करती हैं । ऐसी स्थिति उत्पन्न होने पर बेहतर तो यह है की हम शांति और धैर्य से उस परिस्थिति का विश्लेषण करें तथा उस स्थिति के पक्ष विपक्ष दोनों के बारे में सोंचे क्योंकि प्रत्येक स्थिति के दो पहलू होते है I
एक अगर सकारात्मक है तो दूसरा नकारात्मक अवश्य होगा ।
हमें परिस्थिति के गुण दोष के आधार पर निर्णय लेना चाहिए न की घबराकर कोई कदम उठाना चाहिए जिससे की हमारे पक्ष में होने वाली बात का भी विपरीत असर हो जाये ।सबसे बड़ी बात हमें किसी भी विपरीत स्थिति में धैर्य , सहनशीलता और शांति आदि से निर्णय लेने की आदत डालनी चाहिए ।अतः अगर ऐसा हुआ तो हम अपने जीवन में अवश्य सफल होंगे । जिंदगी जीना आसान नहीं होता है । बिना संघर्ष कोई महान नहीं होता है । जब तक न पडे होथोडे की चोट तब तक पत्थर भी भगवान नहीं होता हैं ।
जिंदगी बहुत कुछ सिखाती है| कभी हमको हँसाती है कभी रुलाती है ।जो हर हाल में खुश रहते हैं जिंदगी उनके आगे सर झुकाती है। जब तक जान न पाएगे सही जीवन का संघर्ष किसी व्यक्ति विशेष से नहीं बल्कि कर्म और आत्मा का है बाकी तो मात्र निमित्त है। जब इस बात को जानेंगे स्वत ही संशय वह दुविधा के घेरे से बाहर जाएंगे ।जब श्रृद्धा अटूट होगी तो तब जीवन रूपी गाड़ी में किसी चौराहे को पार करने में भी आसानी होगी। जर्जर कस्ती के सहारे सब तूफानों से लङने का इरादा है।लङखङा रहे हैं कदम पर दूर तक चलने का वादा है।कैसे कोई जी सकता है निरोग, निरामय,आनन्द आदि का जीवन ? जब जीवनशैली के प्रतिजागरूकता कम व उदासीनता ज्यादा है।जीवन का यही संघर्ष हैं ।
मन के पीछे भागे तो होगा अजीब विरोधाभास ।आत्मा जागे तो होगा सही पुरूषार्थ।तब जीवन जीने का सही फार्मूला होगा हमारे पास। जिस प्रकार पतझड़ के बिना वृक्ष पर नए पत्ते नहीं आते हैं। उसी प्रकार संघर्ष और कठिनाइयों के बिना जीवन में अच्छे दिन नहीं आते हैं ।
आने वाली कठिनाइयों का अर्थ ही है आगे बढ़कर निडर होकर अपनी छुपी हुई शक्तियों को बाहर निकालना है। जिसने इसको समझ कर चुनौतियों का सामना कर लिया व अपने कदम आगे बढ़ा दिये उसी ने सबको अपना बना लिया । उदाहरण है – बलिदानों की अमर कहानी, पौरुष की जीवंत निशानी,संघर्षों में हार न मानी, आर्य भिक्षु का त्याग- तपोमय “तुलसी” अनुसंधान।
(लेखक के अपने विचार हैं )