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टीबी चैम्पियन की साहस भरी कहानी, ज्योति की जुबानी

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लखनऊ I
ज्योति जिस उत्साह से अपनी यात्रा की कहानी बताती हैं, उससे लगता ही नहीं है कि वह कुछ महीने पहले ही क्षय रोग से स्वस्थ हुई हैं | ज्योति खुशी-खुशी बताती हैं कि वह अब बिल्कुल स्वस्थ हैं और चाहती हैं कि सभी लोग स्वस्थ रहें | इसलिए वह टीबी चैम्पियन के तौर पर काम कर लोगों को इस बीमारी से स्वस्थ बनाने में मदद कर रही हैं |

ज्योति बताती हैं कि जब उन्हें पिछले साल दिसंबर में पता चला कि उन्हें फेफड़ों की टीबी है तो बहुत घबरा गयी थीं |”मुझे सबसे ज्यादा डर अपने पाँच माह के बच्चे को लेकर था कि कहीं उसे भी यह बीमारी न हो जाए और मैं उसकी देखभाल किस तरह कर पाऊँगी | इसके अलावा घर में पति और सास -ससुर भी थे |’’
जब डाक्टर से मिली तो आशंकाओं का समाधान हुआ | डाक्टर की सलाह पर मास्क लगाकर और स्वस्थ व्यवहार अपनाकर बच्चे को स्तनपान कराया और देखभाल की | आज वह और बच्चा बिल्कुल स्वस्थ हैं| अब बच्चा लगभग डेढ़ साल का हो गया है |

टीबी से ठीक होने में उनके पति का बहुत सहयोग रहा | वह ही दवाएं और खाने -पीने का ख्याल रखते थे | “मैं ज्यादा से ज्यादा समय अपने कमरे में ही रहती थी और जब सास-ससुर के सामने आती थी तो घूँघट और मास्क मे रहती थी |’’ ज्योति का कहना है कि दवाओं के सेवन से उनके बाल झड़ने लगे थे लेकिन डाक्टर की सलाह के अनुसार उन्होंने नियमित दवा और दालें, अंकुरित चना, दूध, मौसमी फल और सब्जियों आदि का सेवन किया | डाक्टर ने यह भी कहा था कि इलाज पूरा होने के बाद जब दवाओं का सेवन बंद हो जाएगा तो यह समस्या भी खत्म हो जाएगी |

ज्योति के अनुसार क्षय रोग में दवा और पौष्टिक पदार्थों के सेवन के साथ काउंसलिंग बहुत कारगर है | वह बताती हैं कि एक महिला के जुड़वां बच्चों को ढाई माह पहले क्षय रोग की पुष्टि हुई | “शुरू में उनकी माँ घबरा गयीं थी कि बच्चे कैसे ठीक होंगे लेकिन जब उनसे खुद का उदाहरण देते हुए अस्पताल में बात की और फोन पर भी काउंसलिंग की तो उन्हें कुछ साहस मिला| अब इलाज शुरू हुए दो माह से अधिक हो चुके हैं | बच्चों का वजन भी बढ़ा है और बच्चों की माँ खुद भी कहती हैं कि जो बच्चे ठीक से खाना नहीं खाते थे और सुस्त रहते थे, लेकिनआज वह खेलते हैं और खुद से खाना खाने के लिए मांगते हैं |’’

ज्योति क्षय रोगियों को अस्पताल में नियमित दवा सेवन करने और दवा सेवन से होने वाले दुष्प्रभावों के बारे में परामर्श देती हैं | इसके साथ ही वह फोन पर क्षय रोगियों और उनके परिवार के सदस्यों की आशंकाओं को दूर करने का प्रयास करती हैं | वह समुदाय में भी लोगों को जागरूक करने के लिए बैठकें करती हैं और क्षय रोगियों के घर भी जाती हैं |ज्योति बताती हैं कि क्षय रोग को लेकर लोगों में भ्रांतियाँ हैं कि यदि किसी को क्षय रोग है तो उसके संपर्क में आने वालों को भी यह रोग हो सकता है या एक बार अगर क्षय रोग हो गया तो ठीक नहीं होगा |

यही कारण है कि घर में पति के अलावा किसी को भी इस बीमारी के बारे में नहीं बताया था क्योंकि उसे यह डर था कि कहीं वह कोई भेदभाव या दुर्व्यवहार न करें |इसलिए क्षय रोग से ठीक होने के बाद जब अस्पताल में उससे टीबी चैम्पियनके तौर पर काम करने के लिए कहा गया तो वह तुरंत ही तैयार हो गई ताकि लोगों को इस बीमारी के बारे में सही जानकारी दे सके| “इसके अलावा आर्थिक रूप से मदद भी मिल रही है,’’ ज्योति कहती हैं| ज्योति को टीबी चैम्पियन बने हुए लगभग तीन माह हो गए हैं और अब तक वह करीब 40 क्षय रोगियों की काउंसलिंग कर रही हैं|

वरिष्ठ उपचार पर्यवेक्षक राजीव बताते हैं कि ज्योति इस बात का एक अच्छा उदाहरण हैं कि क्षय रोग से पीड़ित होने पर उनकी बताई बातों का पालन कर जल्द स्वस्थहो सकते हैं और संक्रमण फैलने से रोक भी सकते हैं | ज्योति ने खुद भी हर उस बात का पालन किया जो अस्पताल द्वारा उन्हें बताई गयी| यही कारण रहा कि ज्योति के साथ-साथ जिन मरीजों का इलाज शुरू हुआ था उनमें सबसे पहले ज्योति का इलाज पूरा हुआ | स्वस्थ होने के बाद ज्योति बाकी क्षय रोगियों की मदद को तत्पर हैं |

जिला क्षय रोग अधिकारी डा. आर.वी. सिंह बताते हैं कि क्षय उन्मूलन में दवा, पोषण के साथ काउंसलिंग बहुत जरूरी है | जिला क्षय उन्मूलन इकाई के लोग, ज्योति जैसे टीबी चैम्पियन और आशा कार्यकर्ता द्वारा क्षय रोगियों को काउंसलिंग करते हैं|
“मैं रोगियों को बताना चाहूँगा कि निक्षय पोषण योजना के तहत इलाज के दौरान हर माह 500 रुपये की धनराशि उनके खाते में भेजे जाने का प्रावधान है | इसके साथ ही उन्मूलन के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए क्षय रोगियों को शैक्षणिक और औद्योगिक संस्थानों, राजनीतिक दलों, सभ्रान्त व्यक्तियों द्वारा पोषणात्मक और भावनात्मक सहयोग देने के लिए गोद भी लिया जा रहा है |”

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