लोहिया के शिष्य ने अपनी राजनीतिक दांव-पेंच से मनवाया लोहा
1 min readदेश में समता मूलक समाज की स्थापना गांव गरीबों किसानों मजदूरों मजलूमों के लिए सदैव उठने वाली आवाज 10 अक्टूबर को सदा सदा के लिए अनंत में विलीन हो गई।डाक्टर लोहिया जय प्रकाश नारायण मधु लिमए कर्पूरी ठाकुर बीपी मंडल के विचारो को आत्मसात करके समाजवाद की पाठशाला के गुरु समाजवाद के महानायक , रफीकुल मुल्क ,धरती पुत्र सहित विभिन्न उपाधियों से नवाजे जा चुके महामानव नेताजी मुलायम सिंह यादव जी का अवसान होना एक युग के अवसान होने जैसा है।नेताजी के कद का अंदाजा उनके प्रति आम जनमानस में उमड़े प्रेम की बानगी अपने मसीहा के प्रति दीवानगी आने वाले समय में शोषित पीड़ित वंचित समाज के तीर्थ स्थल जैसा बन चुकी सैफई व उसके आसपास की धरती पर ऐतिहासिक रूप से उमड़े अभूतपूर्व अपार जन समूह ने बता दिया कि उनके लिए मुलायम सिंह यादव व्यक्ति नहीं बल्कि महामानव थे । जो भी मुलायम सिंह से मिला तो उनका ही हो गया ।अपने साथ जुड़े लोगों को परिवार के सदस्य की तरह बेपनाह प्यार मुहब्बत दिया ।उनके निधन के बाद अंतिम संस्कार के समय उमड़े जन समुदाय के लोगों के करुण स्वर चहुं ओर इस कदर सुनाई पड़ रहे थे जैसे धरती आसमान वनस्पतियां सबके सबके सब मुलायम स्वरूप में अपने को समाहित करने के लिए व्याकुल हो ।नेताजी की लोगों के प्रति उनके मन में दया प्रेम व करुणा के अथाह सागर थे मुलायम सिंह यादव।सैफई में मौजूद हर उस सख्श के आंखों से बरबस ही आंसु निकल आ रहे थे।उनकी यादें उनके द्वारा अपने छः दशक की राजनीति में कहे गए एक शब्द लोगों की जुबां पर अपने आप ही निकल जा रहे थे।दलीय राजनीति की दीवारें उनके अंतिम दर्शन के समय ध्वस्त दिखी ।
मुलायम इतने मुलायम रहे की उनके धुर विरोधी भी उनकी दरिया दिली के मुरीद बन गए ।उत्तर प्रदेश के साथ ही देश की बड़ी बड़ी हस्तियों के जमावड़े ने जता दिया की मुलायम बनना कितना कठिन रहा है।सैफई में उनके साथ साए की तरह मौजूद रहे उनके पुत्र व यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री सपा मुखिया अखिलेश यादव पुत्र के दायित्वों के निर्वहन करने के साथ ही जिस धीर गंभीर स्वभाव को दर्शा रहा था वह भी नेताजी की विरासत व उनकी परवरिश के तौर के नतीजे के तौर पर माना जाता रहा है।जीवन में पहली बार पिता को खोने के बाद अखिलेश यादव शायद ही इस तरह कभी पहले दिखे हो । हर शख्स अखिलेश यादव में ही अपने नेता की सूरत खोजते दिखे ।पूरे घटनाक्रम में अखिलेश यादव कार्यकर्ताओं को सांत्वना देने के साथ ही शायद पहली बार बिना पिता के खुद को जिम्मेदारियों के बोझ को समझ रहे थे।देश में समाजवादी विचारधारा के सबसे अग्रणी राजनेता मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद अखिलेश यादव के मजबूत कंधो पर समाजवाद को मजबूत करने के साथ ही समाज के अंतिम पायदान पर खड़े लोगों की लड़ाई लड़ने का है ।नेताजी जैसी प्रतिबद्धता संविधान व देश के प्रति भावना उन्हे अपने आदर्श नेता व पिता से विरासत में मिली है।
अखिलेश के नेता जी के सपनों को साकार करने की चुनौती
फिलहाल अखिलेश यादव के सामने अपने पिता मुलायम सिंह यादव के सपनो को संजोने के साथ ही उन्हें साकार स्वरूप देने की बड़ी चुनौती है।जिससे निबटने के लिए पूरी तरह से तैयार दिख रहे अखिलेश यादव को अपने चाचा व राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले प्रोफेसर राम गोपाल यादव व हनुमान जैसे कर्तव्यनिष्ठ व समर्पित भाई पूर्व सांसद धर्मेद्र यादव का साथ संजीवनी जैसा ही माना जा रहा है।
मुलायम सिंह यादव आने वाले दिनों में अपने फैसलों पर अडिग रहने के लिए भी जाने जायेंगे ।जमीन से जुड़े समाजवाद के महानायक के निधन के बाद उमड़ा जनसैलाब उनकी सामाजिक व राजनीतिक प्रतिबद्धता के प्रति लोगो के स्नेह का ही परिणाम माना जा सकता है।हिंदी के सबसे बड़े हिमायती होने के साथ ही मुलायम सिंह यादव ने रोटी कपड़ा सस्ती हो दवा पढ़ाई मुफ्त हो का नारा देकर जमीन से जुड़े तबके के दिलो में बस गए थे।कहा जाता है कि नेताजी का कार्यकर्ताओं से जिस तरह जुड़ाव रहा वैसा शायद ही किसी दूसरे नेता का बन पाए ।उन्हे ज्यादातर कार्यकर्ताओं के नाम तक याद हो जाना मामूली बात नही हो सकती है।मुलायम सिंह यादव विचारधारा के धुर विरोधियों से स्नेह मिलते थे जो उनकी राजनीतिक खूबी को दर्शाता है।राजनीतिक जोड़ तोड़ में माहिर मुलायम सिंह यादव ने पहलवानी के अखाड़े की तरह अपने विरोधियों को मत मात देने का माद्दा रखते रहे हैं।1989 में उनके मुख्यमंत्री बनने की कहानी भी उतनी ही रोचक है ।2012 में पार्टी के बड़े नेताओं के न चाहते हुए भी अपने पुत्र अखिलेश यादव को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के पद पर आसीन करना उनकी दूरदर्शिता का ही परिणाम है।अखिलेश यादव के राजनीतिक कद को बढ़ाने के पीछे शायद सपा के भीतर व परिवार में मचे घमासान का आभास उन्हे पहले ही हो चुका था।मुलायम सिंह यादव ने अपने उत्तराधिकारी के तौर पर अखिलेश यादव को जिस मजबूती व चतुराई के साथ स्थापित कर दिखाया वह उनके लिए सबसे ज्यादा जरूरी समय की मांग के तौर पर लिया था ।वर्तमान हालातो को देखते हुए माना जा सकता है कि अखिलेश यादव अब देश के साथ यूपी की राजनीति के बड़े चेहरे बन चुके हैं।किंतु अखिलेश यादव के सामने अपने पिता मुलायम सिंह यादव से जुड़े कार्यकर्ताओं को संजोए रखना बड़ी चुनौती है।2012 में सत्ता की बागडोर संभालने के साथ ही अखिलेश यादव ने अपने तमाम फैसलों से राजनीतिक हल्कों में अपने पिता की तरह लगातार कड़े फैसले लेने का संदेश देते रहे हैं ।
अखिलेश करेंगे परिवार की एक जुटता बनाने की कोशिश!
अब उन्हें परिवार के भीतर भी परिवारिक एकजुटता के लिए चाचा शिवपाल सिंह यादव व छोटे भाई प्रतीक यादव व उनकी पत्नी अपर्णा यादव से चुनौती मिल रही है।शिवपाल सिंह यादव अपनी अलग पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया बना चुके हैं वही अपर्णा यादव 2022 के विधान सभा चुनावों से पहले भाजपा के खेमे में शामिल हो चुकी है।उनके लिए राहत भरी बात यही है कि इन सबके बावजूद पूरा सैफई परिवार उनके साथ मजबूती से खड़ा दिख रहा है।