Death Anniversary of Avaidyanath : श्री राम मंदिर आंदोलन में अवैद्यनाथ जी का योगदान
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प्रस्तुति – अरविन्द जयतिलक
आज गोरक्षनाथ पीठ के महंत और भगवान श्री राम मंदिर आंदोलन के सूत्रधार अवैद्यनाथ जी की पुण्ंयतिथि है। समाज और राष्ट्र निर्माण में उनका योगदान कालजयी है। कालखंड पर नजर दौड़ाएं तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गुरु महंत अवैद्यनाथ और उनके भी गुरु महंत दिग्विजय नाथ मंदिर आंदोलन के सूत्रधारों और प्रणेताओं में प्रमुख रहे हैं। ब्रह्मलीन महंत अवैद्यनाथ के गुरु ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ की अगुवाई में ही आजादी से पहले गोरक्षपीठ मठ के जरिए राजन्मभूमि आंदोलन को धार दी गयी। ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ की अगुवाई में ही 1934 से 1949 तक राम जन्मभूमि आंदोलन चला। उनके नेतृत्व में 22 दिसंबर, 1949 को विवादित ढांचे के भीतर भगवानी श्रीरामलला की प्रतिमा रखी गयी।
गौर करें तो जब विवादित ढांचे में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम का प्रकटीकरण हुआ उस समय महंत दिग्विजय नाथ गोरखनाथ मंदिर में संत समाज के साथ एक संकीर्तन में भाग ले रहे थे। भगवान श्रीराम के प्राक्टय के बाद मूर्ति न हटने देने में जहां महंत दिग्विजय नाथ ने कालजयी भूमिका निभायी वहीं उनके शिष्य महंत अवैद्यनाथ ने गोरक्षपीठाधीश्वर रहते हुए गोरक्षनाथ पीठ को मंदिर आंदोलन का केंद्र बना दिया। यह तथ्य है कि महंत दिग्विजय नाथ और उनके शिष्य महंत अवैद्यनाथ ने विवादित ढांचे को मंदिर में बदलने की कल्पना को आकार दिया। उल्लेखनीय है कि उस समय हिंदू महासभा के वीडी सावरकर के साथ दिग्विजयनाथ ही थे जिनके हाथ में श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन की कमान थी। हिंदू महासभा के सदस्यों ने तब अयोध्या में इस पुनीत काम को अंजाम दिया उस समय दोनों लोग अखिल भारतीय रामायण महसभा के सदस्य थे।
ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ का 1969 में निधन के बाद उनके शिष्य ब्रह्मलीन महंत अवैद्यनाथ ने आंदोलन को धार दी और वे आजीवन श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति के अध्यक्ष रहे। कहा जाता है कि हिमालय और कैलाश मानसरोवर की यात्रा और साधना से गहरे प्रभावित श्री महंत जी पहली बार 1940 में गोरक्षनाथ पीठ के महंत दिग्विजय नाथ से मिले और 8 फरवरी, 1942 को महज 23 साल की अवस्था में गोरक्षपीठ के उत्तराधिकारी बन गए। वे अपने गुरु महंत दिग्विजय नाथ की ही तरह श्रीराम जन्मभूमि मंदिर निर्माण में जुट गए। इतिहस गवाह है कि वे 1983-84 से शुरु राम जन्मभूमि आंदोलन के शीर्ष नेतृत्वकर्ताओं में से एक थे। वह श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति के अध्यक्ष के अलावा राम जन्मभूमि न्यास समिति के भी अध्यक्ष थे। 80 और 90 के दशक में अशोक सिंहल, महंत रामचंद्र परमहंस और महंत अवैद्यनाथ की तिकड़ी जो आंदोलन की रणनीतिकार और सूत्रधार बनकर उभरी उसका खाका गोरक्षनाथ पीठ में ही खींची गयी। उस दौरान मंदिर आंदोलन को लेकर होने वाली सभी बैठकें गोरक्षनाथ पीठ में ही हुआ करती थी। उन दिनों महंत अवैद्यनाथ हिंदू महासभा में थे।
1989 का चुनाव भी उन्होंने रामजन्म भूमि के मुद्दे पर हिंदू महासभा से लड़ा और विजयी हुए। 1986 में जब फैजाबाद के जिलाधिकारी ने हिंदुओं को पूजा करने के लिए विवादित ढांचा खोलने का आदेश दिया, उस दरम्यान महंत अवैद्यनाथ वहां मौजुद थे। योग और दर्शन के मर्मज्ञ महंत अवैद्यनाथ के राजनीति में आने का उद्देश्य ही भगवान श्रीराम के उदात्त चरित्र के जरिए हिंदू समाज में व्याप्त कुरीतियों और बुराईयों को दूर करना और राम मंदिर आंदोलन को गति व उर्जा देना था। हिंदू धर्म में व्याप्त भेदभाव को दूर करने के लिए उन्होंने लगातार सहभोज का आयोजन किया। इसके लिए उन्होंने बनारस में डोमराज के यहां जाकर भोजन कर समाज की एकजुटता का संदेश दिया। 19 फरवरी, 1981 को मीनाक्षीपुरम में धर्मांतरण की घटना के बाद उन्होंने देश भर में सामाजिक समरसता का अभियान चलाया।
महंत अवैद्यनाथ का दिगंबर अखाड़े के महंत रामचंद्र परमहंस से भी बेहद घनिष्ठ संबंध था। महंत रामचंद्र परमहंस राम जन्मभूमि न्यास के पहले अध्यक्ष थे, जिसे मंदिर निर्माण के लिए गठित किया गया। भगवान श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन के प्रति महंत अवैद्यनाथ का कितना लगाव था, वह इसी से समझा जा सकता है कि 6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या में विवादित ढांचा ढ़हाए जाने का रोडमैप उनकी ही देखरेख में तैयार हुआ। श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के लिए विश्व हिंदू परिषद ने प्रयागराज में 1989 में जिस धर्मसंसद का आयोजन किया, उसमें अवैद्यनाथ के भाषण ने ही इस आंदोलन को उर्जा से सराबोर किया और धर्मसंसद के तीन साल बाद ही 6 दिसंबर, 1992 को विवादित ढांचा ढ़हा दिया गया। महंत अवैद्यनाथ के ब्रह्मलीन होने के बाद गोरक्षपीठ के गुरुत्तर संचालन और श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन को सारगर्भित उर्जा देने की जिम्मेदारी योगी आदित्यनाथ के कंधों पर आन पड़ी।
योगी आदित्यनाथ ने अपने गुरु के सपने को फलीभूत करने और श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन को धार देने के उद्देश्य से वे राजनीति के अखाड़े में उतरे और संत व नागर समाज के सरोकारों से खुद को जोड़ा। उल्लेखनीय है कि महंत अवैद्यनाथ ने 1994 में योगी आदित्यनाथ को गोरक्षपीठ का उत्तराधिकारी घोषित किया। तब से लेकर आज तक योगी आदित्यनाथ प्रारंभ हिंदू समाज और हिंदुत्व की राजनीति को अपनी विचारधारा की धुरी बनाए रखा। वे अपने गुरु महंत अवैद्यनाथ व महंत दिग्विजयनाथ की ही तरह श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन को मुकाम पर पहुंचाने के लिए हरसंभव समर्पण भाव दिखाया और नतीजा सामने है। अब भगवान श्रीराम के भव्य मंदिर को साकार करने की जिम्मेदारी भी गोरक्षनाथ पीठ के महंत व उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कंधों पर है। शायद कालखंड ने ही सुनिश्चित कर रखा है कि जिस गोरक्षनाथ पीठ में भगवान श्रीराम की जन्मभूमि पर भव्य मंदिर निर्माण का सपना गढ़ा गया उसे पूरा करने का उत्तरदायित्व भी गोरक्षनाथ पीठ के एक महंत के हाथों रहा है।
याद होगा कि देश की सर्वोच्च अदालत द्वारा श्रीराम जन्मभूमि विवाद मामले में 9 नवंबर को फैसला आने के बाद अब अयोध्या में भगवान श्री राम भव्य मंदिर का निर्माण काम लगभग पूरा हो चुका है । अब तक देश-दुनिया के करोड़ों लोग भगवान श्रीराम का दर्षन कर चुके हैं। इसका पूरा श्रेय भारतीय जनमानस, संतसमाज और धार्मिक संगठनों को जाता है जिन्होंने मर्यादा और कानून के दायरे में रहकर भगवान श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन को उर्जा दी। 500 वर्ष की लंबी लड़ाई और अदालती कार्रवाई के सुखद अंजाम से देश आह्लादित है और समाज में समरसता-एकता की भावना मजबूत हुई है। देश उन साधु-संतो और मठों-अखाड़ों का ऋणी है जो प्रतिकूल परिस्थितियों के बीच रामनाम का अलख जगाए रखा और देश को आस्था की चैतन्यता से लबरेज किया। उसका एक बड़ा श्रेय गोरक्षनाथ पीठ को जाता है जिसने अयोध्या में भगवान श्रीराम के भव्य मंदिर निर्माण के बीज को अंकुरित किया और उसके महंतों ने मंदिर आंदोलन को गतिशील बनाया।
यह अद्भुत संयोग ही है कि अयोध्या श्रीराम जन्मभूमि मामले में जब भी कोई महत्वूर्ण क्षण आया उसका संबंध गोरक्षनाथ पीठ से जुड़ा। सर्वोच्च अदालत का भी फैसला आया तो गोरक्षनाथ पीठ के पीठाधीश्वर महंत योगी आदित्यनाथ ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं। यह संयोग प्रतीत कराता है मानों समय ने पहले ही निर्धारित कर रखा कि जिस गोरक्षपीठ के प्रांगण में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के भव्य मंदिर के सपने को गढ़ा-बुना गया उस सपने को पूरा करने की जिम्मेदारी भी गोरक्षपीठ के किसी पीठाधीश्वर के हाथों होगी। ऐसा ही होता हुआ देखा भी गया। सच कहें तो अयोध्या में निर्मित भगवान श्रीराम के भव्य मंदिर के निर्माण में गोरक्षनाथ पीठ के पीठाधीश्वर और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की भूमिका इतिहास के पन्नों में स्वर्णाक्षरों में अंकित हो चुकी है।