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Historical Facts In Literature : कबीर के दोहे में साबुन: साहित्य और इतिहास का अद्भुत संगम

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PRESENTED BY VIVEKANAND SINGH

कबीरदास के दोहे केवल आध्यात्मिक ज्ञान और जीवन दर्शन के प्रतीक नहीं, बल्कि अपने समय के सामाजिक, सांस्कृतिक और भौतिक जीवन के साक्षी भी हैं। कुछ दिनों पहले सारण ज़िला के मढ़ौरा निवासी सिद्धेश सिंह जी से बातचीत के दौरान यह रोचक तथ्य सामने आया कि प्रसिद्ध दोहा “निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय” में कबीर ने उदाहरण स्वरूप “साबुन” का उल्लेख किया है।

यह संदर्भ न केवल लोकभाषा में प्रचलित वस्तुओं की उपस्थिति को दर्शाता है, बल्कि यह भी बताता है कि उस दौर में साबुन का ज्ञान और उसका प्रयोग समाज में प्रचलित था। इतिहास और साहित्य की यह अनूठी संगति, भारतीय जीवन के बहुआयामी स्वरूप पर नई रोशनी डालती है।

कुछ दिनों पहले सारण जिला के मढ़ौरा निवासी, सिद्धेश सिंहजी ने बात की बात में कबीरदास के दोहा, ‘निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय…

कुछ दिनों पहले सारण जिला के मढ़ौरा निवासी, सिद्धेश सिंहजी ने बात की बात में कबीरदास के दोहा, ‘निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय। बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।’ का ज़िक्र किया और पूछा कि कबीरदास का निधन कब हुआ था?, मैने बताया कि 1518 में, तब उन्होंने पूछा कि भारत में साबुन 1897 में आया तो फिर कबीरदास ने 1518 के पहले लिखे गए अपने दोहा में साबुन शब्द का ज़िक्र कैसे कर दिया?

प्रश्न वाकई पेंचदार था, जिसका उत्तर पुराभिलेखों के साथ ही डॉ. विनुप्रिया सक्करवर्ती, सहायक प्रोफेसर, त्वचाविज्ञान विभाग (एम्स, मदुरै) के एक लेख में मिला।वर्तमान समय में शरीर को स्वच्छ करने, कपड़े धोने और अन्य साफ़सफ़ाई के कार्यों के लिए प्रयुक्त होनेवाले साबुन की उत्पत्ति लगभग 2800 ईसापूर्व में प्राचीन मेसोपोटामिया के बेबीलोन (जिसका खण्डहर इराक के बगदाद से लगभग 80 किमी दूर हिल्ला शहर के निकट स्थित है) में हुई थी, उन दिनों साबुन पशुओं की चर्बी या वनस्पति तेलों को क्षारीय पदार्थों के साथ मिलाकर बनाया जाता था।

सोप (sope), यानी साबुन का सबसे पहला उल्लेख रोमन विद्वान्, प्लिनी द एल्डर की 37 खण्डों में प्रकाशित विश्वकोश, नेचुरल हिस्ट्री, जो सन् 77 में लिखी गई थी, के खण्ड आठ में उपलब्ध है; स्वाभाविकरुप से उन दिनों साबुन वैसा नहीं रहा होगा, जैसा आज है। कालान्तर में इटली, स्पेन, फ्रांस, इंग्लैण्ड और यूरोप के अन्य देशों में साबुन का उत्पादन होने लगा, जिसमें स्थानीय तेलों यथा – जैतून का तेल, ताड़ या नारियल के तेल का प्रयोग किया जाता था।

विवरण हिंदुस्तान यूनिलीवर लिमिटेड द्वारा 1888 की गर्मियों में, कोलकाता बंदरगाह पर आने वाले पर्यटकों ने सनलाइट साबुन की टिकियों से भरे टोकरे देखे, जिन पर “लीवर ब्रदर्स द्वारा इंग्लैंड में निर्मित” लिखा हुआ था। इसके बाद 1895 में लाइफबॉय बाज़ार में आया। तत्पश्चात नॉर्थ-वेस्टर्न प्रोविंसेस (अब उत्तर प्रदेश) के मेरठ में 1897 में नॉर्थ-वेस्ट सोप कम्पनी द्वारा भारत का पहला साबुन फ़ैक्टरी स्थापित किया गया।

एच. आर. मचीराजू की पुस्तक मर्चेंट बैंकिंग, प्रिंसिपल्स एण्ड प्रैक्टिस के विवरणानुसार सर दोराबजी टाटा ने कोच्चि में 10 दिसम्बर, 1917 को द टाटा ऑयल मिल्स कम्पनी लिमिटेड की स्थापना की, जहाँ साबुन, डिटर्जेंट, ग्लिसरीन आदि उत्पादों का निर्माण होने लगा। आगे चलकर इस कम्पनी ने पहला स्वदेशी साबुन बाज़ार में उतारा, जिसका नाम ओके था।

12 मई, 2023 को भोपाल समाचार में प्रकाशित एक लेख के अनुसार इतिहासकारों का कहना है कि साबुन, फ़ारसी शब्द है और कबीरदासजी के समय भारत में अरबी एवं फ़ारसी भाषा का प्रचलन था। अतः यह माना जाता है कि कबीरदास ने फ़ारसी शब्द साबुन का उपयोग अपने दोहे में किया है।

नोट – लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तम्भकार हैं। बलिया जिले के मूल निवासी हैं।

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