जहँ सिंसुपा पुनीत तर रघुबर किय बिश्रामु।अति सनेहँ सादर भरत कीन्हेउ दंड प्रनामु॥
1 min readअमेठी । विकासखंड गौरीगंज के मऊ गांव में विधायक राकेश प्रताप सिंह के यहां चल रही श्रीराम कथा के सप्तम दिवस कथावाचक स्वामी प्रणव पुरी महाराज ने भरत चरित्र का अनोखा चित्रण प्रस्तुत किया।जिसे सुनकर श्रोता मंत्रमुग्ध हो गए भगवान के बनवास प्रसंग को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने महाराज दशरथ का भगवान राम के वियोग में देह त्याग। गुरु के आदेश पर भरत और शत्रुघ्न को ननिहाल से अयोध्या वापस बुलाना। रास्ते में अपशकुन और अयोध्या की दशा देख भरत का विकल होना। भवन में कैकेई और अन्य माताओं की दशा देखना पिता का स्वर्गारोहण और भाई का बन गमन यह सुनकर भरत मूर्छित हो गए। गुरु के आदेश पर पिता की अंत्येष्टि करने के बाद अयोध्या वासियों सहित भगवान को मनाने के लिए भारत का बन की ओर प्रस्थान वहां श्रृंगवेरपुर पहुंचकर निषादराज से मिलन इन प्रसंगों का कथावाचक ने बहुत सुंदर वर्णन किया।मानस में कहा है
चले सखा कर सों कर जोरें। सिथिल सरीरु सनेह न थोरें॥
पूँछत सखहि सो ठाउँ देखाऊ। नेकु नयन मन जरनि जुड़ाऊ॥
सखा निषाद राज के हाथ से हाथ मिलाए हुए भरतजी चले। प्रेम कुछ थोड़ा नहीं है जिससे उनका शरीर शिथिल हो रहा है। भरतजी सखा से पूछते हैं कि मुझे वह स्थान दिखलाओ और नेत्र और मन की जलन कुछ ठंडी करो-जहँ सिय रामु लखनु निसि सोए। कहत भरे जल लोचन कोए॥भरत बचन सुनि भयउ बिषादू। तुरत तहाँ लइ गयउ निषादू॥जहाँ सीताजी श्री रामजी और लक्ष्मण रात को सोए थे। ऐसा कहते ही उनके नेत्रों के कोयों में प्रेमाश्रुओं का जल भर आया। भरतजी के वचन सुनकर निषाद को बड़ा विषाद हुआ। वह तुरंत ही उन्हें वहाँ ले गया॥जहँ सिंसुपा पुनीत तर रघुबर किय बिश्रामु।अति सनेहँ सादर भरत कीन्हेउ दंड प्रनामु॥जहाँ पवित्र अशोक के वृक्ष के नीचे श्री रामजी ने विश्राम किया था। भरतजी ने वहाँ अत्यन्त प्रेम से आदरपूर्वक दण्डवत प्रणाम किया॥ कुस साँथरी निहारि सुहाई। कीन्ह प्रनामु प्रदच्छिन जाई॥चरन देख रज आँखिन्ह लाई। बनइ न कहत प्रीति अधिकाई॥कुशों की सुंदर साथरी देखकर उसकी प्रदक्षिणा करके प्रणाम किया। श्री रामचन्द्रजी के चरण चिह्नों की रज आँखों में लगाई। उस समय के प्रेम की अधिकता कहते नहीं बनती॥ यहां से निषाद राज अयोध्या वासियों को भारत सहित चित्रकूट लेकर गए। स्वामी जी ने यह प्रसंग बहुत ही भावपूर्ण ढंग से वर्णित किया जिसे सुनकर श्रोता गदगद हो गए।कथा में मुख्य रूप कथा में मुख्य रूप से विनय सिंह प्रतापगढ़ राजीव श्रीवास्तव पूर्व प्रधान सर में ललित सिंह प्रधान बेटा सत्येंद्र मिश्र राजेंद्र पवन सिंह पठानपुर कुंवर सिंह अनुभव मिश्रा सहित हजारों कथा प्रेमी उपस्थित रहे।