ARTICLE : राष्ट्र सेवा की शताब्दी वर्ष में आरएसएस
1 min read
PRESENTED BY ARVIND JAYTILAK
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) शताब्दी वर्ष में प्रवेश कर चुका है। अपनी स्थापना दिवस पर नागपुर में आयोजित विजयादशमी उत्सव कार्यक्रम को संबोधित करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने उचित कहा कि भारत की मजबूती के लिए समाज को संगठित रहने की आवश्यकता है। उन्होंने पड़ोसी देशों में अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय पर हो रहे अत्याचार को रेखांकित करते हुए विश्व बिरादरी का आह्नान किया कि वे हिंदुओं की मदद के लिए आगे आएं। लेकिन विडंबना है कि संघ प्रमुख के उद्बोधन को कुछ सियासी दल सांप्रदायिक ठहराने की कोशिश कर रहे हैं। अनावश्यक वितंडा खड़ा कर समाज को बांटने के आरोप के साथ-साथ आजादी की जंग में उसकी भूमिका पर कुतर्क गढ़ रहे हैं। जबकि वे अच्छी तरह जानते हैं कि आजादी दिलाने में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अहम भूमिका रही है।
आजादी की जंग के दौरान संघ के संस्थापक डा0 केशव राव बलिराम हेडगवार ने हर एक स्वयंसेवक को शाखा के बाद किसी भी पार्टी से जुड़कर आजादी की लड़ाई में योगदान करने को प्रेरित किया था। जब 1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरु हुआ तब उन्होंने इसे संपूर्ण समर्थन दिया और स्वयं सत्याग्रह में भाग लेकर 9 मास का सश्रम कारावास काटा। उनके निर्देश पर संघ के स्वयंसेवक आजादी की लड़ाई के संवाहक बने और ब्रिटिश हुकुमत की बर्बरता को सहा भी। डा0 साहब के सिद्धांतों पर चलते हुए संघ के दूसरे सरसंघ चालक माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर जिन्हें गुरुजी भी कहा जाता है, ने भी स्वयंसेवकों को जंग में कूद पड़ने के लिए आह्नान किया।
उन्होंने 1942 में संघ के एक कार्यक्रम में कहा भी कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भारत छोड़ो आंदोलन का सहभागी है। जब कांग्रेस के नेता गिरफ्तार कर लिए गए और आंदोलन भटकाव के मोड़ पर आ गया उस दौरान संघ के स्वयंसेवकों ने ब्रिटिश हुकुमत की क्रुरता की परवाह किए बिना आंदोलन की कमान अपने हाथों में ले लिया। यही नहीं संघ के स्वयंसेवक विदर्भ क्षेत्र के कई जिलों में अंग्रेजी हूकुमत को उखाड़ फेंका। 1942 के आंदोलन की सहभागी रही अरुणा आसफ अली ने तब दैनिक समाचार पत्र हिंदुस्तान को दिए गए एक साक्षात्कार में कहा भी कि आंदोलन के दिशाहीन होने पर दिल्ली के संघ के प्रांत संघचालक हंसराज गुप्ता ने अपने घर में मुझे शरण दी और सुरक्षा का पुख्ता बंदोबस्त किया।
देश जानना चाहता है कि फिर धर्मनिरपेक्षता के ठेकेदार किस मुंह से आजादी की जंग में राष्ट्रीय स्वयसेवक संघ की अप्रतिम भूमिका की अनदेखी कर रहे हैं? जानना आवश्यक है कि संघ के स्वयंसेवकों ने अक्टुबर 1947 से ही कश्मीर सीमा पर पाकिस्तानी सेना की गतिविधियों पर बगैर किसी प्रशिक्षण के लगातार नजर रखी। यह काम न तो नेहरु-माउंटबेटन सरकार कर रही थी और न ही हरि सिंह की सरकार। जब पाकिस्तानी सेना ने कश्मीर पर कबायली आक्रमण किया तब भारतीय सैनिकों के साथ सैकड़ों स्वयंसवेकों ने भी अपनी शहादत दी। यह तथ्य है कि कश्मीर के महाराजा हरि सिंह कश्मीर का भारत में विलय को लेकर असमंजस में थे। तब सरदार पटेल ने गुरु गोलवरकर से मदद मांगी।
गुरुजी कश्मीर के महाराजा से मिले और उसके बाद ही महाराजा ने कश्मीर के भारत में विलय का प्रस्ताव दिल्ली भेजा। जब भारत विभाजन के दंगे भड़के और नेहरु सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी थी उस दौरान स्वयंसेवकों ने पाकिस्तान से जान बचाकर आए लाखों शरणार्थियों के लिए शिविर लगाए। बेहतर होगा कि संघ के आलोचक इस सच्चाई को समझें कि राष्ट्रीय स्वयसेवक संघ एक राष्ट्रवादी सामाजिक संगठन है और अपनी स्थापना 27 सितंबर, 1925 से ही भारतवर्ष की सेवा कर रहा है और अपने राष्ट्रवादी विचारों से भारत को पुष्ट कर रहा है। आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपनी 40 हजार से अधिक शाखाओं के माध्यम से देश के प्रत्येक राज्य और प्रत्येक जिले में सामाजिक व सांस्कृतिक कार्य कर रहा है। जंगल झाड़ में रह रहे आदिवासियों के सामाजिक, सांस्कृतिक व शैक्षिक उद्वार के लिए कार्य कर रहा है।
संघ के लाखों स्वयंसेवक उपेक्षा, उपहास, विरोध और अवरोध के बावजूद भी अपने सामाजिक-सांस्कृतिक लक्ष्यों की ओर अग्रसर हैं। हर देश का समाज राष्ट्र की उन्नति के लिए कुछ व्यवस्थाएं खड़ी करता है। सामाजिक-सांस्कृतिक संगठनों को जन्म देता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी उसी तरह एक देशव्यापी देशभक्त, अनुशासित चरित्रवान व निःस्वार्थ सामाजिक व सांस्कृतिक संगठन है। उसकी शाखाएं राष्ट्र निर्माण की प्रयोगशाला है जहां स्वयंसेवकों को राष्ट्रीय व सामाजिक गुणों से लैस किया जाता है। संघ के अनेकों संगठन मसलन सेवा भारती, विद्या भारती, स्वदेशी जागरण मंच, हिंदू स्वयंसेवक संघ, भारतीय मजदूर संघ, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और भारतीय किसान संघ अपने कार्यों से देश की रचनात्मक विकास में योगदान दे रहे हैं।
सच तो यह है कि संघ की उपस्थिति और उसकी भूमिका भारतीय समाज के हर क्षेत्र में 1925 से ही महसूस किया जा रहा है। उदाहरण के तौर पर सन् 1962 के भारत-चीन युद्ध में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु संघ की भूमिका से इतने अधिक प्रभावित हुए कि उन्होंने संघ को सन् 1963 के गणतंत्र दिवस की परेड में सम्मिलित होने का निमंत्रण दिया। सिर्फ दो दिनों की पूर्व सूचना पर तीन हजार से भी ज्यादा राष्ट्रभक्त स्वयंसेवक पूर्ण गणवेश में वहां उपस्थित हो गए। पाकिस्तान से युद्ध के समय लालबहादुर शास्त्री को भी संघ याद आया था। उन्होंने संघ से आग्रह किया कि कानून व्यवस्था संभालने में मदद करे और दिल्ली की यातायात का नियंत्रण अपने हाथ में ले। यहीं नहीं घायल जवानों को जब रक्त की जरुरत पड़ी स्वयंसेवक आगे बढ़कर रक्तदान किए। भारत-पाक युद्ध के दौरान संघ के स्वयंसेवक कश्मीर की हवाई पट्टियों से बर्फ हटाने का काम किए।
आरएसएस को लेकर गांधी जी की सोच व्यापक सकारात्मक और श्रद्धापूर्ण थी। गांधी जी ने 16 सितंबर, 1947 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों से मिलने की इच्छा व्यक्त की और स्वयंसेवकों को संबोधित करते हुए कहा कि ‘बरसों पहले मै वर्धा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक शिविर में गया था। उस समय इसके संस्थापक श्री हेडगेवार जीवित थे। स्वर्गीय श्री जमनालाल बजाज मुझे शिविर में ले गए थे और वहां मैं उन लोगों का कड़ा अनुशासन, सादगी और छुआछूत की पूर्ण समाप्ति देखकर अत्यंत प्रभावित हुआ था। तब से संघ काफी बढ़ गया है। मैं तो हमेशा से मानता आया हूं कि जो भी सेवा और आत्म-त्याग से प्रेरित है, उसकी ताकत बढ़ती ही है। संघ एक सुसंगठित एवं अनुशासित संस्था है।
संघ के खिलाफ जो भी आरोप लगाए जाते हैं, उसमें कोई सच्चाई है या नहीं, यह मैं नहीं जानता। यह संघ का काम है कि वह अपने सुसंगत कामों से इन आरोपों को झूठा साबित कर दे।’ गौर करें तो इन 100 सालों में संघ अपने उपर लगने वाले हर आरोपों को झूठा साबित करने में सफल रहा है। संघ के इतिहास और विचारधारा पर फब्तियां कसने वाले लोगों को जानना चाहिए कि संघ के संस्थापक डा0 केबी हेडगेवार उन गिने-चुने क्रांतिकारियों में से एक थे, जिन्होंने तत्कालीन ब्रिटिश शासन से भारत की मुक्ति के लिए संघर्ष किया। वे 1921 में कांग्रेस आंदोलन में भी शामिल हुए। 1920 में लोकमान्य तिलक के निधन के बाद तत्कालीन राष्ट्रीय नेताओं द्वारा राष्ट्रीय हितों की उपेक्षा से तंग आकर 1925 में राष्ट्रवादी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की।
आजादी के दौरान या बाद कभी भी कोई ऐसा पुख्ता सुबूत देखने को नहीं मिला, जिसको लेकर यह दावा किया जाए कि संघ का आचरण राष्ट्रहित के खिलाफ रहा है। हजारों बार साबित हो चुका है कि जिन बातों को लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की कार्यप्रणाली पर संदेह जताया जाता है, वे राष्ट्रवाद और राष्ट्रचरित्र से जुड़े होते हैं। समाजवाद का ठेका उठा रखे छद्म समाजवादियों को भी ज्ञात होना चाहिए कि 1966 में लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने कठिन परिश्रम और कार्यकुशलता के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भरपूर तारीफ की। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का लक्ष्य संपूर्ण समाज को संगठित कर हिंदू जीवन दर्शन के प्रकाश में समाज का सर्वांगीण विकास करना है।