आस्था का केन्द्र बना देवी हींगलाज माता मंदिर
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विजय कुमार यादव
उत्तर प्रदेश के जिला मुख्यालय अमेठी से उत्तर दिशा में स्थित तहसील मुख्यालय मुसाफिरखाना से उत्तर दिशा मे करीब पांच किमी दूर क्षेत्र की गांव दादरा के पश्चिम स्थाई माता हींगलाज मंदिर लाखो लोगों की आस्था व विश्वास का केन्द्र बना हुआ है। यहॉं चैत्र की नवरात्रि तथा शारदीय नवरात्रि मे नौ दिन मेले जैसी भारी भीड़ उमड़ती है। जहॉं दूर दराज से बड़ी संख्या में श्रद्वालु दर्शन पूजन मन्नते मांगने आते है।
बाबा पुरूषोत्तम दास जी की तपस्या की ही परिणाम है क्षेत्र मे माता अहोरवा भवानी व माता हींगलाज का मंदिर
माता देवी हींगलाज की स्थापना के बारें मे स्थानीय लेागो का कहना है कि बाबा पुरूषोत्तम दास जी ने आसुरी शक्तियों के द्वारा किए जा रहे अत्याचार से बचाने व जनकल्याण के उद्देश्य से वर्तमान पाकिस्तान के ब्लूचिस्तान के लासब्रेसा जिले के ल्यारा तहसील के हिंगोस नदी पर स्थित माता हींगलाज के मंदिर से मॉं को कठिन तपस्या करके ले आये थे। स्थानीय लेागो के अनुसार बाबा पुरूषोत्तम दास जी महान संत होने के साथ ही उन्होंने कई पुस्तको को भी लिखा है ।लोगो का मानना है कि दादरा व आसपास के इलाके मे महामारी का प्रकोप हमेशा ही बना रहता था ।जिसे देख बाबा पुरूषोत्तम दास ने क्षेत्रवासियों को इससे छुटकारा दिलाने के उददेश्य से तपस्या आरम्भ की ।घोर तपस्या के बाद बाबा को आकाशवाणी हुई कि गॉंव के पश्चिम मे मां हींगलाज को लाकर उनका मंदिर बनवाया जाय। जिसे सुनकर बाबा पुरूषोत्तम दास मां हींगलाज का पता लगाया तथा उन्हे लाने के लिए निकल पड़े और माता हिंगलाज को अपनी तपस्या से प्रसन्न करके लाने मे कामायाबी हासिल की।
माता हींगलाज जब चलने को तैयार हुई तो उन्हे उनके शर्तो के अनुसार बाबा अपने साथ लाने लगे। बाबा पुरूषोत्तम दास जी के बारे में उनके बारे में जानकारों ने कई बाते बताई जो इस प्रकार है। बाबा पुरूषोत्तम दास जी के पिता का नाम क्षेमानन्द था । इनकी जैमिनी पुराण 16वी शताब्दी बिक्रम सन् 1501 मे प्रकाशित हुई थी। जिसकी खण्डित पाण्डुलिपि नागरी प्रचारिणी सभा काशी मे रखी हुई है। पुनः संवत 1598 मे जैमिनी अश्वमेघ छन्दोवद्य अवधी भाषा मे लिखा है।, संवत 1620 मे इनके द्वारा लवकुशोपाख्यान लिखा गया। जो राम चरित्र मानस की रचना के पूर्व की बताते है। लोगों ने बड़े आत्म विश्वास के साथ बताया कि राम चरित्र मानस के रचियता गोस्वामी तुलसीदास यहा आ चुके है। बाबा पुरूषोत्तम दास जी जगन्नाथ पुरी से घूमकर काशी आये तथा यहा उन्होने बेद पुराण उपनिषद का अध्ययन किया उसके बाद बाबा पुरूषोत्तम दास जी ने गुरू से सन्यास की इच्छा जताई गुरू के आज्ञा अनुसार वे माता पिता से अनुमति मांगने आये। माता पिता ने सन्यास लेने से मना कर दिया और इनका विवाह कर दिया। मुगल कालीन इतिहास के अनुसार अकबर को जब धर्म सम्बंधी भ्रान्ति पैदा हो गई तो उन्होने फतेहपुर सीकरी के इबादतखाने मे जोधाबाई महल मे सभी धर्मो के विद्वानो की सभा किया जिसमे बाबा पुरूषोत्तम दास जी गये हुए थे। जहा सभी धर्मो के लोगो ने बाबा पुरूषोत्तम दास जी द्वारा बतायी गई बात की पुष्टि करते हुए माना कि हिन्दू धर्म ही एैसा धर्म है जिसने विश्व को अपना परिवार माना तब अकबर ने बाबा को अपना गुरू मान लिया कुछ समय बाद बाबा पुरूषोत्तम दास जी हींगलाज की यात्रा की वहां पहुंच कर बाबा ने कठिन समस्या करके देवी माता हींगलाज को अपने साथ चलने के लिए तैयार किया । देबी हींगलाज चलने से पूर्व शर्त रखा कि आप आगे आगे मेरे पायलो की झंकार सुनते हुए चलेगें। पीछे मुड.कर नही देखेगें।यदि पीछे मुड.कर देखो गें तो मै वही रूक जाऊगीं। चलते चलते इन्हौना के दक्षिण की तरफ बियावान जंगल मे बाबा पुरूषोत्तम दास जी को पायलो की आवाज सुनायी नही दी तो वे शर्त को भूल गये और जैसे ही पीछे मुड.कर देखा तो आवाज सुनायी पड़ी।जिस पर माता जी ने कहा मै अब यही रहूॅगी वह स्थान अब वर्तमान मे अहोरवा भवानी के नाम से बिख्यात है। जहॉ पर सोमवार व शुक्रवार को श्रद्वालुओ का मेला लगता है। जब बाबा पुरूषोत्तम दास जी ने देखा कि निवास स्थान दादरा अभी काफी दूर है तो पुनः माता देवी हींगलाज के समक्ष तपस्या आरम्भ कर दी एक बार फिर पूर्व शर्तानुसार मां हींगलाज चलने को राजी हुई जो बाबा पुरूषोत्तम दास जी के गांव के नजदीक पश्चिम दिशा मे पुनः पायलो की आवाज बन्द हो गयी तो वही पर मॉं देबी हींगलाज का मंदिर बनाया गया I
नौ दिन लगता है मेले जैसी भीड, दूर दराज के क्षेत्रों से आते है श्रद्वालु
नवरात्रि मे भव्य मेला लगता है तथा सोमवार व शुक्रवार को बड़ी संख्या में श्रद्वालु मन्दिर पर माता के सामने माथा टेक कर मनौती मानते है पूर्ण होने पर अनुष्ठान करते है।वही सोमवार से शुरू हो रहे शारदीय नवरात्रि में आने वाले श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए मंदिर प्रबंधन से जुड़े लोग लगातार तैयारियां पूरी करने में जुटे हुए हैं।