महाभारत काल में पांडवों ने की थी मां अहोरवा भवानी की पूजा
1 min readअर्जुन सिंह भदौरिया-
उत्तर प्रदेश के अमेठी जिले के रायबरेली-इंहौना मार्ग पर सिंहपुर ब्लाक के निकट जिला मुख्यालय अमेठी से 58 किलोमीटर की दूरी पर मां अहोरवा भावनी का ऐतिहासिक दरबार अपने आप में तमाम इतिहास संजोये हुए हैं।किमदंतियो की माने तो ऐतिहासिक आदि शक्तिपीठ धरोहर के रूप में मां अहोरवा की स्थापना महाभारत काल में अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने उस वक्त की थी जब वह अज्ञातवास के दौरान शिकार के लिए यहां डेरा डाल रखा था।उस समय यहां वियावान जंगल हुआ करता था। उसी दौरान मां की मूर्ति की स्थापना पांडवों द्वारा हुई थी। मां की परिक्रमा करने और अहोरवा भावनी के चरणों से निकलने वाली नीर से भक्तों को असाध्य रोग से छुटकारा मिलता है ऐसी भक्तों की मान्यता है। मां अहोरवा के दर्शन से भक्तों की मुंहमांगी मुराद पूरी होती है। चैत्र व क्वार माह की नवरात्र में सजने वाले माता के दरबार में भक्तों की अपार भीड़ उमड़ती है। इसे लोगों का विश्वास कहें या श्रद्धा या फिर आदि शक्तिपीठ मां अहोरवा भवानी की दुआओं की शक्ति कि भक्त माता के दरबार में दर्शन के लिए कोसों की दूरी से पेट के बल रेंगते हुए मां के चरणों का आशीर्वाद लेने के लिए आते हैं। अपनी मुरादे पूरी करने के लिये माँ से मनौती करते हैं। ऐसी मान्यता है कि मां अहोरवा भवानी के दरबार में नारी के संपूर्ण स्वरूप का दर्शन होता है मां का स्वरुप सुबह कन्या ,दोपहर को मां का युवती रूप में तो शाम को वृद्ध स्वरूप श्रद्धा के रूप में बदलता नज़र आता है। महाभारत काल में अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने माता की मूर्ति की स्थापना के पीछे चाहे जो भी राज छुपा हो पर आज मां अहोरवा भवानी की ख्याति का परिणाम है कि यहां पर दूर दराज भक्तगण शीश झुकाने चले आते हैं। विकास खंड सिंहपुर मुख्यालय के निकट इन्हौना-रायबरेली मार्ग पर स्थिति इन्हौना से 4 किलोमीटर की दूरी पर मां अहोरवा भवानी का मंदिर स्थापित है मान्यता है कि धनुषधारी वीर अर्जुन विराट वन में आखेट करने आए थे। बताते हैं कि उसी दौरानअर्जुन को प्राकृतिक मूर्ति के रुप में माँ के दर्शन हुये थे तभी मां की स्थापना हुई बाद में सभी पांडवों ने माता द्रोपदी के साथ पांडवों ने माँ की पूजा-अर्चना की थी। वैसे माता अहोरवा भवानी के दरबार के आसपास 360 क्षत्रिय वंश गांव को गांडीव तालुका कहा जाता है। यह गाँव अमेठी जनपद के विकाश क्षेत्र सिंह पुर तथा बाराबंकी जनपद के हैदरगढ़ क्षेत्र में आते हैं।जहाँ कुल देवी के रूप में माता की पूजा होती है सप्ताह के प्रत्येक सोमवार को माता के दरबार में भक्त परिक्रमा के साथ माता की पूजा-अर्चना कर मनौती मांगते हैं। ज्ञात है कि दरबार में आने मात्र से हीं भक्तों के कष्ट दूर होते हैं निसंतान परिवार सहित अनुष्ठान करते हैं एक मान्यता ये भी है कि आंखों की ज्योति कम होने पर मां की प्रतिमा से निकलने वाला नीर लगाने से ज्योति पुनः वापस लौट आती है। अहोरवा भवानी मूर्ति के बारे में क्षेत्र के महेशपुर गाँव निवासी वेदाचार्य शिवकांत त्रिपाठी बताते हैं कि ध्यानपूर्वक मां की मूर्ति से ध्यान लगाएं तो मां का स्वरुप सुबह कन्या का तो दोपहर को माँ का व शाम को वृद्धा के रुप में प्रतीत होता है।
शादी के पहले होती है मां भावनी की पूजा
श्रद्धालुओं की विश्वास व आस्था पर गौर करें तो नवविवाहित कन्याओं के सुहाग के पूर्व की रस्म अदा करने से पहले उनके परिजन उन्हें मां भवानी के दरबार में लाकर माँ गौरी की पूजा कराते हैं ताकि उनकी बेटी सदा सुहागन रहे। और वैवाहिक जीवन के कष्टों किसी भी प्रकार का कष्ट उत्पन न हो सके। क्षेत्र के खेखरुवा गांव निवासी शिक्षक नेता सुनील सिंह बताते हैं कि विवाह के पूर्व मां अहोरवा भवानी के दरबार में गौरी पूजन करने से विवाहित के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। लोग इस रस्म को आज भी बखूबी निभा रहे हैं।आज भी अधिकांश घरों में मुंडन,छेदन व अन्य माँगलिक कार्यक्रम जैसे कार्यक्रम की शुरुआत मां के दरबार से ही होती है।
मंदिर परिसर में सजी दुकानें,नवरात्रि आज से
शारदीय नवरात्रि की शुरुआत आज से हो रही है।क्षेत्र के प्रसिद्ध ऐतिहासिक मां अहोरवा देवी के मंदिर को सजावट देकर भव्य रूप दिया गया है।मंदिर के आसपास प्रसाद की दुकानें सज गई हैं।नवरात्रि का व्रत अनुष्ठान रखने वाले भक्त मां के दर्शन के उपरांत कलश स्थापित करते हैं।और प्रतिदिन मां के दर्शन कर परिक्रमा करते हैं।बदहाल रास्तों के बावजूद बड़ी संख्या में भक्त लेट कर परिक्रमा कर मां के भवन तक दर्शन करने पहुंचते हैं।