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विश्व हिंदी दिवस पर विशेष ________ वैश्विक क्षितिज पर हिन्दी का परचम

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PRESENTED BY ARVIND JAYTILAK 

किसी भी राष्ट्र की जीवंतता और पहचान उसकी भाषा और संस्कृति है। इसके बिना राष्ट्र रुपी शरीर का अस्तित्व, चिंतन और दर्शन सभी कुछ बेमानी है। राष्ट्र के नागरिक निज भाषा से संस्कारित होकर ही अपने मूल्यों, विचारों, आदर्शों और प्रतिमानों को जीते हैं। कहा भी जाता है कि राष्ट्र के विचारों को गढ़ने-बुनने, संजोने-संवारने और उसे प्राणवान बनाने में भाषा की अहम भूमिका होती है। हिन्दी भाषा उन्हीं भाषाओं में से एक है जो भारत की कालजयी सभ्यता-संस्कृति, आचार-विचार, विज्ञान-दर्शन और इतिहास को आलोकित-प्रकाशित करती है।

बदलते वैश्विक परिदृश्य में जहां एक ओर भाषाएं दम तोड़ रही हैं वहीं हिन्दी भाषा अपनी स्वीकार्यता और प्रासंगिकता का लोहा मनवा रही है। आज समूचे विश्व में हिन्दी भाषा की गूंज है। विश्व के अधिकांश देशों में हिन्दी भाषा का सम्मान बढ़ रहा है। नतीजा, आज हिन्दी भाषा न सिर्फ भारत राष्ट्र की भाषा भर है बल्कि समूचे विश्व के लोगों के सांस्कृतिक जुड़ाव, विचारों के आदान-प्रदान और विकास का जरिया बन रही है। हिन्दी भाषा के लिए गौरव का क्षण है कि आज दुनिया भर में बोली जाने वाली सभी भाषाओं में वह तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषाओं में शुमार है।

वल्र्ड लैंग्वेज डेटाबेस के 22 वें संस्करण इथोनालाॅज के मुताबिक विश्व भर की 20 सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में 6 भारतीय भाषाएं हैं। इनमें हिन्दी तीसरे स्थान पर है। आंकडों के लिहाज से देखें तो दुनिया भर में तकरीबन 61.5 करोड़ लोग हिन्दी भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं। इथोनोलाॅज के आंकड़ों के मुताबिक अंग्रेजी भाषा का इस्तेमाल करने वाले लोगों की संख्या 113 करोड़ और चीनी भाषा मंडारिन की संख्या 112 करोड़ है। लेकिन जिस गति से हिन्दी भाषा की स्वीकार्यता व लोकप्रियता आसमान छू रही है उससे साफ है कि आने वाले दिनों में हिन्दी भाषा अंग्रेजी और मंडारिन भाषा को पछाड़कर शीर्ष स्थान पर विराजमान हो जाएगी।

वैश्विक स्तर पर यूजर्स के लिहाज से 1952 में हिन्दी भाषा पांचवे पायदान पर थी जो 1980 के दशक में चीनी और अंग्रेजी भाषा के बाद तीसरे स्थान पर पहुंच गयी। लेकिन विगत दशकों में विकासशील भारत के प्रति बढ़ते वैश्विक आर्थिक-व्यापारिक आकर्षण ने सभी के लिए हिन्दी भाषा को बोलने-समझने की अनिवार्यता सुनिश्चित कर दी। गौर करें तो एक भाषा के तौर पर हिन्दी का जितना अधिक अंतर्राष्ट्रीय विकास हुआ है, विश्व में शायद ही किसी अन्य भाषा का उतना हुआ हो। वे सभी संस्थाएं, सरकारी मशीनरी और छोटे-बड़े समूह बधाई के पात्र हैं जिन्होंने हिन्दी को इस ऊंचाई पर पहुंचाया है। आज हिन्दी भाषी दुनिया के हर कोने में फैले हुए हैं वहीं बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपने व्यवसाय के विस्तार के लिए अपने कर्मचारियों को हिन्दी सीखने का बढ़ावा दे रही हैं।

सच तो यह है कि आज हिन्दी विश्व संवाद का एक सशक्त भाषा के तौर पर उभर चुकी है जिसका विश्व समुदाय तहेदिल से स्वागत कर रहा है। जिस तरह कभी भारतीय भाषा संस्कृत की गंभीरता और उपादेयता को लेकर विश्व समुदाय आत्ममुग्ध था, ठीक उसी प्रकार आज हिन्दी को लेकर उसी तरह का सकारात्मक मनोभाव प्रकट कर रहा है। 1999 में मशीन ट्रांसलेशन शिखर बैठक में टोकियो विश्वविद्यालय के प्रोफेसर होजुमि तनाका द्वारा पेश नए भाषायी आंकड़ों के मुताबिक अब चीनी भाषा के बाद हिन्दी का स्थान है। यानि अंग्रेजी भाषा पीछे छूट गयी है। गौर करें तो आज दुनिया के तकरीबन 40 से अधिक देशों के 600 से अधिक विश्वविद्यालयों और स्कूलों में हिन्दी की पढ़ाई हो रही है। दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका में हिन्दी की धूम मची है।

यहां 30 से अधिक विश्वविद्यालयों में भाषायी पाठ्यक्रम में हिन्दी को महत्वपूर्ण दर्जा हासिल है। ‘लैंग्वेज यूज इन यूनाइटेड स्टेट्स-2011’ की रिपोर्ट से भी उद्घाटित हो चुका है कि अमेरिका में बोली जाने वाली टाॅप दस भाषाओं में हिन्दी है। इसे बोलने वालों की संख्या 6.5 लाख से अधिक है। अमेरिकी कम्युनिटी सर्वे की रिपोर्ट बताती है अमेरिका में हिन्दी 105 प्रतिशत की रफ्तार से आगे बढ़ रही है। अमेरिका में 1875 में ही कैलाग ने हिन्दी भाषा का व्याकरण तैयार किया था। अमेरिका के अलावा यूरोपिय देशों में भी हिन्दी का तेजी से विकास हो रहा है। इंग्लैण्ड के लंदन, कैम्ब्रिज और यार्क विश्वविद्यालयों में हिन्दी को चाहने वालों की तादाद लगातार बढ़ रही है। पहले से कहीं ज्यादा पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन हो रहा है।

आज प्रवासिनी, अमरदीप और भारत भवन पत्र-पत्रिकाएं अपना अस्तित्व बनाए हुए हैं और उसके पाठकों की तादाद लगातार बढ़ रही है। यह हिन्दी की बढ़ती स्वीकार्यता और लोकप्रियता को ही दर्शाता है। जर्मनी के हीडलबर्ग, लोअर सेक्सोनी के लाइपजिंग, बर्लिन के हम्बोलडिट और बाॅन विश्वविद्यालय में भी हिन्दी भाषा को पाठ्यक्रम के रुप में शामिल किया गया है। एक दशक से रुस के कई विश्वविद्यालयों में हिन्दी साहित्य पर शोध हो रहे हैं। यहां हिंदी का बोलबाला बढ़ा है। जर्मनी में हिन्दी पढ़ने वाले सभी छात्र मूलरुप से जर्मन हैं। हाल के वर्षों में जर्मनी में हिन्दी भाषा सीखने वालों की संख्या में आश्चर्यजनक इजाफा हुआ है। हिन्दी का जलवा सिर्फ जर्मनी ही नहीं बल्कि रुस में भी कायम है।

विगत दशकों में अनेक रुसी विद्वानों ने हिंदी साहित्य का अनुवाद किया है। इनमें से एक तुलसीकृत रामचरित मानस भी है जिसका अनुवाद प्रसिद्ध विद्वान वारान्निकोव द्वारा किया गया है। यह तथ्य है कि रुस में हिन्दी गं्रथों का जितना अनुवाद हुआ है उतना शायद ही विश्व में किसी भाषा का हुआ हो। माॅस्को राजकीय विश्वविद्यालय और कुछ अन्य विश्वविद्यालयों में एक अलग पूर्वी भाषाओं के विभाग को बनाया गया है जहां पर हिन्दी की शिक्षा पर जोर दिया जा रहा है। रुसी कवियों ने सबसे पहले जिस भारतीय कवि की रचनाओं का अनुवाद किया, वे कालिदास हैं। हिन्दी की बढ़ती लोकप्रियता का ही आलम है कि वेस्टइंडीज के कई विश्वविद्यालयों में हिन्दी पीठ की स्थापना की गयी है। एशियाई देश जापान में हिन्दी भाषा का बहुत अधिक सम्मान है। मणिपुर और राजस्थान की लोककथाएं जापान की लोककथाओं जैसी है। माॅरिशस में अंग्रेजी राजभाषा है। फ्रेंच बोलने वालों की तादाद भी बहुत अच्छी है।

लेकिन हिन्दी की लोकप्रियता में तनिक भी कमी नहीं है। माॅरिशस की तरह फिजी, नेपाल, भूटान, मालदीव और श्रीलंका में भी हिन्दी का जलवा कायम है। फिजी में बोली जाने वाली प्रमुख भाषा हिन्दी है। इसे फिजियन हिन्दी या फिजियन हिन्दुस्तानी भी कहते हैं। यह फिजी की आधिकारिक भाषाओं में से एक है। नेपाल में भारतीय टेलिविजन और सिनेमा अति लोकप्रिय है जिसके कारण हिन्दी बोलने-समझने वालों की तादाद लगातार बढ़ रही है। इसी तरह खाड़ी देशों में भी हिन्दी का तेजी से प्रचार-प्रसार हर रहा है। यहां के सोशल मीडिया में भी हिन्दी का दखल बढ़ा है। आज कई पत्र-पत्रिकाओं को आनलाइन पढ़ा जा रहा है। संयुक्त अरब अमीरात में हिन्दी एफएम चैनल लोगों का मनोरंजन कर रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों से दुबई में लगातार हिन्दी कार्यक्रमों का आयोजन हो रहा है जो अपने-आप में एक बड़ी उपलब्धि है।

हिन्दी भाषा की यह असाधारण उपलब्धि कही जाएगी कि जिन देशों में भाषा को विचारों की पोषाक और राष्ट्र का जीवन समझा जाता है वहां भी हिन्दी तेजी से अपना पांव पसार रही है। हंगरी, बुल्गारिया, रोमानिया स्विटजरलैंड, स्वीडन, फ्रांस, नार्वे, जापान, इटली, मिस्र, कजाकिस्तान, तुर्केमेनिस्तान, कतर और अफगानिस्तान, रुस और जर्मनी अपनी भाषा को लेकर बेहद संवेदनशील हैं। वे इसे अपनी सांस्कृतिक अस्मिता से जोड़कर देखते हैं। लेकिन इन दशों में हिन्दी को भरपूर स्नेह और सम्मान मिल रहा है। यह हिन्दी भाषा के लिए बड़ी उपलब्धि है। आज दुनिया का कोई ऐसा कोना नहीं जहां भारतीयों की उपस्थिति न हो और वहां हिन्दी का तेजी विस्तार न हो रहा हो।

यह स्वीकारने में हिचक नहीं कि बाजार ने भी हिन्दी की स्वीकार्यता को नई उंचाई दी है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी की चमक प्रमाणित करती है कि संसार में उसकी प्रतिष्ठा और उपादेयता बढ़ी है। वह तेजी से वैश्विक भाषा बन रही है। कभी गोविंदवल्लभ पंत ने सच कहा था कि हिन्दी और नागरी का प्रचार तथा विकास कोई रोक नहीं सकता। उनकी कही बातें आज अक्षरशः सच साबित हो रही है।    

 

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