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बिना वाहन स्कूलों में कैसे जाए टीम,टेंडर के फेर में फंसी बच्चों के स्वास्थ्य की जांच

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REPORT BY MADHAV BAJPAYEE


AMETHI NEWS ।
राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत बच्चों के सेहत की जांच का मामला अधिकारियों की लचर पैरवी में फंसा है। स्कूलों व आंगनवाड़ी केंद्रों पर पढ़ रहे बच्चों के स्वास्थ्य की स्क्रीनिंग के लिए टीम हैं लेकिन, स्कूलों तक पहुंचें कैसे, यह एक बड़ा सवाल है।
दरअसल, टीमों को भेजने के लिए विभाग के पास वाहन ही नहीं है। जिले के 13 ब्लॉकों में मोबाइल हेल्थ टीमगठित है। टीमों को स्कूलों व आंगनबाड़ी केंद्रों पर जाकर बच्चों का स्वास्थ्य परीक्षण करना है। यदि कोई बच्चा बीमार पाया जाता है तो तत्काल इलाज का प्रबंध किया जाना है। इसके लिए सीएचसी से लेकर जिला स्तर तक प्रबंध किए गए हैं।
खास बात यह है कि बच्चों से जुड़े इस मुद्दे को लेकर भी अधिकारी गंभीर नहीं है। टीमों को स्कूलों तक जाने के लिए वाहन का टेंडर नहीं हो सका है। मौजूदा वित्तीय वर्ष को छ माह बीतने को है लेकिन, टेंडर प्रक्रिया पूरी नहीं की जा सकी है।
इस कार्यक्रम के अंतर्गत नियुक्त संविदा स्टाफ वाहन न होने का बहाना बताकर अपनी प्राइवेट प्रैक्टिस करने लगे हैं। उच्च अधिकारी हैं कि वह इस दिशा में कोई सार्थक कदम नहीं उठा रहे हैं।
बाजार शुकुल में यह है स्टाफ
यहां डा. संजय शुक्ल, डा. भूपेश सिंह, डा. विनीत कुमार, डा. दिनेश प्रकाश तिवारी नेत्र सहायक आकाश श्रीवास्तव व कार्तिका श्रीवास्तव और दो के स्थान पर मात्र एक एएनएम मालती की नियुक्ति है। चार-चार स्टाफ की दो टीमें बनाई गई हैं जिन्हें प्रतिदिन 240 बच्चों का स्वास्थ्य परीक्षण किए जाने का लक्ष्य रखा गया है।
किंतु यह टीम पिछले एक वर्ष से निष्क्रिय पड़ी है। विभाग इन्हें बगैर काम के मानदेय दे रहा है। उसे यह भी सुध नहीं कि उसके सात संविदा कर्मी बगैर काम के मानदेय ले रहे हैं।
वाहन न मिलने के कारण टीमें नहीं कर पा रहीं स्वास्थ्य की जांच=सीएमओ
टेंडर के लिए प्रयास सीएमओ डॉ. अंशुमान सिंह का कहना है कि यह बात सही है कि टेंडर नहीं हो पाया है, इसके लिए प्रयास किया जा रहा है। टीमों को स्कूलों व आंगनवाड़ी केंद्रों पर जाकर बच्चों की स्क्रीनिंग करने को कहा गया है।
एक वर्ष से बंद पड़ा बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम
बाजार शुकुल सीएचसी में पिछले एक वर्ष से यह कार्यक्रम बंद पड़ा अंतिम सांसें गिन रहा है। जिम्मेदार वाहन न होने का रोना रो रहे हैं। उच्च अधिकारी हैं कि इस कार्यक्रम का न तो पर्यवेक्षण कर रहे हैं, न ही अनुश्रवण । उनकी उदासीनता स्कूली बच्चों के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डाल रही है।
यहां एक वर्ष से प्राथमिक विद्यालयों व आंगनबाड़ी केंद्रों पर पढ़ रहे बच्चों का स्वास्थ्य परीक्षण नहीं हुआ है। स्वास्थ्य परीक्षण करने वाली स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की टीमों द्वारा दी जाने वाली सलाह व दवाएं भी इन बच्चों को नहीं मिल रही ऐसे में बच्चों का स्वास्थ्य परीक्षण एक वर्ष से यह कार्यक्रम बंद ही पड़ा राम भरोसे है।

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