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हिन्दी साहित्य वैदिक एवं लौकिक संस्कृत की देन- डॉ विजय लक्ष्मी सिंह

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अवधी साहित्य संस्थान अमेठी के तत्वावधान में चल रहे हिन्दी पखवाड़े के दौरान ‘बदलते परिवेश में हिन्दी ‘ विषयक संगोष्ठी का प्रारम्भ अतिथियों द्वारा सरस्वती मां की पूजा अर्चना के साथ हुआ।
संगोष्ठी में पधारे अतिथियों का स्वागत करते हुए अवधी साहित्य संस्थान अमेठी के अध्यक्ष डॉ अर्जुन पाण्डेय ने कहा कि भारत, भारतीयता एवं भारतीय संस्कृति की रक्षा हिन्दी साहित्य के संवर्धन में निहित है ,एक न एक दिन जरूर हिन्दी अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर संयुक्त राष्ट्र संघ में आधिकारिक भाषा का रूप प्राप्त करेगी। हमें अपनी मातृभाषा पर गर्व होना चाहिए।
मुख्य अतिथि के रूप में डॉ विजय लक्ष्मी सिंह ने अपना उद्बोधन देते हुए कहा कि हिन्दी साहित्य वैदिक के साथ लौकिक संस्कृत की देन है। हिन्दी साहित्य का इतिहास गौरवशाली रहा है। हमें अपने साहित्य के अतीत को समझने की जरूरत है।
विशिष्ट अतिथि डॉ शिवेंद्र कुमार मौर्य ने कहा कि जनपदीय बोलियां हिन्दी की प्राण है। अपने शब्द भंडार की विविधता एवं वैज्ञानिकता के कारण हिन्दी श्रेष्ठ से श्रेष्ठतर होती जा रही है।
डॉ त्रिरुपति नाथ तिवारी ने कहा कि हिन्दी स्वयं में समृद्धिशाली है ,जो आने वाले दिनों में पूरी दुनिया में स्थापित होगी।
हिमांशु पाण्डेय प्रखर ने कहा कि हिन्दी रुदन की भाषा नही वरन व्यवसाय की भाषा होनी चाहिए।
संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए अम्वरीश मिश्र ने कहा कि हिन्दी को जनमानस की भाषा बनाने की जरूरत है। भाषा साहित्य के उत्थान से ही राष्ट्र का विकास संभव है।

संगोष्ठी के दूसरे सत्र के काव्य पाठ में अभिजीत त्रिपाठी ने ओज वाणी में कहा कि ‘देश सदा परतंत्र ही रहता अगर न होती हिन्दी’ ।विजय लक्ष्मी सिंह ने कहा कि ‘हिन्द के माथे की बिंदी हिंदी है ये जानिए’।

कवि व पत्रकार सुधीर रंजन ने पढ़ा, जब तक है सांस आस न टूटे, पंछी सोचे पिंजरा टूटे आकाश न छूटे। अनिरुद्ध मिश्र ने पढ़ा ‘हिंदी की बिंदी से अपने जीवन का श्रृंगार करो, पोषक है, हम सबकी इससे मातृ तुल्य व्यवहार करो ‘विवेक मणि ने पढ़ा ‘एकटक चित किते , स्नेह हित में लिए ,अपने पोतों के खातिर पराई हूं मैं। ‘हिमांशु प्रखर ने पढ़ा ‘चर्चा में आजकल है बिलैया विदेश की ,चारे के बिना मर रही गैया स्वदेश की।। ‘ तेजभान सिंह ने पढ़ा ‘क्या सही और क्या ग़लत क्या दुनिया की रीत है? लोक गायक रणजीत यादव ने पढ़ा ‘आव रे चिरैया बन झोंझिया लगाव रे’
संगोष्ठी का संचालन संस्थान के सचिव अनिरुद्ध मिश्र ने किया।

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