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काश कह दे सिर्फ़ एक बार……..

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हमसे प्यार को अपने, अब वो छुपाने लगा है,
अपनी नज़रों को हमसे, अब वो चुराने लगा है ।
डरता है कहीं, भेद ना खुल जाए उसका,
कि मन ही मन, हमको वो बहुत चाहने लगा है ।

इज़हार अपने प्यार का, खुलकर कभी करता नहीं,
ऐसा करके हमको, वो बहुत सताने लगा है ।
कान ये हमारे सुनने को तरस रहे हैं कब से ये,
कि जान वो हम पर, अपनी अब छिड़कने लगा है ।

काश कह दे सिर्फ़ एक बार, वो हमसे,
कि मन हमारे बिन उसका, ना कहीं अब लगने लगा है ।
करते हैं हम तो, खुलकर इज़हार अपने प्यार का,
ना जाने वो ही क्यों इतना, डर डर कर रहने लगा है ।

माना, बिन डोर का रिश्ता है, प्यार का ये हमारा,
फिर भी मज़बूत कितना, अब दिखने लगा है ।
कोई रसमें ना क़समें ना वादे ही किए,
मगर प्यार एक दूसरे पर बहुत आने लगा है ।

नज़रें हैं जमाने की, इस प्यार पर हमारे,
प्यार हमारा फिर भी,परवान चढ़ने लगा है ।
इस दिल की लगी को, कौन समझेगा भला,
वही समझेगा सिर्फ़, हमारी तरह जो दिलजला है I कोई समझे या ना समझे, इस प्यार को हमारे,
मैं समझती हूँ उसको, समझने वो मुझको भी अब लगने लगा है ।
प्यार को अपने, आँधी तूफ़ाँ कोई, डगमगा नहीं सकता,
इस प्यार को अपने, इन तूफ़ानों ने ही तो पाला है ।

सुमन मोहिनी-कवियत्री

(नई दिल्ली)

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