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159 वाँ मर्यादा महोत्सव….

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जरूरी है हर चीज की सीमा और मर्यादा के ज्ञान का । बिना किसी मर्यादा के हमारी जिन्दगी हो जाती है अस्त-व्यस्त । खो जाता है हमारा मान सन्मान। क्योंकि भोजन की तरह सीमा से अधिक हर चीज है हानिकारक। जो करती है जीवन से यह कोई न कोई तत्व नदारद है ।

महानता के पथ पर हर व्यक्ति अपने आप को आगे बढ़ाना चाहता है हर कोई व्यक्ति अपने जीवन में महान कार्य करके अपने आप को महान कह लाने के लिए गौरव की अनुभूति भी करता है पर वास्तव में महान कौन बनता है इस पर हम जब चिंतन करेंगे तब हमारे को पता लगेगा महान बनने का जो सबसे बड़ा सूत्र है मर्यादा । जो व्यक्ति मर्यादा में आगे बढ़ता है वह व्यक्ति अपने जीवन में हमेशा ही महानता के पथ को प्रशस्त करने वाला बन जाता है । मर्यादा ही जीवन को महान बनाती है |

मर्यादा जीवन का आधारभूत तत्व है।सब तरफ़ शांति का स्त्रोत है।मर्यादा है तो जीवन महकता हुआ उपवन है । अपने लिए भी ओर सामने वाले के लिए भी । वह सभी के लिए।हम स्वतंत्रता चाहते है लेकिन स्वतंत्रता का मूल्य नहीं जानते है ।सब स्वतंत्रता चाहते है लेकिन हमारी तरह मर्यादित हुए बिना स्वतंत्रता अधूरी है।मनुष्य सबसे विवेकशील प्राणी है।मर्यादा शून्य जीवन सभी के लिए खतरा पैदा करता है व विनाश का कारण बनता है।एकेन्द्रिय जीव भी जब पानी ,अग्नि ,वायु आदि मर्यादा तोड़े तो फिर भी कुछ हद तक कम विनाश होता है ।

उसका परिणाम हमारे सामने साक्षात दिखाई देता है लेकिन मनुष्य मर्यादा तोड़े अनुशासन भंग करें तो अकल्पनीय संभव है। अनुशासन की मिशाल है यह तेरापन्थ संघ महान। तेरापंथ प्राचीनता और नवीनता के समन्वय का नाम है । हमारा धर्म संघ जहां नवीन आयामों का पैगाम है। वहीं दूसरी तरफ प्राचीन मर्यादाएं हमारी शान है। मौलिकता लिए हमारी सुदृढ़ मजबूत नींव को प्रणाम है। युग के साथ परिवर्तन व नव नये – नये उन्मेषों का भंडार है । भिक्षु स्वामी से लेकर आचार्य श्री महाश्रमण तक मूल मर्यादाएं अक्षुण्ण खान है। हमारे समाज से ही होते है दीक्षित सब बालक बालिकाएं पर रहते सब एक गुरु की आण है।

स्वतंत्रता सबको विचारों की पर अनुशासन धर्म संघ में महान है। उच्छृंखल बनने वाले का आचार्यों की नजरों में नहीं कोई स्थान है। विवेक पूर्वक परिवर्तन तथा विनय वात्सल्य पूर्ण व्यवहार है। यहां न हठ धर्मी है पुरातन लोगों की और नवीन पीढ़ी भी अनाग्रह वान है। पूरा इतना बड़े साम्राज्य संचालन की पद्धति मय मनो विज्ञान है। उसी धर्म संघ के हम भी कहलाते चार तीर्थो में दो तीर्थ (श्रावक-श्राविकाएं ) महान है। यह हमारा सौभाग्य है कि हमें आचार्य भीखण जी द्वारा रचित मर्यादाओं का कोष हमारे पास अभी भी सैकड़ों वर्षों के बाद सुरक्षा कवच के रूप में सुरक्षित है।

हम मर्यादित धर्मसंघ के श्रावक-श्राविकाएं है।हमारी जन्म जन्म की पुण्याई से हमें यह मनुष्य जन्म ओर तेरापंथ धर्मसंघ मिला है।अब हम अपने विवेक का उपयोग करके अपनी आत्मा का कल्याण करके परमात्मा बनने का प्रयास करें व साधनपथ पर आगे बढ़ते हुए आत्मा को संसार भ्रमण से कम से कम भव में च्युत करे मोक्ष का वरण करे यहीं काम्य है हमारे लिए।और गुरुकृपा से ये सब सम्भव है।देव,गुरु और धर्म में दृढ़ आस्था रखते हुए हम निज-पर का कल्याण कर पायेंगे। सच मर्यादा में रह होता कितना संघ व सबका विकास है ।

न होती ये मर्यादा तो जाने कब का विनाश या लुप्त हो गया होता है। क्योंकि प्रकृति का भी नियम है जब तक मर्यादा में है सब कुछ सुंदर-शांत है और इसके विपरीत टूटे जिस दिन यह मर्यादा क्या क़हर पृथ्वी पर ढाया है ? है साक्षी विनाश के तांडव का इतिहास इसका गवाह है ।मर्यादा जीवन है ,प्राण है, आत्मा है व सुख-शांति आनंद का वास है ।

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़, राजस्थान )

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